रविवार, 11 अक्तूबर 2009

जहाँ आप पैदा हुए

: अरब
आप की पैदाइश अरब प्रायद्वीप में हुई जो दक्षिण पश्चिम एशिया में तीन तरफ
: पूरब , पश्छिम एवंम दक्षिण ) से सागरों से घिरा हुआ है , जिसकी चौहद्दी कुछ इस प्रकार है )
पूरब में ओमान सागर एवं अरब खाड़ी,पश्छिम में लाल सागर( कुल्ज़ुम सागर ) फिर सीनै प्रायद्वीप , दक्षिण में हिंद महासागर एवं अदन की खाड़ी एवं उत्तर में शाम एवं ईराक के कुछ देश हैं
अरब द्वीप पॉँच प्रकार के हैं : - (१) तेहामा : यह सरात नाम की पहाडी का पश्चिमी भाग है जो लाल सागर के सामने है इस का ज्यादह तर भाग रेतीला , गरम और कम हरयाली वाला है !
२- नज्द : यह सरात पहाडी का पूर्वी भाग है और पश्चिमी भाग से बड़ा है , सरज़मीन नज्द भी दो प्रकार के हैं
१) ऊंचाई वाला भाग जो हिजाज़ से सटा हुआ है )
२) निचला भाग जो इराक से सटा हुआ है )
(३- हिजाज़ : यह सरात पहाडी का उपरी भाग है , इस के मशहूर शहरों में से मक्का , मदीना एवं तायेफ़ है !
४- ओरूज़ : यह यमामा , बहरैन एवं उन से सटे हुए इलाकों का नाम है
५- यमन : यह अरब दीप का दक्षिणी भाग है

अरब क़ौम
:इतिहासकारों ने अरब कौमों को तीन भागों में बांटा है
१- अरब बाइदा : यह सब से पुरानी अरब क़ौम है जिनका इस धरती से नामोनिशान मिट चूका है , इन कौमों में मशहूर : आद ,षमूद , तस्म , जदीस , इम्लाक , जुर्हुम , हजूर एवं हज़र्मूत आदि हैं
(२- अरब आरेबा : इनका दूसरा नाम कहतानी अरब भी है , यह यारुब के बेटे यश्जुब की वंश से हैं इनकी ज्यादा तर आबादी यमन में रही , फिर इनकी जनजातियाँ अरब द्दीप के भिन्न छेत्रों में फ़ैल गईं इन्हीं में से एक जुर्हुम नामी काबीला था जो इस्माईल अलैहिस्सलाम की माता हाजरा अलैहास्सलाम की सहमती से मक्का में ज़मज़म कुआँ के पास बस गया था
३- अरब मुस्तारेबा : इनका दूसरा नाम अदनानी अरब है , यह पैग़म्बर इस्माईल अलैहिस्सलाम की वंश से हैं , यहाँ यह बता दें की पैग़म्बर इस्माईल अलैहिस्सलाम के पिता पैग़म्बर इब्राहीम अलैहिस्सलाम अरबी नस्ल(वंश) से नहीं थे बल्कि यह इराक में बाबुल नामी स्थान के रहने वाले थे फिर हिजरत (प्रवास ) करके शाम (सीरिया) चले गए थे
मक्का
इस्लाम का पवित्रतम शहर है जहाँ पर काबा और मस्जिद-अल-हरम (पवित्र या विशाल मस्जिद) स्थित है। मक्का शहर वार्षिक हज, जो इस्लाम के पाँच स्तंभों में से एक है के लिये प्रसिद्ध है।
इस्लामी परंपरा के अनुसार मक्का की शुरुआत इस्माईल अलैहिस्सलाम ने की थी। 7 वीं शताब्दी में, इस्लामी पैगम्बर मोहम्मद ने शहर में जो तब तक, एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र था मे इस्लाम की घोषणा की और इस शहर ने इस्लाम के प्रारंभिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सन 966 से लेकर 1924 तक, मक्का शहर का नेतृत्व स्थानीय शरीफ द्वारा किया जाता था। 1924 मे यह सउदी अरब के शासन के अधीन आ गया।
आधुनिक मक्का शहर सउदी अरब के ऐतिहासिक हेजाज़ क्षेत्र में स्थित है। शहर की आबादी 1700000 (2008) के करीब है और यह जेद्दा से 73 किमी (45 मील) की दूरी पर एक संकरी घाटी में समुद्र तल से 277 मीटर (910 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है।
पवित्र मक्का आबाद होता है
अल्लाह के पैग़म्बर इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपनी पत्नी हाजरा अलैहस्सलाम एवंम अपने पुत्र इस्माईल अलैहिस्सलाम को अल्लाह की आज्ञा से मक्का शहर में पवित्र काबा के पास बसा दिया उस समय वहां मीलों तक कोई आबादी नहीं थी फिर ज़मज़म का कुवां फूटने के बाद जुर्हुम नामी कबीला हाजरा अलैहस्सलाम कि अनुमति से वहां बस गया इन्हीं से इस्माईल अलैहिस्सलाम ने अरबी भाषा सीखी और इसी कबीले की लड़की बस्सामा की बेटी मजाज़ से विवाह कर लिया जिनसे इनको बारह बेटे हुए !
इस्माईल अलैहिस्सलाम की कुर्बानी
इब्राहीम अलैहिस्सलाम अल्लाह के दूत और नबी थे अपनी पत्नी और पुत्र कि खोज खबर के लिए कभी कभार मक्का आते रहते थे उनहोंने एक बार सपने में देखा कि वो अपने अपने पुत्र इस्माईल को ज़बह कर रहे हैं (यहाँ पर यह बता दें कि पैग़म्बर का सपना इश्वर्य आज्ञा (वही) हुआ करता है ) मक्का आकर यह आज्ञा आप ने अपने मासूम पुत्र को सुनाई जो उस वक़्त तेरह बरस के थे तो उनहोंने भी अपने पिता को अल्लाह की आज्ञा को पूर्ण करने को कहा लेकिन जब दोने बाप बेटे अपने जीवन को इश्वर के लिए समर्पित कर दिया और बाप ने बेटे के गले पर छुरी रख दी तो इश्वर ने पुकारा " ऐ ईब्राहीम ! तुम ने अपने सपने को सत्य कर दिखाया हम अच्छे लोगों को इसी तरह ईनाम एवं बदले दिया करते हैं " फिर अल्लाह ने इस्माईल के बदले एक दुंबा दिया जिसकी उनहोंने कुर्बानी करके अल्लाह के लिए खुद को पूर्ण रूप से समर्पित कर दिया , यह वही कुर्बानी है जिसे उस समय से लेकर कयामत तक अल्लाह ने जारी कर दिया जिसे करोडों इन्सान प्रत्येक वर्ष हज के समय अंजाम देते हैं !
काबा
इब्राहीम अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने मक्का में एक पवित्र घर बनाने का निर्देश दिया और उनहोंने अपने पुत्र की मदद से काबा जैसे पवित्र और महान घर की बुन्याद डाली और कुछ दीनों में इसे पूरा किया इस्माईल अलैहिस्सलाम पत्थर ढोकर लाते और इब्राहीम अलैहिस्सलाम एक पत्थर पर खड़े हो कर दिवार बनाते , जिस पत्थर पर आपने अपना पैर रख कर काबा का निर्माण किया उस पर आज भी उनके पैरों के निशान मौजूद है और इसे मकामे इब्राहीम के नाम से जाना जाता है!
जब काबा का निर्माण हो गया तो इश्वर ने उन्हें सम्पूर्ण विश्व के लिए वहां आकर हज्ज करने का ऐलान करने को कहा अतः उस समय से अब तक लोग विश्व के कोने कोने से आकर हर साल लाखों की तादाद में हज एवं ज़ेयारत करते हैं ! एवं पुरे विश्व के मुसलमानों को अल्लाह ने उसी काबा की तरफ मुंह करके नमाज़ पढने का आदेश दिया है !

बुधवार, 7 अक्तूबर 2009

आप के जीवन का महत्व

अल्लाह ने आप के जीवन को सम्पूर्ण मनुष्य जाती के लिए एक अच्छा आदर्श बनाया है, संसार की भलाई और जीवन का सच्चा आनंद अगर किसी मार्ग पर है तो वह केवल आप के दिखाए हुए मार्ग पर है , क्योंकि आप का सारा जीवन एक आईने की तरह सम्पूर्ण संसार के समक्ष है , सत्यता , ईमानदारी , शांति एवंम सौहार्द आप की जीवन का पर्मुख लक्ष्य रहे हैं इसीतरह अल्लाह के अंतिम संदेस्वाहक होने के नाते मनुष्य पर आप का अनुसरण अनिवार्य है
संसार के रचईता इश्वर की पूजा एवंम उसकी आज्ञापालन का सहीह तरीका आप के कार्यों और कथन के अनुसरण से ही संभव है , क्योंकि मनुष्य ने अपने जीवन में गुज़रते वक़्त के साथ एक इश्वर को छोड़ कर अनेक बल्कि अनगिनत वस्तुओं और जीव जंतुओं की परस्तिश एवंम पूजा शुरू कर दिया अतएव इश्वर ने मनुष्य को इन अनेकों की पूजा से निकाल कर केवल एक की पूजा की ओर मार्गदर्शित करने के लिए अनेकों दूत इस संसार में भेजे, जिन्होंने अपने कार्यों को खूब अछि तरह से निभाया एवंम अपने जीवन के हर पल को मनुष्यता की भलाई एवंम उनकी सफलता के लिए समर्पित कर दिया !
इन संदेस्वाह्कों में अंतिम संदेष्ठा के रूप में इश्वर ने अरब के शहर मक्का के अंदर आप को भेजा ताकि आप मनुष्य की भलाई का वोह काम जो लाखों संदेश वाहकों ने आप से पहले संसार को बताया उन्हें नए सीरे से उन्हें याद दिला दें , इश्वर फ़रमाता है : " ऐ मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) मैंने आप से पूर्व जो भी दूत (इस संसार में ) भेजा उसे यह पैगाम(संदेश) देकर भेजा कि ( संसार को बता दें कि ) केवल मैं ही पूजा एवं परस्तिश के लायक हूँ इसलिए केवल मेरी ही पूजा कि जाए !
मुहम्मद(सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) चूँकि अंतिम संदेष्ठा के रूप में इस संसार में आए, इसलिये आप के जीवन का महत्व सारी मनुष्य जाती के लिए सूर्य कि किरण से भी ज्यादा उजागर है क्योंकि आप के पश्चात् क़यामत तक कोई भी नबी नहीं आ सकता !

अँधेरी दुनिया की किरण

जब दुनिया घनघोर अंधेर में डूबी हुई थी ज़ुल्म , हत्या , चोरी चकारी, अपशगुन , मासूम बेटियों को जिंदा ज़मीन में गाड़ देना एवं इन जैसी अनेक और अनगिनत बुराइयाँ और महा पाप आम हो गया था, एवं एक अल्लाह के बजाए अनेक प्राणी एवं जीव जंतुओं की पूजा की जाने लगी थी उस वक़्त अल्लाह ताला ने अपने रसूल (दूत) मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को दुनिया को इन बुराइयों से पाक करने और मनुष्यता को ज़ुल्म और पाप से निकालने के लिए एवंम मनुष्य को एक अल्लाह की पूजा के लिए बुलाने की खातिर अंतिम संदेष्ठा के रूप में भेजा ! जिन्होंने अपने दायित्व को पूर्ण रूप से पूरा किया और दुनिया को पाप और ज़ुल्म के अँधेरे से निकल कर पुण्य और न्याय के मार्ग पर चलने के लिए उनका पूर्ण रूप से मार्गदर्शन किया, फिर देखते ही देखते सम्पूर्ण विश्व इस किरन के उज्यारों से भर गया !
हम अगले पन्नों में इस महान व्यक्ति के जीवन का वोह तथ्य आपके समक्ष रखेंगे जिसने दुनिया को शांन्ति एवं सौहार्द की ऐसी शिक्षा दी कि उस से पूर्व किसी भी धर्म अथवा संस्कृति ने नहीं दिया , और न हीं उसके बाद ही किसी ने ऐसी शिक्षा पेश की ! आइये हम उस महान व्यक्ति के जीवन का अध्ययन करके अपने जीवन को सुधार के मार्ग पर लाने की कोशिश करें !