सोमवार, 13 सितंबर 2010

नबूवत मिलने से पहले आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की जीवन शैली तथा आप का व्यक्तित्व

आप बचपन से सहीह सोंच ,मज़बूत समझ तथा स्वक्ष स्वभाव वाले व्यक्तित्व के मालिक थे आप के अन्दर हर अच्छा गुण था , नैतिकता तथा आचार विचार में उच्च स्थान पर थे आपकी अमानतदारी . सत्यता , शिष्टाचार , उदारता , साहस , बहादुरी , न्याय, बुद्धिमत्ता ,पाकदामनी ,धैर्य ,शुक्र ,शर्म ,वफादारी ,नम्रता आदि स्वर्णिम आदतें प्रसिद्ध थीं तथा उनका उदहारण दिया जाता था . दान पुण्य में भी आप उच्च स्थान पर थे.आप रिश्तेदारियां निभाते ,लोगों का बोझ उठाते ,ग़रीबों की सहायता करते ,बेसहारों को सहारा देते ,अतिथि का भाव आदर करते ,आपदा ग्रस्तों की मदद करते तथा विधवाओं की सहायता करते . आप ने कभी कोई असत्य बात नहीं कही , आल्लाह तआला आप को अपनी संरक्षण में ले रक्खा था आप कोई ऐसा कार्य नहीं करते जो अल्लाह की मंशा के विरुद्ध हो इसीलिए आप की क़ौम में जो अराजकता तथा बदअमली और अंधविश्वास फैला हुआ था उस से आप काफी दूर थे आप ने कभी किसी मेले या शिर्क के उत्सवों में भाग नहीं लिया , कभी किसी मूर्ति पर चढ़ाई गई या अल्लाह के अतिरिक्त किसी के लिए ख़ास की गयी वस्तु का सेवन नहीं किया और न ही बुतों एवं मूर्तियों के पास बलि दिए गए या ज़बह किये गए जीव का सेवन किया , कभी किसी मूर्ति का स्पर्श नहीं किया और नहीं उस से आस्था रखी और उस के करीब गए , आप लात तथा उज्ज़ा जैसे बुतों की सौगंध को सुनना भी बर्दाश्त नहीं करते . इसी तरह आप मदिरा तथा मनोरंजन एवं कथाओं की मजलिसों से काफी दूर थे जो उस युग में बहुत ज्यादा होते थे और युवा पीढ़ी बढ़ चढ़ कर उनमें भाग लेती थी


मंगलवार, 10 अगस्त 2010

हजरे अस्वद (काला पत्थर) कि हक़ीक़त

चूँकि मेरा यह ब्लॉग केवल अंतिम रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के जीवन के सत्य तथ्यों के बयान पर आधारित है अतः मैं किसी भी अतिरिक्त लेख से परहेज़ करता हूँ एवं कोशिश यह होती है कि आप के जीवन के उन्हीं तथ्वों को बयान करूँ जो सही रवायतों पर आधारित हैं लेकिन कुछ समय पूर्व मैंने हजरे अस्वद एवं काबा के बारे में कुछ नकारात्मक विचार वाले व्यतियों जिनका ज्ञान सरल तथा गलत विचारों एवं सोंच से भरपूर है के लेख तथा उनपर कमेंट्स पढ़ा इन आलेखों में ख़ास तौर से हजरे अस्वद के बारे में जो बकवास कि गई है वोह लेखक के मानसिक बिमारी का उदहारण है काबा तथा हजरे अस्वद का तअल्लुक़ किसी सनातन धर्म अथवा शिव या शिव लिंग से क्या हो सकता है ?दर असल लेखक ने झूटे इतिहास कारों की झूटी बातों पर भरोसा करके जिनका कोई अस्तित्व नहीं है एक अफसाना तराश कर लेख का रूप दे दिया है . ऐसे लोग जिन का ज्ञान सरल तथा कमज़ोर होता है जो सत्य असत्य में अंतर नहीं कर सकते और न ही करने की कोशिश करते हैं झूटी बातों को इतिहास का रूप देनें वाले इतिहासकारो की हर सच्ची झूटी बातों को सत्य समझ कर उसपर ईमान ले आते हैं, ठीक उस अबोध बच्चे की तरह जो दादी माँ की परियों तथा देवों की कथाओं को सच समझ बैठता है और दिनों रात उन्हीं के सपने देखा करता है
चूँकि हमारे इस्लाम धर्म में किसी भी धर्म का ठठा तथा उस से सम्बंधित किसी चीज़ का मजाक उड़ाना निषेध है इसलिए मैं सनातन अथवा शिव एवं शिवलिंग की सत्यता अथवा असत्यता के बारे में कुछ नहीं कहूंगा हाँ इतना ज़रूर है कि हमारे धर्म के बारे में जो असत्य तथा अन्याय पूर्ण बातें कही जाती हैं उनका उत्तर अवश्य दिया जाए! काबा कि हकीकत के बारे में मैं इस से पूर्व लिख चूका हूँ तथा मौक़ा मिला और अल्लाह ने चाहा तो मक्का फतह करने के बयान के समय लिखूंगा
अब निम्न में हजरे अस्वद के बारे में जो सत्यता है उसे बयान कर रहा हूँ इस यकीन के साथ कि जितना ब्यान कर रहा हूँ केवल उतना ही सत्य तथा कुरआन (इश्वर के बयान) एवं हदीस (नबी की बातों तथा कार्यों) से साबित है जिन्हें आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के प्यारे साथियों रज़ीअल्लाहोअन्हुम ने देखा , सुना ,समझा तथा ब्यान किया है बाक़ी सब बे सर पैर की बातें एवं अफ़साना है , अल्लाह हमें सही सोंच दे
हजरे अस्वद क्या है ? :  हजरे अस्वद काबा के दक्षनी कोने में मौजूद लाली मिला हुआ एक काला पत्थर है जो ज़मीन से डेढ़ मीटर की उंचाई पर काबा की दिवार में लगा हुआ है. यहाँ यह बताते चलें कि शुरू में हजरे अस्वद का आकार तीस सेंटी मीटर के करीब था लेकिन अनेक घटनाओं की वजह से उस में परिवर्तन आता गया तथा अब अनेक साईज़ के केवल आठ छोटे छोटे टुकड़े बचे हैं जिन में सब से बड़ा छोहारे के आकार का है , यह तमाम टुकड़े करीब ढाई फिट के कुतर में जड़े हुए हैं जिनके किनारे चांदी के गोल चक्कर घेरे हुए है. इस की हिफाज़त के लिए सब से पहले जिसने उसे चांदी से गच दिया वो अब्दुल्लाह बिन जुबैर रज़ियल्लाहो अन्हो हैं फिर बाद के राजाओं महाराजाओं ने भी उस में सोने तथा चांदी मढ़वाये सब से अंत में सउदी अरब के राजा शाह सऊद ने इसे खालिस चांदी से मढ़वाया.
इस्लामी ईतिहास में हजरे अस्वद से एक नेहायत ही दुखद घटना जुडी हुई है, अबू ताहिर क़र्मोती (जिस का सम्बन्ध क्रामेता नामी शीई धर्म से था ) नाम के एक आक्रमणकारी ने सन ३१७ हिजरी में मक्का पर आक्रमण करके मक्का की पवित्रता को भंग कर दिया एवं काबा की बेहुरमती की एवं हाजियों को मार कर ज़मज़म के कुंवे में डाल दिया,तथा ज़मज़म के कुब्बे को गिरा दिया एवं काबा की दिवार को गिरा दिया तथा काबा की चादर को फाड़ कर अपने साथिओं में बाँट दिया एवं हजरे अस्वद को निकाल कर अपने साथ ले गया . बाईस वर्ष बाद सन 339 हिजरी में फिर दोबारा उसको उसके स्थान पर लौटा दिया गया

हजरे अस्वद कहाँ से आया ? : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फरमाया (१) " हजरे अस्वद अल्लाह तआला ने ज़मीन पर स्वर्ग से उतारा है यह दूध से अधिक सफ़ेद था बनू आदम (मनुष्य ) के पापों ने इसे काला कर दिया है " (तिरमिज़ी एवं सहिहुलजामे /क्रमांक : ६७५६) (२) " रुक्न (हजरे अस्वद ) तथा मक़ाम जन्नत के नीलमों में से एक नीलम है अल्लाह तआला ने इस के प्रकाश को समाप्त कर दिया है अगर इसके प्रकाश को ख़तम नहीं करता तो यह पूरब और पश्चिम को रौशन कर देते " (मुस्नद अहमद , तिरमिज़ी एवं सहिहुलजामे /क्रमांक : १६३३) (३) हजरे अस्वद जन्नत से उतरा है जो बर्फ से ज्यादा सफ़ेद था जिसे आदमी के पापों ने काला कर दिया है " (सिलसिला सहीहा)

हजरे अस्वद किस युग में लगा ? : हजरे अस्वद अल्लाह तआला ने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पास जिब्रील अलैहिसलाम के हाथो भेजा ताकि वोह तवाफ़ करने वालों (काबा का चक्कर लगाने वालों) के लिए काबा के दक्षिणी किनारे में लगा दें ,जो काबा का तवाफ़ करने वालों के लिए एक निशानी हो और वोह यहीं से अपना तवाफ़ आरम्भ करें तथा यहीं पर समाप्त करें
हुआ यूँ कि इब्राहीम अलैहिस्सलाम जब काबा का निर्माण कर रहे थे तथा पत्थर जोड़ते जोड़ते उस जगह तक पहुंचे जहां पत्थर लगाना था तो अपने पुत्र इस्माइल अलैहिस्सलाम जो निर्माण में उनकी सहायता कर रहे थे एवं पत्थर ढो कर ला रहे थे से कहा कि एक ऐसा पत्थर लाओ जिसे मैं इस स्थान पर लगा दूँ ताकि तवाफ़ करने वाले यहीं से अपने तवाफ़ का आरम्भ करें अतः इस्माइल अलैहिस्सलाम पत्थर लाने गए जब वापस आये तो देखा कि एक पत्थर मौजूद है , पूछा : पिताजी यह पत्थर कहाँ से आया ? तो उन्हों ने कहा कि जिब्रील अलैहिस्सलाम ने लाकर दिया है

हजरे अस्वद के फायदे तथा उसकी महत्ता : निम्न में हम हजरे अस्वद के कुछ फायदे एवं महत्ता के बारे में सहीह हदीसों की रोशनी में चंद बातें बयान करते हैं :(१) "यह स्वर्ग से उतरा हुआ पत्थर है"(सहीहुलजामे : क्रमांक /३१७५) (२) काबा में तवाफ़ जैसे महत्वपूर्ण अरकान को अदा करने के लिए अलामत और निशानी है (३) उसको चूमने से मोमिन के पाप झड़ जाते हैं (४) " अल्लाह तआला हजरे अस्वद को क़यामत के दिन लाएगा तो उसकी दो आँखें होंगी जिनसे देखेगा और ज़बान होगी जिससे बोलेगा और हर उस शख्स की गवाही देगा जिस ने उसका हक़ीक़ी इस्तेलाम किया (छुआ ) होगा " ( इब्नेमाजा एवं सहीहुलजामे क्रमांक /५३४६) (५) " अगर हजरे अस्वद को जाहिलियत की गंदगियाँ नहीं लगी होती तो उसे कोई भी बीमार छूता तो वोह ठीक हो जाता और धरती पर इसके अतिरिक्त स्वर्ग कि कोई चीज़ नहीं है" (सहीहुलजामे क्रमांक /5334) (6) उसके चूमने अथवा छूने में रसूलुल्लाह सल्लल्लहोअलैहेवसल्लम की सुन्नत का पालन है जो हर मुसलमान के लिए अनिवार्य है तथा इसके बगैर कोई मुसलमान मुसलमान नहीं रहता और इसके बगैर किसी भी मुसलमान की कोई इबादत एवं पूजा इश्वर के यहाँ अस्वीकार्य है

क्या मुसलमान हजरे अस्वद की पूजा करते हैं ? : हजरे अस्वद से सम्बंधित जो भी अमल मुसलमान करते हैं उनका सीधा सम्बन्ध अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से है कोई भी कार्य जो सुन्नत से साबित नहीं उनका करना मना है इसीलिए उमर रज़ियल्लाहो अन्हो ने जब हजरे अस्वद को चूमा तो कहा :" मैं जानता हूँ कि तू केवल एक पत्थर है न तू नफा पहुंचा सकता है और न ही हानि अगर मैं ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को तुझे चुमते हुए न देखा होता तो तुझे नहीं चूमता " इमाम तबरी फरमाते हैं कि : " उमर रज़ियल्लाहो अन्हों ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि लोगों ने कुछ ही दिनों पहले बुतों कि पूजा को छोड़ा था तथा आप को डर हुआ कि कहीं यह लोग ये न समझने लगें कि पत्थर को चूमना उसकी ताजीम करना है जैसा कि इस्लाम से पूर्व अरब के लोग किया करते थे अतः उन्हों ने लोगों को यह बताना चाहा कि हजरे अस्वद का चूमना केवल अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के कार्यों का अनुसरण है इसलिए नहीं कि उसके अन्दर कोई नफा तथा हानि की कोई शक्ति है " यहाँ पता चला कि हजरे अस्वद को चूमना कोई पूजा या शर्द्दा नहीं है बल्कि ऐसी मुहब्बत और प्यार है जो अल्लाह के रसूल की सुन्नत के मुताबिक है , उदहारण के तौर पर : कोई आदमी जब अपनी पत्नी या संतान को चूमता है तो इसका अर्थ यह नहीं होता कि वोह उनकी पूजा करता है अर्थात यह एक प्रेम है जो खून के रिश्ते के लिए उमड़ता है , इसी तरह हजरे अस्वद को चूमना या छूना एक प्रेम है जिसको करने का आदेश अल्लाह और उसके रसूल ने दिया है यह पद तथा यह स्थान दुनिया के किसी दुसरे पत्थर को बिलकुल प्राप्त नहीं चाहे उसका मूल्य कितना ही उंचा क्यों न हो , और लोग उसे कितना ही ऊँचा दर्जा क्यों न दे दें





काबा का नवीकरण तथा मध्यस्थता की कहानी

जब आप की आयु पैंतीस वर्ष की थी उस समय एक बड़ा सैलाब आया था जिस से काबा की दीवार मे दरार पड़ गयी तथा इस से पश्चात आग लगने से भी उस की दीवारों को नुक़सान पहुँचा था जिस के उस की दीवारें कमज़ोर हो गयीं थी अतः कुरैश ने उस के नव निर्माण का निर्णय लिया अथवा यह तय किया की इस के निर्माण में शुद्ध , हलाल एवं पाक कमाई के धन का प्रयोग करेंगे एवं बदकारी , चोरी , ब्याज और लूट खसूट के धन का प्रयोग नहीं किया जाएगा
जब काबा की दीवारों को तोड़ने का समय आया तो सब अल्लाह की सजा से डरने लगे कोई भी उसकी दिवार को तोड़ने के लिए तैयार नही था , तो उन से मोगिरा के पुत्र वलीद ने कहा कि अल्लाह निर्माणकारों का विनाश नहीं करता ,फिर स्वयं आगे बढ़ा तथा दीवारों को तोड़ने लगा ,फिर सब ने हिम्मत जुटा कर तोड़ने में उस का साथ दिया, फिर जब यह लोग इब्राहीम अलैहिस्सलाम कि डाली हुई बुन्याद तक पहुंचे तो वहाँ से निर्माण कार्य आरंभ किया तथा निर्माण के लिए हर कबीला को एक भाग दे दिया गया. इस निर्माण कार्य में बड़े बड़े लोगों ने भाग लिया ,वोह लोग खुद अपने कन्धों पे पत्थर ढोते , अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम एवं आप के चाचा अब्बास भी उन लोगों के संग पत्थर ढोते . जिस कारीगर ने काबा का निर्माण किया उसका नाम बाकूम रूमी था
इस बीच ऐसा हुआ कि हलाल(वैध) धन कम पड़ जाने से वोह लोग इब्राहीम अलैहिस्सलाम की बुन्यादों के बराबर दिवार खड़ी न कर सके , अतः उत्तर सिम्त से छः गज निकाल दिया और उस पर एक छोटी दिवार बना दी ताकि पहचान लिया जाए कि दिवार के अन्दर का भाग काबा में दाखिल है इस खाली भाग को हिज्र तथा हतीम कहा जाता है . और दरवाज़ा ज़मीन से उंचा कर दिया ताकि काबा में वही आदमी दाखिल हो सके जिस को इस कि इजाज़त दी जाए
जब वोह लोग हजरे अस्वद (काला पत्थर) तक पहुंचे तो हर सरदार कि ख्वाहिश थी कि हजरे अस्वद को उस कि जगह रखने का महत्वपूर्ण कार्य उसके कर कमलों द्वारा संपन्न हो अतः इस बात को लेकर उनमें विवाद तथा झगडा पैदा हो गया और चार पांच दिनों तक काम ठप पड़ गया
करीब था कि खुनी जंग छिड जाए लेकिन खालिद बिन वलीद का चाचा मोगिरा के पुत्र अबू ओमैया मख्ज़ुमी ने जो कुरैश में सब से अधिक आयु का था नेहायत ही बुधीमानी से इस का समाधान निकाल लिया उस ने यह प्रस्ताव रखा कि इस समस्या के समाधान के लिए उस व्यक्ति को अपना न्यायाधीश स्वीकार करेंगे जो सब से पहले बनी शैबा नामी दरवाज़ा से मस्जिद में प्रवेश करेगा सब ने उस कि इस राय को स्वीकार कर लिया तथा इसी पर सहमत हो गए, अल्लाह का करना ऐसा हुआ कि सब से पहले नबी कारीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने उस दरवाज़ा से प्रवेश किया . जब लोगों ने आप को प्रवेश करते देखा तो कहने लगे यह तो "अमीन " आ गए हम इनके फैसले से संतुस्ट हैं यह मुहम्मद हैं . फिर आप ने एक चादर मंगाई तथा हजरे अस्वद को उसके बीच में रख दिया फिर सब को हुक्म दिया कि सब कपडे का एक एक किनारा पकड़ ले और उसे उठाये ,फिर सब ने मिल कर उसे उठाया और जब हजरे अस्वद के स्थान पर पहुंचे तो आप ने उसे अपने हाथ से उसकी पहली जगह पर रख दिया यह एक ऐसा उपयुक्त एवं न्यायपूर्ण समाधान था जिसे सब ने खुशदिली से आदर के साथ स्वीकार किया

शनिवार, 7 अगस्त 2010

खदीजा रज़ियल्लाहो अन्हा से आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की औलाद

खदीजा रज़ियल्लाहो अन्हा से आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की जो औलाद पैदा हुई उन के नाम निम्न हैं : क़ासिम फिर ज़ैनब फिर रोक़ैया फिर उम्मे कुलसूम फिर फ़ातिमा फिर अब्दुल्लाह  इन्हीं का उप नाम तैयब व ताहिर था
आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के सारे पुत्र बचपन में ही गुज़र गये तथा पुत्रियाँ नबुवत का ज़माना पाईं और इस्लाम लाईं तथा हिजरत(आप्रवासन) किया फ़ातिमा रज़ियल्लाहो अन्हा  के अलावा आप की सारी बेटियों का देहांत आप के जीवन में ही हो गया फ़ातिमा रज़ियल्लाहो अन्हा आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के देहांत के बाद छः महीने तक जीवित रहीं

खदीजा रज़ियल्लाहो अन्हा से आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का विवाह

खदीजा रज़ियल्लाहो अन्हा एक उत्तम वंश वाली,अती सुंदर तथा धनवान स्त्री थीं ,जाहिलियत के युग( इस्लाम धर्म से पहले के समय ) में उन्हें ताहेरा के नाम से पुकारा जाता था जिस का मतलब है स्वक्ष् तथा पवित्रता वाली. इस से पूर्व इनकी दो शादियाँ हो चुकी थीं पहली शादी आयेज़् के पुत्र अतीक़ से, जिन से उनको एक पुत्री हुई थी इनके देहांत के बाद अबूहाला तमिमी से जिन से उनको हिंद बिन हिंद पैदा हुए जो सहाबी बन कर बदर की लड़ाई में शामिल हुए एवम् उनसे ज़ैनब नाम की एक लड़की भी पैदा हुई थी तथा हाला की आप ने परवरिश की
अबू हाला की मृत्यु के उपरांत बहुत से बड़े तथा धनवान लोगों ने उनको विवाह का आमांतरण दिया लेकिन उन्होंने सब को अच्छे तरीक़े से टाल दिया
खदीजा ने आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की अमानत एवं सच्चाई को देखा तथा मयसरा ने सफ़र के दौरान आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के शिष्टाचार तथा मोजज़ा ( अपसामान्य आदतों ) का वर्णन किया तो उन से काफ़ी पर्भावित हुईं तथा उनके दिल में आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से विवाह करने की इक्षा पैदा हुई अतः उन्होंने अपने दिल की बात अपनी सहेली मुनिया की बेटी नफीसा से कही जो आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के पास गयीं तथा खदीजा से शादी करने की बात की आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने उसे अतिशीघ्र क़बूल कर लिया तथा अपने चाचाओं से इस संबंध में बात की तो अबू तालिब तथा हमज़ा आदि खदीजा के चाचा असद के पुत्र अम्र से मिले और उनको अपने भतीजे के लिए विवाह का आमंत्रण दिया जिसे उन्हों ने स्वीकार कर लिया आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के चाचा अबू तालिब ने आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का निकाह बनू हाशिम तथा क़ुरैश के बड़े लोगों की उपस्तिथी में बीस उंटनी मोहर के बदले में कर दिया
यह विवाह आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के शाम से वापसी के दो महीने उपरांत हुई थी उस समय आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की आयु पच्चीस वर्ष थी तथा खदीजा की आयु चालीस वर्ष की थी
खदीजा जब तक जीवित रहीं आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने कोई दोसरी शादी नहीं की अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की इब्राहीम के सेवा सारी औलाद इन्हीं से पैदा हुई इब्राहीम मारिया क़िबतिया से थे

मंगलवार, 3 अगस्त 2010

खदीजा के व्यापार के लिए शाम की यात्रा

खोवैलिद की पुत्री खदीजा रज़ियल्लाहो अन्हा क़बीला क़ुरैश में सम्मानित तथा धन दौलत के हिसाब से उच्च स्थान पर थीं, व्यापारियों को मज़दूरी देकर अपना सामान व्यापार के लिए दूसरे देशों में भेजा करतीं, अल्लाह के रसुल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की सत्यता एवम् ईमानदारी के बारे में भी बहुत कुछ सुन रखा था, अतः उन्हों ने आप को बुला कर दोसरों से अधिक उजरत पर अपने सामान मे व्यापार की पेशकश की अतः आप खदीजा के गुलाम मैसरा के संग उनका माल लेकर शाम की यात्रा पर निकले और उसके अंदर व्यापार किया तथा व्यापार में खूब ज़्यादा लाभ हुआ, इस से पहले इतना लाभ नहीं हुआ था , व्यापार के उपरांत आप मक्का वापस आए और खदीजा को उनकी अमानत लौटा दी
खदीजा रज़ियल्लाहो अन्हा के गुलाम मैसरा ने उनको अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की सत्यता , अमानत दारी एवम् आप के अच्छे चरित्र के बारे में बताया तो ऊन के दिल में आप से विवाह की इक्षा पैदा हुई तथा आप को विवाह का आमंतरण भेजा

व्यावहारिक जीवन की शुरुआत

नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अनाथ पैदा हुए थे एवम् आप को अपने पिता से वरासत में केवल पाँच ऊँट , बकरियों का एक रेवड़ तथा एक हबशी लौंडी मिली थी जिस का नाम बर्का तथा उपनाम उम्मे अयमन था जिन्हों ने आप की परवरिश में अहम भूमिका अदा की थी ,फिर आप हलीमा सादिया के पास बानू साद पहुँच गये , जब चलने फिरने लगे तथा छोटे मोटे काम करने लगे तो अपने दूध शरीक भाई के साथ बकरियाँ चराने लगे और जब अपनी माता के पास मक्का वापस आए , और कुछ बड़े हुए तो आजीविका कमाने के लिए चन्द पैसों के बदले मक्का वालों की बकरियाँ चराने लगे , ताकि अपने चाचा अबू तालिब की मदद कर सकें , अबू हुरैरा रज़ियल्लाहो अनहो का बयान है कि आप ने फ़रमाया : आल्लाह तआला ने जब भी कोई नबी भेजा तो उसने बकरियाँ चराई . सहाबा कराम ने पूछा : और आप ? तो फ़रमाया : हाँ मैं भी चन्द सिक्कों के बदले मक्का वालों की बकरियाँ चराया करता था
फिर जब जवानी को पहुँच गाए तो व्यापार करना शुरू किया , आप अपना व्यापार अबू साएब के बेटे साएब के साथ करते जो बेहतरीन पार्टनर थे , आप लेन देन मे अमानत दारी , सत्यता एवम् पाकीज़गी का उदाहरण थे, आप समस्त सार्वजनिक जीवन में इन्हीं सिद्धांतों पर चलते रहे यहाँ तक कि आप को अमीन कहा जाने लगा

शनिवार, 31 जुलाई 2010

हीलफूल फोज़ूल / अच्छे कार्यों के लिए अनुबंध तथा प्रतिबद्धता

फेजार की लड़ाई के उपरांत ज़ुल्क़ादा के महीने में यह अनुबंध क़बीला क़ुरैश की पाँच शाखों के बीच हुआ जिन का नाम है : बनू हाशिम , बनू मुत्त्तलिब , बनू असद , बनू ज़ोहरा तथा बनू तमीम
हुआ यूँ कि यमन के क़बीला ज़बीद का एक आदमी कुछ व्यापार का सामग्री लेकर मक्का आया जिसे आएल के पुत्र आस ने उस से खरीदा लेकिन उसका मूल्य देने से इनकार कर दिया ज़बिदी ने मक्का में मौजूद अपने हलीफ़ों (मित्रों) से कहा कि उसका हक दिलाएँ लेकिन किसी ने भी उस की सहायता नहीं की तो वो सूर्योदय के समय अबू क़ोबैस नामी पहाड़ी पर चढ़ गया - उस समय क़ुरैश के लोग काबा के समीप बैठे हुए थे - तथा उँची आवाज़ में उपने उपर हुए अन्याय को कविताओं में बयान करने लगा ताकि लोग उस क़ि सहायता करें और उसका अधिकार दिलाएँ
फिर इस मामले में अब्दुल्मुत्तलिब के पुत्र ज़ुबैर की पहल पर वो लोग बनू तैम के मुखिया जुदआन के पुत्र अब्दुल्लाह के घर में इकट्ठा हुए तथा इस बात का अनुबंध किया कि वो सब किसी पर हुए अन्याय के खिलाफ एक जुट होकर उस की सहायता करेंगे तथा उसका हक दिलाएँगे अतः वो लोग आस बिन वाएल के पास गए और ज़बिदी का हक दिलवाया
इस अनुबंध में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने भी शिरकत की थी और आप इस से बहुत प्रसन्न हुए थे आप ने फ़रमाया : मैं अब्दुल्लाह बिन जुदआन के मकान में इस अनुबंध के समय उपस्थित था एवम् यह मेरे समक्ष लाल उंटों से भी अधिक बहुमूल्य था और अगर मुझे इस्लाम के समय में भी इस अनुबंध की दावत दी जाती तो मैं इसे क़बूल कर लेता

फेजार की लड़ाई

आप की आयु बीस वर्ष के क़रीब थी तो क़ुरैश व केनाना तथा कैस ईलान के बीच सूक़े ओकाज़ (ओकाज़ नामी बाज़ार) में यूद्ध छिड़ गयी, यूद्ध बहुत ही भयंकर अंदाज़ में हुई तथा दोनों तरफ के बहुत सारे लोग मारे गये इस यूद्ध में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने भी भाग लिया था आप तीर उठा उठा के अपने चाचा लोगों को दिया करते थे फिर दोनों पक्षो ने जंग बंदी का ऐलान किया तथा उनके बीच सुलह हो गयी एवम् आपसी कलह तथा शत्रुता को ख़तम करके एक हो गए
इस यूद्ध का नाम फेजार इसलिए पड़ा कि इस यूद्ध के ज़रिए इन लोगों ने हरमे मक्का तथा पवित्र महीने की पवित्रता का उल्लंघन किया था

मंगलवार, 27 जुलाई 2010

मूलके शाम की यात्रा तथा ईसाई संत

आप के चाचा अबू तालिब ने व्यापार के लिए क़ुरैश के क़ाफले के साथ शाम की यात्रा का इरादा किया उस समय आप की आयु बारह वर्ष से कुछ अधिक थी चाचा की जुदाई आप को बहुत मुश्किल मालूम हुई अतः चाचा को आप पर दया आ गई तथा आप को अपने साथ ले लिया
जब क़ाफ़िला शाम की सीमा पर बसे बुसरा नामी शहर के समीप उतरा तो ईसाइयों के बड़े संतों में से एक जिस का नाम बोहैरा राहीब था लोगों की भीड़ को चीरते हुए अल्लाह के रसूल के समीप आया तथा आप का हांथ पकड़ कर कहा : यह स्मस्त संसार के सरदार हैं, यह समस्त संसार के पालनहार के दूत हैं, इन्हें अल्लाह समस्त संसार के लिए रहमत (द्या,लु) बना कर भेजेगा. यहाँ यह ज्ञात हो कि इस से पहले बोहैरा कभी भी इनके पास नहीं आया था और ना हीं इनको कभी कोई महत्व दिया था लोगों ने पूछा : तुम्हे इस का ज्ञान कैसे हुआ ? तो उसने कहा : तुम लोग जब घाटी के समीप पहुँचे तो सारे पेड़ तथा पत्थर सजदे में गिर गये , और यह दोनों केवल किसी नबी को ही सजदा करते हैं, तथा मैं उनको उस ख़त्मे नबुवत ( नबुवत की सील) से पहचानता हूँ जो सेब जैसा आप के कंधे के नीचे पाया जाता है, एवम् इनका ज़िक्र हम अपनी पुस्तकों में पाते है
फिर बोहैरा ने उनकी काफ़ी आव भगत तथा अतिथि सत्कार किया एवम् अबू तालिब से कहा कि आप इन्हें मक्का वापस भेज दें शाम ना ले जाएँ क्योंकि इन्हें यहूदियों और रूमानियों से ख़तरा है अतः अबू तालिब ने आप को मक्का वापस लौटा दिया

कृपालु तथा दयालु चाचा के पास

आप के चाचा अबू तालिब आप के पिता के असली भाई थे, आपके दादा ने मरते समय आप को उनके सुपुर्द कर दिया, आप उन्हीं के पास पले बढ़े तथा जवान हुए, अबू तालिब ने भतीजे का पूरा ध्यान रखा , आप को अपनी संतान के साथ मिला लिया , आप को खूब आदर सम्मान दिया , अपने बच्चों से ज़्यादा प्यार किया , आठ (8) वर्ष कि आयु से लेकर एक्यावन (५१) वर्ष कि आयु तक लगभग (४३) साल आप अपने इस द्या लु चाचा के पास रहे , उन्होंने हर मुश्किल घड़ी में आप का साथ दिया . अबूतालिब थोड़े कम पैसे वाले थे लेकिन अल्लाह ने उसी में बरकत दी थी, यहाँ तक कि एक आदमी के खाने में समस्त परिवार भोजन कर लेता

मंगलवार, 22 जून 2010

दादा की छत्रछाया में

उम्मे अयमन आप को लेकर मक्का आईं तथा आप को आप के दादा को सौंप दिया इस घटना से आप के दादा को काफ़ी पीड़ा तथा रंज हुआ इसी कारण आप के दादा आप पर अती मेहरबान रहा करते इतना किसी पर मेहरबान नहीं रहते,  आप से खूब प्रेम करते तथा अपने बेटों पर तरजीह देते , आप का खूब ख्याल रखते , अपने खास बिस्तर पर बिठाते जिस पर किसी दूसरे को बैठने की हिम्मत नहीं होती , आप के पीठ को छूते तथा आप के खेल कूद तथा कार्यों से परसन्न्  होते , वो मानते थे कि  उनका पोता  भविष्य में महानतम व्यक्ति होगा , तथा इसकी   बड़ी शान होगी दो वर्ष के बाद जब आप कि आयु आठ वर्ष दो महीने तथा दस दिन की हो गयी तो उनका निधन हो गया , मरने से पहले उन्होंने आप को आपके चाचा अबू तालिब को सौंप दिया

माता की छत्रछाया में

हलीमा के यहाँ से आने के उपरांत लगभग दो वर्ष आपने अपनी माता की छत्रछाया में अपने परिवार में बिताया फिर आप की माता आप को लेकर उम्मे अयमन के संग अपने मैके मदीना गईं जहाँ उनके पति अब्दुल्लाह की क़ब्र भी थी, मदीना में एक मास ठहरने के बाद मक्का के लिए लौट गयीं वापसी में मक्का एवम् मदीना के बीच में अबवा नामी स्थान पर बीमार हुईं तथा वहीं उनका देहांत हो गया , और वहीं दफ़ना दी गयीं . आप उम्मे अयमन के साथ मक्का वापस आ गये. अब आप माँ  और बाप दोनों की तरफ से अनाथ हो चुके थे                

सीने की सर्जरी

हलीमा सादिया के घर में आप लग भग चार वर्षों तक रहे इस बीच एक ऐसी घटना घटी जिस ने हलीमा तथा उनके परिवार को डरा दिया , और वो घटना है आप के सीने को चीर कर शैतान के हिस्से का निकाला जाना , अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहो अन्हो ने इस घटने का वर्णन संछेप में कुछ इस तरह किया है : आप कुछ लड़कों के साथ खेल रहे थे कि जिबराईल अलैहिस्सलाम आप के पास आए तथा आप को ज़मीन पर डाल कर आप के पेट को चीर दिया , उस में से आप का दिल निकाला , फिर उस में से एक टुकड़ा निकाला ,और आप से कहा कि : यह आप के अंदर शैतान का हिस्सा था. फिर आप के दिल को सोने की थाली में ज़मज़म के पानी से धोया, फिर उसे साफ करके उसी स्थान पर लौटा दिया
लड़के दौड़ते हुए आप की रेज़ाई माँ ( हलीमा ) के पास आए और कहने लगे : मुहम्मद की हत्या कर दी गयी , लोग जब आप के पास पहुँचे तो आप का रंग बदला हुआ था . अनस कहते हैं कि : मैंआप की छाती में चीर का निशान देखता था इस घटना ने हलीमा को इतना भयभीत कर दिया कि वो तुरंत आप को लेकर आप की माता के पास चली गयीं तथा उनको उनका लाडला सौंप दिया

हलीमा सादिया के घर में

उस समय अरब में रवाज था कि आस पास के देहात की रहने वाली औरतें शहरों में जाकर दूध पीते बच्चों को लाया करतीं तथा स्तनपान (दूध पिलाने) के बदले में उनको अच्छा ख़ासा मुआवज़ा मिल जाता, शहर वाले भी अपने बच्चों को गांव देहातों में भेज दिया करते ताकि उनको शहरी बीमारयो से बचाएँ ताकि उनका शरीर मज़बूत हो जाए एवम् बचपन में ही उनको शुद्ध अरबी भाषा का ज्ञान हो जाए
अतः क़बीला हवाज़ीन के बनूसाद की हलीमा सादिया नामी औरत अपने पति अबू कब्शा हारिस पुत्र अब्दुल उज़्ज़ा एवम् क़बीले की दूसरी औरतों के संग बच्चे की तलाश में मक्का आई , आप को गोद लेने की कहानी का वर्णन खुद हलीमा करती है , कहती है : मै अपनी एक गध्धी पर सवार होकर जिसका रंग लाली मिली हुई उजला था दूसरी औरतों तथा अपने पति हारिस पुत्र अब्दुल उज़्ज़ा के साथ निकली मेरी सवारी के टाँग ( कमज़ोरी तथा दुबला होने के कारण ) आपस में टकरा कर ज़ख़्मी हो गये थे . मेरे संग एक बूढ़ी उंटनी भी थी जो अल्लाह की सौगंध एक क़तरा भी दूध नहीं देती थी और वो सुखाड़ का साल था लोग भूक प्यास से परिशान थे और मेरे साथ मेरा एक बेटा था ,अल्लाह की सौगंध ! वो रात भर नहीं सोता था, और मेरे पास कोई ऐसी चीज़ नहीं थी जिस से मै उसे बहलाती , हम तो केवल बारिश की प्रतीक्षा कर रहे थे हमारे पास कुछ बकरियाँ थी जिन से दूध की आस लगाए हुए थे , जब हम मक्का पहुँचे तो हम में से सब ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलएहे वसल्लम को देखा लेकिन उन्हें लेना पसंद नहीं किया , हम सब कहते थे : ये तो अनाथ है , दूध पिलाने वाली औरत का ख्याल तो उसका पिता करता है उसकी माता या उसके चाचा या उसके दादा हमें क्या देंगे ? मेरी समस्त सहेलियों को दूध पीने वाले बच्चे मिल गये . मुझे रसुलुल्लाह ( सल्लल्लाहो अलएहे वसल्लम) के सवाए कोई अन्य नहीं मिला मै उनके पास वापस गयी और उन्हें ले लिया , अल्लाह की क़सम मैने उनको इस लिए लिया कि मुझ को उनके अलावा कोई दूसरा बच्चा न मिला , मैने अपने पति से कहा : अल्लाह कि क़सम मै बनू अब्दुल मुत्तलिब के इस अनाथ बालक को अवश्य लूँगी आशा है कि ईश्वर् हम सब को इस से लाभ पहुँचाएगा मै अपनी सहेलियों के साथ बिना बच्चा लिए वापस नहीं जाऊंगी , उन्होंने कहा तुम्हारी राय उपयुक्त है , हलीमा कहती है : मै उसे लेकर अपने खेमे (शिविर ) में आ गयी , अल्लाह कि क़सम जैसे ही मैने अपने तंबू में परवेश किया मेरे दोनों स्तन दूध से भर गये यहाँ तक कि मैने उनको  (अर्थात अल्लाह के रसूल) (सल्लल्लाहो अलएहे वसल्लम) और उनके दूध शरीक भाई को पेट भर कर दूध पिलाया , और उनके पिता उंटनी के समीप गये तो देखा कि उस का थन दूध से भरा हुआ है , उन्हों ने उसे दूहा , मुझे पेट भर कर पिलाया तथा खुद भी पिया उन्होंने कहा : ऐ हलीमा अल्लाह कि क़सम ! मुबारक जान मिली है . अल्लाह ने उसके कारण हमें वो सब कुछ दिया है जिसकी हम आशा नहीं करते थे . हलीमा कहती है : हम उस रात चैन कि नींद सोए . पहले तो हम अपने बच्चे के साथ रात को सो नहीं पाते थे. फिर हम लोग सुबह के समय अपने ईलाक़े कि तरफ वापस चल पड़े मै अपनी    सफेद गधि पर सवार हुई और आप को अपने साथ सवार कर लिया , उस अल्लाह कि क़सम जिस के हाथ में हलीमा कि प्राण है ! मै सारी औरतों से आगे बढ़ गयी वो कहने लगीं : हलीमा तनिक हमारा ख्याल करो , क्या यह वही गधि नहीं है जिस पर तुम सवार होकर अपने घर से चलीं थीं ? मैने कहा : हाँ , उन्होंने कहा : जब हम चले थे तो इस के घुटने ज़ख़्मी हो गए थे , अब ये बदलाव कहाँ से आ गया ? मै ने कहा : अल्लाह कि क़सम मैने इस पर एक मुबारक लड़के को अपने साथ बीठाया हुआ है हलीमा कहती है   : जब हम वहाँ से निकले तो अल्लाह हर दिन हमारे लिए खैर तथा भलाई में वृद्धि करने लगा , और जब हम अपने गांव वापस आए तो पूरा ईलाक़ा सूखा ग्रस्त था लोगों के चरवाहे बकरियाँ ले कर सुबह को जाते तथा संध्या को वापस आते किंतु उनकी बकरियाँ वैसी ही भूकि रहतीं , लेकिन मेरी बकरियाँ पेट भर कर दूध से भरी हुई वापस आतीं हम उन्हें दूहते और पीते,हलीमा कहती है : आप बड़ी तेज़ी से परवरिश पा रहे थे, जब आपने दो वर्ष पूरे कर लिए तो मै और मेरा पति उनको लेकर मक्का आए , हम आपस में कहते थे कि अल्लाह कि क़सम हम इस बच्चे को अपने आप से कभी अलग नहीं करेंगे , अतः जब हम आप की माता के पास आए तो उनसे कहा : अल्लाह की क़सम ! हम ने कभी इस से ज़्यादा बरकत वाला बच्चा नहीं देखा , हमें इस के प्रति मक्का की वबाओं तथा बीमारियों से डर लगता है इस लिए तुम आज्ञा दो कि हम इसे दोबारा अपने संग ले जाएँ , हम बराबर ज़ोर देते रहे यहाँ तक कि उन्होंने आज्ञा देदी और हम उनको लेकर वापस चले आए, फिर चार साल पूरा होने से पहले ही हम उनको उनकी माता के पास छोड़ आए " यहाँ यह बता दें कि हलीमा के चार बच्चे थे जिनके नाम है :अब्दुल्लाह ,हुज़ाफा ,अनिसा तथा शएमा , अतः ये चारों आप के रेज़ाई अर्थात दूध शरीक भाई हुए

आप का स्तनपान

जब आप का जन्म हुआ तो उम्मेअयमन जो आप के पिता अब्दुल्लाह की नौकरानी थीं उन्हों ने आप की देख भाल तथा पर्वरिश की , जब आप बड़े हुए तो आप ने उनको आज़ाद कर दिया और उनका विवाह अपने चहेते आज़ाद किय हुए गुलाम जैद पुत्र हरसा से कर दी जिन से ओसामा पैदा हुए
आप की माता के बाद जिस औरत ने सब से पहले आप को दूध पिलाया उनका नाम सोअयबा है जो आप के चाचा अबुलहब की लोंड़ी थी उस समय उनका पुत्र भी दूध पी रहा था जिसका नाम मसरूह था , इस से पश्चात सोअयबा आप के चाचा हमज़ा को भी दूध पीला चुकी थी , तथा आप के बाद अबुसलमा पुत्र अब्दुल असद मखज़ूमी को भी दूध पिलाया , इस तरह इस्लामी क़ानून के मुताबिक़ यह तीनों आप के रेज़ाई (दूध शरीक ) भाई हुए
यह अबुलहब की वहीं लोंड़ी है जिसको उसने आप के जन्म के समय खुशी से आज़ाद कर दिया था लेकिन बाद में जब आप ने इस्लाम का प्रचार आरंभ किया तो सब से बड़ा दुश्मन बन गया तथा आप को तरह तरह से सताने तथा तकलीफ़ देने लगा

गुरुवार, 10 जून 2010

आप का नाम

जब आप का जन्म हुआ तो आप की माता ने आप के जन्म की खुशख़बरी आप के दादा अब्दुल मुत्तलिब के पास भेजी , आप के दादा आप के पास आए और गोद में ले कर खाना काबा में गये तथा अल्लाह का धन्यवाद किया और आप के लिए प्रार्थना की तथा सातवें दिन आप का अक़ीक़ा किया, क़बीला क़ुरैश का भोज किया और आप का ख़तना किया एवम् आप का नाम मुहम्मद रखा जिसका मतलब होता है : जिस की खूब तारीफ़ की जाए और संसार में उस का नाम बुलंद हो.  तथा आप की माता ने आप का नाम अहमद रखा , जिसका मतलब होता है :  ईश्वर् की सब से ज़्यादा तारीफ करने वाला जिस की तरह अल्लाह की तारीफ और कोई न कर सके. जब अब्दुल मुत्तलिब ने आप के अक़ीक़े का भोज किया तो क़बीले के लोगों ने उन से प्रश्न किया कि आप ने अपने इस पोते का  नाम क्या रखा है ? तो उन्होंने कहा : ( मुहम्मद) , तो क़बीले वालों को इस नाम पर आश्चर्य हुआ क्योंकि यह एक अनोखा तथा नया नाम था जो कभी सुनने में नहीं आया था . उनलोगों नें उन से पूछा कि आख़िर बाप दादा कि रीति रवाज से हट कर आपने अपने पोते का नाम क्यों रखा बाप दादाओं के नाम पर क्यों नहीं रखा ? अब्दुल मुत्तलिब ने   उत्तर दिया कि : मैने इसका नाम मुहम्मद इसलिए रखा ताकि अल्लाह आसमान में इसकी तारीफ करे और ज़मीन पर बसने वाले ज़मीन पर इसकी तारीफ करें .

शनिवार, 29 मई 2010

हाँथी वाली सेना तथा उसका का अंत

हुआ यूँ कि जब अब्रहा अश्रम नामी ईसाई जो कि हबशा के महाराजा कि तरफ से यमन का गवर्नर था ने देखा कि समस्त अरब लोक काबा कि श्रद्धा में हज्ज करने मक्का जाता है तो उस ने यमन में एक अती सुंदर एवम् महान घर बनवाया तथा लोगों को उस की ज़ेयारत तथा यात्रा पर उभारा ताकि अरबों को काबा की ज़ेयारत से रोका जाए
जब अरबों को इस का ज्ञान हुआ तो यह बात उन पर कठिन गुज़री अतः एक अरबी आदमी ने उस गीरजा में घुस कर उसे गंदा कर दिया जिस से अब्रहा बहुत ज़्यादा क्रोध में आ गया और उस ने क़सम खाई कि वह काबा को विध्वंस कर देगा और एक बहुत बड़ी सेना लेकर मक्का की तरफ चला जिस की तादाद साठ हज़ार से अधिक बताई गई हॅ और वह स्वयं एक वीशाल हांथी पर सवार हुआ
जब अब्रहा मक्का से दो मील पश्चात मोगाम्मस नामी स्थान पर पहुँचा तो अपने दूत को मक्का के सरदार एवम् मुखिया अब्दुल मुत्तालिब के पास इस संदेश के साथ भेजा कि हम लोग तुम से यूद्ध करने नहीँ आए बल्कि हमारा इरादा खाना काबा को विध्वंंश करना है अब्दुल मुत्तलिब ने उत्तर दिया कि हम भी उनका मुक़ाबला नहीं करना चाहते क्योंकि हमारे पास इतनी शक्ति नहीं है जिस से अब्रहा का मुक़ाबला कर सकें यह घर अल्लाह का घर है वही उसे बचाएगा ,फिर अब्रहा के दूत ने कहा कि मेरे साथ अब्रहा के पास चलो उसने तुम्हे बुलाया हॅ अब्दुल मुत्तलिब अब्रहा के पास गये जब अब्रहा ने उन को देखा तो उनकी काफ़ी आव भगत तथा आदर सम्मान किया क्योंकि वह काफ़ी सुंदर तथा भावी व्यक्तित्व के मालिक थे ,अब्रहा ने अपने अनुवादक से कहा : इस से पुछो कि तुम क्या चाहते हो ? अब्दुल मुत्तलिब ने कहा मेरा दो सौ ऊँट लौटा दो जिन्हें पकड़ रखा है !जब अब्दुल मुत्तलिब ने यह बात कही तो अब्रहा को आश्चर्य हुआ और अब्दुल मुत्तलिब की हैसियत उस की
नज़रों में कम हो गई और उसने कहा कि तुम मुझ से दो सौ ऊँटों कि बात कर रहे हो और उस घर का नाम तक नहीं लेते जो तुम्हारा और तुम्हारे पुरखों का धर्म है और जिसे मै ध्वस्त करने आया हूँ अब्दुल मुत्तलिब ने उस से कहा : मैं केवल ऊँटों का मालिक हूँ उस घर का मालिक अल्लाह है वही उसको बचाएगा
अब्दुल मुत्तलिब जब वहाँ से वापस आए तो क़ुरेश वालों को एकट्ठा किया और उनको पूरी बात सुनाई एवम् उनको पहाड़ों आदि में चले जाने को कहा तथा स्वयं कुछ गिने चुने लोगों को लेकर खाना काबा के पास गये और उस के द्वार की कुण्डी पकड़ कर काबा की हिफ़ाज़त के लिए अल्लाह से खूब प्रार्थना की और अब्रहा की सेना के खिलाफ मदद माँगी फिर उसके उपरांत अपने लोगों मे वापस हो गये तथा पार्तीक्षा करने लगे कि अब्रहा मक्का में दाखिल हो कर क्या करता है
अब्रहा की सेना जब मीना एवम् मुज़दलफ़ा के बीच पहुँची तो अचानक सागर की तरफ से अबाबील नामी चीड़ीयों की एक झुंड आई और उन पर कंकर बरसा कर उनका नाश करने लगी हर चीड़या तीन कंकर उठाए हुए थी एक चोंच में और दो अपने दोनों पावं में अब्रहा की सेना में भगदड़ मच गयी और सेना के लोग मर मर कर गिरने लगे अब्रहा को भी उसके नाम का पत्थर लगा और उसका नाश हो गया

आप का जन्म

मक्का में आप का जन्म अरबी तारीख की नौ रबिउल अव्वल को सोमवार के दिन सुबह के समय हुआ जो की अँग्रेज़ी तारीख का २० या २२ अप्रेल सन ५७१ ईस्वी बनता है लोगों में बारह रबीउल अव्वल मशहूर है लेकिन अध्ययन के पश्चात ९ रबीउल अव्वल ही सही मालूम होता हॅ जिसे बड़े बड़े अध्ययन कर्ताओं ने बयान किया है जिन में अल्लामा शिबली नोमानी , अल्ल्लामा सलमान मंसूरपुरी , एवम् मौलाना सफिउर रहमान मोबारकपुरी आदि क़ाबिले ज़िक्र है
जब आप का जन्म हुआ तो आप की माता के जिस्म से एक नूर निकला जिस ने शाम नामी मुल्क के महलों को रौशन कर दिया
ये वहीं साल है जिस में यमन के गवर्नर अब्रहा अश्रम ने खाना काबा को ढाने के लिए मक्का पर चढ़ाई कीया था और अल्ल्लाह ने अबाबील नामी चिड़ियों के ज़रिए उनका सर्वनाश कर दिया था

मंगलवार, 4 मई 2010

आप के पिता अब्दुल्लाह

आप के पिता अब्दुल्लाह अतिसुंदर तथा पवित्र चरित्र के मनुष्य थे इनको " ज़बीहुल्लाह " अर्थात " जिसे इश्वर के लीए बलि दिया गया हो " भी कहा जाता है "
हुआ यूँ कि इनके पिता अब्दुल मुत्तलिब ने ज़मज़म का कुँआ खोदा और जब कुआँ दिखने लगा तो क़ुरेश से उन का झगड़ा हो गया उस समय उन्होंने यह नज़र मानी कि अगर अल्लाह ने उन्हें दस बेटे दिए तो उन में से एक को अल्लाह के लिए काबा के समीप ज़बह कर देंगे तो जब उनके दस लड़के हो गये तो उन्होंने उनके नाम की पर्ची निकाली पर्ची अब्दुल्लाह के नाम निकली अब्दुल मुत्तलिब उनको लेकर काबा के पास पहुँचे ताकि उनकी बलि दे तो उनके परिवार के लोगों ने एवम् विशेष रूप से उनके ननिहाल वालों ने उनको मना किया तो अब्दुल मुत्तलिब ने उनके फिदिया ( बदले ) में एक सौ उंटों को ज़बह किया पहले उन्हों ने दस उंटों को रख कर पर्ची निकाली पर्ची फिर अब्दुल्लाह के नाम निकली वो बराबर उंटों की संख्या बढ़ाते गये यहाँ तक क़ि उंटों क़ि संख्या एक सौ हो गयी तो पर्ची उंटों के नाम निकली इस तरह अब्दुल मुत्तलिब ने उनके बदले में एक सौ उंटों को ज़बह किया इसी लिए मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्ल्म को " इबनुज़्ज़बीहतैन " अर्थात " दो ज़बह किए गये महापुरुषो के पुत्र" कहा जाता है
अब्दुल मुत्तलिब ने अपने पुत्र अब्दुल्लाह का विवाह बनू ज़ोहरा के मुखिया एवम् सरदार वहब पुत्र अब्दे मोनाफ की पुत्री आमना से कर दिया जो की आदर एवम् संस्कार में क़ुरेश की महिलाओं में सर्वोत्तम थीं शादी के कुछ समय उपरांत अब्दुल मुत्तलिब ने उनको व्यापार के लिए मूलके शाम भेजा वापसी में मदिना में उनका देहांत हो गया और एक क़ौल " कथनी" के अनुसार उनको मदीना ख़ज़ूर लाने के लिए भेजा था जहाँ उनका देहांत हो गया, तथा वहीं पर उनको दफ़न कर दिया गया

शनिवार, 1 मई 2010

आप का नसब नामा /वंश

मुहम्मद( सललाल्लाहो अलैहे वसल्ल्म) पुत्र अब्दुल्लाह पुत्र अब्दुल मुत्तलिब पुत्र हाशिम पुत्र अब्दे मोनाफ पुत्र क़ोषई पुत्र कोलाब पुत्र मुर्रा पुत्र काब पुत्र लोवाए पुत्र ग़ालिब पुत्र फहर पुत्र मालिक पुत्र नज़र पुत्र कनाना पुत्र खोज़ईमा पुत्र मूद्रेका पुत्र इल्यास पुत्र मोज़र पुत्र नज़ार पुत्र मअद पुत्र अदनान
यहाँ तक आपके वंश में सब सहमत हैं , अदनान के बाद थोड़ी विभिन्नता है अलबत्ता सब इस बात पर सब सहमत हैं की अदनान इस्माईल अलैहिस्सलाम की औलाद हैं

काबा का निर्माण और इब्राहीम की प्रार्थना

अगली बार जब इब्राहीम अलैहिस्सलाम मक्का आए तो अपने पुत्र इस्माईल अलैहिस्सलाम से कहा कि अल्लाह ने मुझे हुक्म दिया है कि इस जगह एक घर बनाऊँ , इस्माईल अलैहिस्सलाम ने कहा कि आप के रब ने जो हुक्म दिया है उसे कर डालिए फिर दोनों ने मिल कर अल्लाह के घर खाना काबा का निर्माण किया इस्माईल अलैहिस्सलाम पत्थर ढो कर लाते और इब्राहीम अलैहिस्सलाम उन्हें जोड़ते , जब इमारत उँची हो गई तो इस्माईल अलैहिस्सलाम ने एक पत्थर ला कर उन के पैरॉ के नीचे रख दिया और इब्राहीम अलैहिस्सलाम उस पर खड़े हो कर काबा का निर्माण करने लगे वो पत्थर जिस पर चढ़ कर इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने काबा का निर्माण किया था काबा की दीवार के नीचे रह गया ,उस पर इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पैरो के निशान भी रह गये जिसका नाम अल्लाह ने " मक़ामे इब्राहीम " रख दिया, काबा के निर्माण के बाद उन्होंने अल्लाह से निम्न प्रार्थना की
१- इस घर को उनकी तरफ से क़बूल कर ले
२- दोनों इस्लाम धर्म पर बाक़ी रहें
३- इस्लाम धर्म पर ही उनकी मौत हो
४- उनके बाद उनकी औलाद इस घर क़ी वारिस बने
५- इस दावते तौहीद (केवल एक अल्लाह क़ी पूजा) को सारे संसार में फैला दे
६- उन क़ी औलाद में एक नबी (दूत) भेजे
७- अपनी पूजा एवम् इबादत का सही तरीक़ा एवम् विधि सीखा दे
८- उन्हें क्षमा दे दे
९- काबा को सुरक्षा एवम् शांति वाला स्थान बनाए
१०- उनकी औलाद को बुतपरस्ती से बचाए
११- एवम् उन्हें विभिन्न प्रकार के फलों से आजीविका प्रदान करे
फिर इब्राहीम अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने हुक्म दिया कि लोगों में हज का एलान कर दें सो उन्होंने एलान कर दिया और लोग उनकी आवाज़ सुन कर पूरी दुनिया से लोग हज करने के लीए आने लगे जिस का सिलसिला आज तक जारी है और शायद क़यामत तक जारी रहे
इसके बाद इब्राहीम अलैहिस्सलाम शाम देश को लौट गए और सत्य धर्म के परचार में लग गये यहाँ तक कि एक सौ पचहत्तर वर्ष कि आयु में उनका देहांत हो गया
देहांत के समय उनके दो पुत्र इसहाक़ अलैहिस्सलाम और इस्माईल अलैहिस्सलाम थे इसहाक़ अलैहिस्सलाम शाम में ही रह गए और उन्होंने फ़लस्तीन में मस्जीदे अक़्सा का निर्माण किया बाद में मुहम्मद सललाल्लाहो अलैहै वसल्लम को छोड़ कर जीतने भी नबी और दूत आए उन्हीं कि नस्ल में आए और मुहम्मद सललाल्लाहो अलैहै वसल्लम उनके दूसरे एवम् बड़े पुत्र इस्माईल अलैहिस्सलाम कि नस्ल में आए.
इस्माईल अलैहिस्सलाम मक्का में काबा के पड़ोस ही में क़बीला जुरहूम कि एक लड़की से विवाह करके उनके साथ बस गए और फिर अल्लाह ने उनको , उनका और यमन वालों का नबी बना दिया. एक सौ सैंतीस वर्ष कि आयु में मक्का ही में उनका देहांत हो गया इस्माईल अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने बारह बेटे दिए जिन में नाबीत एवम् कैज़ार माशहूर हुए तथा कैज़ार की औलाद में अदनान हुए अदनान के दो बेटे हुए अक तथा मअद , अक यमन चला गया और मअद मक्का में ही रहा जिन की नस्ल से मुहम्मद सललाल्लाहो अलैहै वसल्लम हैं

सोमवार, 26 अप्रैल 2010

इस्माईल की क़ुर्बानी

इब्राहीम अलैहिस्सलाम इश्वर के दूत थे और अपने कर्तव्य के पालन के लिए अल्लाह के हुक्म से अनेक देशों की यात्रा करते रहते थे और अपनी पत्नी एवम् पुत्र की देख रेख के लिए कभी कभार मक्का आया करते थे अल्लाह ने उनको एक बार सपने में दिखाया की वो अपने बेटे इस्माईल अलैहिस्सलाम की क़ुर्बानी कर रहे हैं ( यहाँ यह बता दें की नबीयों का सपना ईश्वरीए हुक्म हुआ करता है ) अतः इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने इस ईश्वरीए हुक्म को अपने प्रीय एवम् एक्लओते पुत्र के समच्छ रखा जो उस समय तेरह बरस की आयु को पहुँच चुके थे , उन्होंने फ़ौरन जवाब दिया की आप को ईश्वर ने जो आज्ञा दिया है उसे तुरंत कर डालिए अगर ईश्वर ने चाहा तो आप मुझे सब्र करने वाला(धैर्य वाला) पाएँगे ईश्वर के लिए सब कुछ क़ुरबान कर देने वाले पिता और पुत्र ईश्वर की आज्ञाकारिता के लिए चले ऐसा अनुपालन , अल्लाह के समक्ष ऐसा आत्मसमर्पण एवम् ऐसी तपस्या इतिहास के पन्नों में ढूढ़ने से नही मिलेगी इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने छुरी लिया और इस्माईल अलैहिस्सलाम को माथे के बल लिटाया फिर अल्ल्लह का नाम लेकर छुरी को इस्माईल अलैहिस्सलाम की गर्दन पर चलाया लेकिन छुरी काट न सकी उसी समय अल्लाह ने पुकारा : ऐ इब्राहीम ! तूने ख्वाब को सच कर दिखाया फिर अल्लाह ने इस्माईल अलैहिस्सलाम के बदले एक बड़ा जानवर भेज दिया ताकि उसकी क़ुर्बानी कर सकें इसी का वर्णन अल्लाह तआला ने क़ुरान मजीद के अंदर इन शब्दों में किया है: ( हम ने इब्राहीम को पुकारा की ऐ इब्राहीम ! तूने खवाब को सच कर दिखाया हम नेक लोगों को ऐसा ही बदला ( पुरस्कार ) देते हैं , यह एक खुली हुई परीक्षा है , और हम ने उस लड़के के फीदीया (बदले) में एक बड़ा जानवर भेज दिया )
इस पुण्य को अल्लाह तआला ने इस्माईल अलैहिस्सलाम की नस्ल में और अपने रसूल मुहम्मद सललाल्लाहो अलैहै वसल्लम की उम्मत में क़यामत तक के लिए जारी कर दिया जिसे पूरे विश्व में करोड़ों मुसलमान पर्ति वर्ष मनाते हैं

मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

मक्का आबाद होता है

इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपने ईश्वर् के हुक्म से अपनी पत्नी हाजरा अलैहस्सलाम एवम् पुत्र इस्माईल अलैहिस्सलाम को लेकर वादी ए मक्का में गए और उन्हें वहीं छोड़ कर चलने लगे तो उनकी पत्नी ने पूछा कि हमे इस गैर आबाद स्थान पर किसके भरोसे छोड़ कर जा रहे हैं, क्या ईश्वर ने आप को इसका हुक्म दिया है ? तो उन्होंने उत्तर दिया कि हाँ ईश्वर् ने ही इसका हुक्म दिया है ! तो हाजरा अलैहस्सलाम ने कहा : तब मै ईश्वर् के हुक्म से राज़ी हूँ इस के बाद इब्राहिम उनके लिए एक थैली में कुछ खाने का सामान और पानी का एक घड़ा रख कर उन से विदा हो गए! और फिर हाजरा अलैहस्सलाम अपने नन्हे से पुत्र के साथ वहाँ अकेली रह गयीं , फिर जब घड़े का पानी ख़तम हो गया और दोनों प्यासे हुए तो हाजरा अलैहस्सलाम पानी कि खोज में सफा और मरवा नामी पहाड़ीओं के बीच चक्कर काटने लगी ताकि कुछ पानी मिल जाए इस बीच वो अपने पुत्र को बार बार देखने भी आ जाती थी इस तरह उन्हों ने इन पहाड़ीओं के बीच कुल सात चक्कर लगाए फिर अचानक देखती हैं कि बच्चे के दोनों पावं के नीचे से एक पानी का चश्मा फुट पड़ा है यह देखते ही वो दौड़ी हुई आईं और पानी को पत्थरों और मिट्टी से घेरने लगीं ताकि पानी इधर उधर बह न जाए ! इस तरह ज़मज़ंम का कुवा बना और उस का पानी बहुत ज़्यादा हो गया जिसे आज तक पूरी दुनिया के हाजी पीते भी हैं और अपने साथ अपने देश भी ले जाते हैं !
एक दिन यमन के क़बीला जुरहूम का गुज़र इस वादी से हुआ ये लोग पहले भी इस रास्ते से यात्रा किया करते थे , इन्होंने क़रीब ही परिंदों को उड़ते हुए देखा तो अपने एक आदमी को खबर लाने के लिए भेजा तो उसने पानी कि खबर दी ये लोग कुएँ के पास आकर हाजरा अलैहस्सलाम से वहाँ आकर आबाद होने कि इजाज़त माँगी तो उन्होंने इस शर्त पर उनको इजाज़त दे दी कि इस पानी पर उन लोगों का हक नहीं होगा ! इस तरह उस वक़्त मक्का आबाद हुआ और गुज़रते समय के साथ उसकी आबादी बढ़ती चली गयी !