मंगलवार, 27 जुलाई 2010

मूलके शाम की यात्रा तथा ईसाई संत

आप के चाचा अबू तालिब ने व्यापार के लिए क़ुरैश के क़ाफले के साथ शाम की यात्रा का इरादा किया उस समय आप की आयु बारह वर्ष से कुछ अधिक थी चाचा की जुदाई आप को बहुत मुश्किल मालूम हुई अतः चाचा को आप पर दया आ गई तथा आप को अपने साथ ले लिया
जब क़ाफ़िला शाम की सीमा पर बसे बुसरा नामी शहर के समीप उतरा तो ईसाइयों के बड़े संतों में से एक जिस का नाम बोहैरा राहीब था लोगों की भीड़ को चीरते हुए अल्लाह के रसूल के समीप आया तथा आप का हांथ पकड़ कर कहा : यह स्मस्त संसार के सरदार हैं, यह समस्त संसार के पालनहार के दूत हैं, इन्हें अल्लाह समस्त संसार के लिए रहमत (द्या,लु) बना कर भेजेगा. यहाँ यह ज्ञात हो कि इस से पहले बोहैरा कभी भी इनके पास नहीं आया था और ना हीं इनको कभी कोई महत्व दिया था लोगों ने पूछा : तुम्हे इस का ज्ञान कैसे हुआ ? तो उसने कहा : तुम लोग जब घाटी के समीप पहुँचे तो सारे पेड़ तथा पत्थर सजदे में गिर गये , और यह दोनों केवल किसी नबी को ही सजदा करते हैं, तथा मैं उनको उस ख़त्मे नबुवत ( नबुवत की सील) से पहचानता हूँ जो सेब जैसा आप के कंधे के नीचे पाया जाता है, एवम् इनका ज़िक्र हम अपनी पुस्तकों में पाते है
फिर बोहैरा ने उनकी काफ़ी आव भगत तथा अतिथि सत्कार किया एवम् अबू तालिब से कहा कि आप इन्हें मक्का वापस भेज दें शाम ना ले जाएँ क्योंकि इन्हें यहूदियों और रूमानियों से ख़तरा है अतः अबू तालिब ने आप को मक्का वापस लौटा दिया

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