शनिवार, 29 मई 2010

हाँथी वाली सेना तथा उसका का अंत

हुआ यूँ कि जब अब्रहा अश्रम नामी ईसाई जो कि हबशा के महाराजा कि तरफ से यमन का गवर्नर था ने देखा कि समस्त अरब लोक काबा कि श्रद्धा में हज्ज करने मक्का जाता है तो उस ने यमन में एक अती सुंदर एवम् महान घर बनवाया तथा लोगों को उस की ज़ेयारत तथा यात्रा पर उभारा ताकि अरबों को काबा की ज़ेयारत से रोका जाए
जब अरबों को इस का ज्ञान हुआ तो यह बात उन पर कठिन गुज़री अतः एक अरबी आदमी ने उस गीरजा में घुस कर उसे गंदा कर दिया जिस से अब्रहा बहुत ज़्यादा क्रोध में आ गया और उस ने क़सम खाई कि वह काबा को विध्वंस कर देगा और एक बहुत बड़ी सेना लेकर मक्का की तरफ चला जिस की तादाद साठ हज़ार से अधिक बताई गई हॅ और वह स्वयं एक वीशाल हांथी पर सवार हुआ
जब अब्रहा मक्का से दो मील पश्चात मोगाम्मस नामी स्थान पर पहुँचा तो अपने दूत को मक्का के सरदार एवम् मुखिया अब्दुल मुत्तालिब के पास इस संदेश के साथ भेजा कि हम लोग तुम से यूद्ध करने नहीँ आए बल्कि हमारा इरादा खाना काबा को विध्वंंश करना है अब्दुल मुत्तलिब ने उत्तर दिया कि हम भी उनका मुक़ाबला नहीं करना चाहते क्योंकि हमारे पास इतनी शक्ति नहीं है जिस से अब्रहा का मुक़ाबला कर सकें यह घर अल्लाह का घर है वही उसे बचाएगा ,फिर अब्रहा के दूत ने कहा कि मेरे साथ अब्रहा के पास चलो उसने तुम्हे बुलाया हॅ अब्दुल मुत्तलिब अब्रहा के पास गये जब अब्रहा ने उन को देखा तो उनकी काफ़ी आव भगत तथा आदर सम्मान किया क्योंकि वह काफ़ी सुंदर तथा भावी व्यक्तित्व के मालिक थे ,अब्रहा ने अपने अनुवादक से कहा : इस से पुछो कि तुम क्या चाहते हो ? अब्दुल मुत्तलिब ने कहा मेरा दो सौ ऊँट लौटा दो जिन्हें पकड़ रखा है !जब अब्दुल मुत्तलिब ने यह बात कही तो अब्रहा को आश्चर्य हुआ और अब्दुल मुत्तलिब की हैसियत उस की
नज़रों में कम हो गई और उसने कहा कि तुम मुझ से दो सौ ऊँटों कि बात कर रहे हो और उस घर का नाम तक नहीं लेते जो तुम्हारा और तुम्हारे पुरखों का धर्म है और जिसे मै ध्वस्त करने आया हूँ अब्दुल मुत्तलिब ने उस से कहा : मैं केवल ऊँटों का मालिक हूँ उस घर का मालिक अल्लाह है वही उसको बचाएगा
अब्दुल मुत्तलिब जब वहाँ से वापस आए तो क़ुरेश वालों को एकट्ठा किया और उनको पूरी बात सुनाई एवम् उनको पहाड़ों आदि में चले जाने को कहा तथा स्वयं कुछ गिने चुने लोगों को लेकर खाना काबा के पास गये और उस के द्वार की कुण्डी पकड़ कर काबा की हिफ़ाज़त के लिए अल्लाह से खूब प्रार्थना की और अब्रहा की सेना के खिलाफ मदद माँगी फिर उसके उपरांत अपने लोगों मे वापस हो गये तथा पार्तीक्षा करने लगे कि अब्रहा मक्का में दाखिल हो कर क्या करता है
अब्रहा की सेना जब मीना एवम् मुज़दलफ़ा के बीच पहुँची तो अचानक सागर की तरफ से अबाबील नामी चीड़ीयों की एक झुंड आई और उन पर कंकर बरसा कर उनका नाश करने लगी हर चीड़या तीन कंकर उठाए हुए थी एक चोंच में और दो अपने दोनों पावं में अब्रहा की सेना में भगदड़ मच गयी और सेना के लोग मर मर कर गिरने लगे अब्रहा को भी उसके नाम का पत्थर लगा और उसका नाश हो गया

आप का जन्म

मक्का में आप का जन्म अरबी तारीख की नौ रबिउल अव्वल को सोमवार के दिन सुबह के समय हुआ जो की अँग्रेज़ी तारीख का २० या २२ अप्रेल सन ५७१ ईस्वी बनता है लोगों में बारह रबीउल अव्वल मशहूर है लेकिन अध्ययन के पश्चात ९ रबीउल अव्वल ही सही मालूम होता हॅ जिसे बड़े बड़े अध्ययन कर्ताओं ने बयान किया है जिन में अल्लामा शिबली नोमानी , अल्ल्लामा सलमान मंसूरपुरी , एवम् मौलाना सफिउर रहमान मोबारकपुरी आदि क़ाबिले ज़िक्र है
जब आप का जन्म हुआ तो आप की माता के जिस्म से एक नूर निकला जिस ने शाम नामी मुल्क के महलों को रौशन कर दिया
ये वहीं साल है जिस में यमन के गवर्नर अब्रहा अश्रम ने खाना काबा को ढाने के लिए मक्का पर चढ़ाई कीया था और अल्ल्लाह ने अबाबील नामी चिड़ियों के ज़रिए उनका सर्वनाश कर दिया था

मंगलवार, 4 मई 2010

आप के पिता अब्दुल्लाह

आप के पिता अब्दुल्लाह अतिसुंदर तथा पवित्र चरित्र के मनुष्य थे इनको " ज़बीहुल्लाह " अर्थात " जिसे इश्वर के लीए बलि दिया गया हो " भी कहा जाता है "
हुआ यूँ कि इनके पिता अब्दुल मुत्तलिब ने ज़मज़म का कुँआ खोदा और जब कुआँ दिखने लगा तो क़ुरेश से उन का झगड़ा हो गया उस समय उन्होंने यह नज़र मानी कि अगर अल्लाह ने उन्हें दस बेटे दिए तो उन में से एक को अल्लाह के लिए काबा के समीप ज़बह कर देंगे तो जब उनके दस लड़के हो गये तो उन्होंने उनके नाम की पर्ची निकाली पर्ची अब्दुल्लाह के नाम निकली अब्दुल मुत्तलिब उनको लेकर काबा के पास पहुँचे ताकि उनकी बलि दे तो उनके परिवार के लोगों ने एवम् विशेष रूप से उनके ननिहाल वालों ने उनको मना किया तो अब्दुल मुत्तलिब ने उनके फिदिया ( बदले ) में एक सौ उंटों को ज़बह किया पहले उन्हों ने दस उंटों को रख कर पर्ची निकाली पर्ची फिर अब्दुल्लाह के नाम निकली वो बराबर उंटों की संख्या बढ़ाते गये यहाँ तक क़ि उंटों क़ि संख्या एक सौ हो गयी तो पर्ची उंटों के नाम निकली इस तरह अब्दुल मुत्तलिब ने उनके बदले में एक सौ उंटों को ज़बह किया इसी लिए मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्ल्म को " इबनुज़्ज़बीहतैन " अर्थात " दो ज़बह किए गये महापुरुषो के पुत्र" कहा जाता है
अब्दुल मुत्तलिब ने अपने पुत्र अब्दुल्लाह का विवाह बनू ज़ोहरा के मुखिया एवम् सरदार वहब पुत्र अब्दे मोनाफ की पुत्री आमना से कर दिया जो की आदर एवम् संस्कार में क़ुरेश की महिलाओं में सर्वोत्तम थीं शादी के कुछ समय उपरांत अब्दुल मुत्तलिब ने उनको व्यापार के लिए मूलके शाम भेजा वापसी में मदिना में उनका देहांत हो गया और एक क़ौल " कथनी" के अनुसार उनको मदीना ख़ज़ूर लाने के लिए भेजा था जहाँ उनका देहांत हो गया, तथा वहीं पर उनको दफ़न कर दिया गया

शनिवार, 1 मई 2010

आप का नसब नामा /वंश

मुहम्मद( सललाल्लाहो अलैहे वसल्ल्म) पुत्र अब्दुल्लाह पुत्र अब्दुल मुत्तलिब पुत्र हाशिम पुत्र अब्दे मोनाफ पुत्र क़ोषई पुत्र कोलाब पुत्र मुर्रा पुत्र काब पुत्र लोवाए पुत्र ग़ालिब पुत्र फहर पुत्र मालिक पुत्र नज़र पुत्र कनाना पुत्र खोज़ईमा पुत्र मूद्रेका पुत्र इल्यास पुत्र मोज़र पुत्र नज़ार पुत्र मअद पुत्र अदनान
यहाँ तक आपके वंश में सब सहमत हैं , अदनान के बाद थोड़ी विभिन्नता है अलबत्ता सब इस बात पर सब सहमत हैं की अदनान इस्माईल अलैहिस्सलाम की औलाद हैं

काबा का निर्माण और इब्राहीम की प्रार्थना

अगली बार जब इब्राहीम अलैहिस्सलाम मक्का आए तो अपने पुत्र इस्माईल अलैहिस्सलाम से कहा कि अल्लाह ने मुझे हुक्म दिया है कि इस जगह एक घर बनाऊँ , इस्माईल अलैहिस्सलाम ने कहा कि आप के रब ने जो हुक्म दिया है उसे कर डालिए फिर दोनों ने मिल कर अल्लाह के घर खाना काबा का निर्माण किया इस्माईल अलैहिस्सलाम पत्थर ढो कर लाते और इब्राहीम अलैहिस्सलाम उन्हें जोड़ते , जब इमारत उँची हो गई तो इस्माईल अलैहिस्सलाम ने एक पत्थर ला कर उन के पैरॉ के नीचे रख दिया और इब्राहीम अलैहिस्सलाम उस पर खड़े हो कर काबा का निर्माण करने लगे वो पत्थर जिस पर चढ़ कर इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने काबा का निर्माण किया था काबा की दीवार के नीचे रह गया ,उस पर इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पैरो के निशान भी रह गये जिसका नाम अल्लाह ने " मक़ामे इब्राहीम " रख दिया, काबा के निर्माण के बाद उन्होंने अल्लाह से निम्न प्रार्थना की
१- इस घर को उनकी तरफ से क़बूल कर ले
२- दोनों इस्लाम धर्म पर बाक़ी रहें
३- इस्लाम धर्म पर ही उनकी मौत हो
४- उनके बाद उनकी औलाद इस घर क़ी वारिस बने
५- इस दावते तौहीद (केवल एक अल्लाह क़ी पूजा) को सारे संसार में फैला दे
६- उन क़ी औलाद में एक नबी (दूत) भेजे
७- अपनी पूजा एवम् इबादत का सही तरीक़ा एवम् विधि सीखा दे
८- उन्हें क्षमा दे दे
९- काबा को सुरक्षा एवम् शांति वाला स्थान बनाए
१०- उनकी औलाद को बुतपरस्ती से बचाए
११- एवम् उन्हें विभिन्न प्रकार के फलों से आजीविका प्रदान करे
फिर इब्राहीम अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने हुक्म दिया कि लोगों में हज का एलान कर दें सो उन्होंने एलान कर दिया और लोग उनकी आवाज़ सुन कर पूरी दुनिया से लोग हज करने के लीए आने लगे जिस का सिलसिला आज तक जारी है और शायद क़यामत तक जारी रहे
इसके बाद इब्राहीम अलैहिस्सलाम शाम देश को लौट गए और सत्य धर्म के परचार में लग गये यहाँ तक कि एक सौ पचहत्तर वर्ष कि आयु में उनका देहांत हो गया
देहांत के समय उनके दो पुत्र इसहाक़ अलैहिस्सलाम और इस्माईल अलैहिस्सलाम थे इसहाक़ अलैहिस्सलाम शाम में ही रह गए और उन्होंने फ़लस्तीन में मस्जीदे अक़्सा का निर्माण किया बाद में मुहम्मद सललाल्लाहो अलैहै वसल्लम को छोड़ कर जीतने भी नबी और दूत आए उन्हीं कि नस्ल में आए और मुहम्मद सललाल्लाहो अलैहै वसल्लम उनके दूसरे एवम् बड़े पुत्र इस्माईल अलैहिस्सलाम कि नस्ल में आए.
इस्माईल अलैहिस्सलाम मक्का में काबा के पड़ोस ही में क़बीला जुरहूम कि एक लड़की से विवाह करके उनके साथ बस गए और फिर अल्लाह ने उनको , उनका और यमन वालों का नबी बना दिया. एक सौ सैंतीस वर्ष कि आयु में मक्का ही में उनका देहांत हो गया इस्माईल अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने बारह बेटे दिए जिन में नाबीत एवम् कैज़ार माशहूर हुए तथा कैज़ार की औलाद में अदनान हुए अदनान के दो बेटे हुए अक तथा मअद , अक यमन चला गया और मअद मक्का में ही रहा जिन की नस्ल से मुहम्मद सललाल्लाहो अलैहै वसल्लम हैं