सोमवार, 4 जनवरी 2016

आयशा और सौदा रज़ीअल्लाहो अन्होमा से आप का विवाह


खदीजा रज़ीअल्लाहो अन्हा की वफ़ात के एक माह बाद शव्वाल के महीने में आप ने सौदा रज़ीअल्लाहो अन्हा से विवाह किया जो ज़मआ की बेटी थीं.आप से पहले उनकी शादी चचाज़ाद सकरान बिन अम्र  रज़ीअल्लाहो अन्हो से हुई थी , यह दोनों पहले इस्लाम लाने वालों में से थे और हब्शा की तरफ हिजरत किये थे फिर दोनों हब्शा से मक्का वापस आये जहाँ सकरान का देहांत हो गया फिर जब इनकी इद्दत गुज़र गई तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से निकाह हुआ, आखिर में इन्हों ने अपनी बारी को आयशा रज़ीअल्लाहो अन्हा को दे दिया था।  
सौदा रज़ीअल्लाहो अन्हा से शादी के एक वर्ष बाद शव्वाल के महीने में ही मक्का के अंदर आप ने आयशा रज़ीअल्लाहो अन्हा से निकाह किया उस समय उनकी उम्र  छह साल की थी लेकिन आप की बिदाई एक साल के बाद मदीने में हुई। यह आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की सब से महबूब पत्नी थीं और उम्मत की सब से समझदार औरत थीं।   


मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

क़ुरैश के बदमाशों का रवैया



जब तक अबु तालिब जीवित रहे क़ुरैश के बदमाशों को आप सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम को सताने  में संकोच होता था, लेकिन आबू तालिब की मौत के बाद वो लोग आप की शान में बहुत ज़्यादा गुस्ताख़ हो गए, और आप को तरह तरह से सताने और तकलीफ देने लगे,यहाँ तक कि क़ुरैश के एक नादान आदमी ने आप के ऊपर मिट्टी डाल दी ,आप घर आए तो आप की एक बेटी आप के चेहरे से रोते  हुए मिट्टी झाड़ने लगी तो आप ने कहा : बेटी मत रो अल्लाह ताआला तुम्हारे बाप की सुरक्षा करने वाला है। फिर आप ने कहा : क़ुरैश ने अबुतालिब की मृत्यु से पहले मेरे साथ कभी कोई बड़ी बदसलूकी नहीं की।

गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

ग़म का साल

नबूवत मिलने का  दसवां  साल  आप सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम पर बहुत ही मुश्किलों भरा रहा, एक तरफ मुशरिकों की तरफ से आप को अज़ियतें और तकलीफें दी जाती रहीं, और आप को इस्लाम के प्रचार से रोकने की पूरी कोशिश की जाती, रही इसी दौरान आप को स्पोर्ट करने वाले और हर मुसीबत में साथ देने वाले चचा अबु तालिब और हद से ज़्यादाह प्यार करने वाली और हर मौक़ा से 
सन्तावना देने वाली पत्नी का देहांत हो गया।

चाचा अबुतालिब का देहांत


घाटी से निकलने के छह महीने बाद रमज़ान या शव्वाल या ज़िलक़ादा सन १० नबवी में  आप के चाचा अबुतालिब का देहांत हो गया, जब उनकी  मौत का समय आया तो आप उनके पास गए, उस वक़्त वहाँ पर अबु जहल और अब्दुल्लाह इब्ने अबी ओमैया मौजूद थे, आप ने अबु  तालिब से कहा :" ऐ चाचा जान आप "ला इलाहा इल्लल्लाह " कह दीजिए ,क्यूंकि यह एक ऐसा कलमा है जिसके ज़रिये अल्लाह से आप की बख्शीश के लिए सिफारिश कर सकूँ " तो अबूजहल और अब्दुल्लाह इब्ने अबी ओमैया ने कहा :ऐ अबुतालिब! क्या आप अनपे बाप दादा के धर्म से फिर जाएंगे ? दोनों अपनी बात कहते रहे यहाँ तक की अबु तालिब ने कलमा पढ़ने से इनकार कर दिया, और आखरी बात जो कही वो यह कि "मुझे अब्दुल मुत्तलिब के धर्म पर मरना है। " फिर आप ने कहा कि :" मैं उस वक़्त तक अल्लाह से आप के लिए बख्शीश तलब  करता रहूंगा जब तक उस से रोक न दिया जाऊं " उसी वक़्त अल्लाह तआला  ने आयते करीमा नाज़िल फ़रमाई , जिसका अर्थ है :( नबी के लिए और दूसरे मुसलमानों के लिए यह जाएज़ नहीं कि  मुशरेकीन के लिए  मग़फ़ेरत की दुआएं करें, यह उनके क़रीबी रिश्तेदार ही क्यों न हों, यह ज़ाहिर  हो जाने के बाद कि यह लोग जहन्नमी हैं )(सूरह तौबा :११३ )
और अबुतालिब के बारे में आप से फरमाया :( आप जिसे चाहें हिदायत नहीं दे सकते बल्कि अल्लाह तआला ही जिसे चाहे हिदायत देता है ) (सूरह क़सस :५६)

पत्नी खदीजा का देहांत


अभी आप के चाचा की मौत का ज़ख़्म ताज़ा ही था कि आप की हमदर्द और ग़मख़ार सब से प्यारी पत्नी और मुसलमानों की माँ  खदीजा रज़ीअल्लाहो अन्हा का देहांत हो गया , उनका देहांत अबुतालिब के देहांत के तीन दिनों बाद रमज़ान के महीने में हुआ। 
खदीजा रज़ीअल्लाहो अन्हा ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की हर मोड़ पर अपनी जान और माल से मदद की आपके हर ग़म और तकलीफ को बांटा , अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम फरमाया करते थे :" खदीजा मुझ पर उस वक़्त ईमान लाईं जब लोगों ने मेरा इंकार किया ,मुझे सच्चा जाना जब लोगों ने मुझे झुटला दिया , जब लोगों ने मुझे कुछ नहीं दिया तो उन्हों ने अपने धन दौलत में मुझे साझी किया ,और उनसे अल्लाह ने मुझे औलाद दी जब कि दूसरी पत्नियों से नहीं दिया।" 
एक दिन जिब्राईल अलैहिस्सलाम अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो  वसल्लम के पास आये और कहा : ऐ अलाह के रसूल ! यह खदीजा आ रही हैं इनके हाथ में कोई सालन अथवा खाने या पीने की कोई चीज़ है, जब यह नज़दीक आएं तो उनको मेरा और उनके रब (अल्लाह) का सलाम  दीजिये और उनको जन्नत में बांस के बने हुए एक घर की खुशखबरी सूना दीजिये जिसमें न कोई परेशानी होगी और न हल्ला गुला।

अल्लाह  के रसूल सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम हमेशा प्यार और मोहब्बत से इनको याद किया करते, और घर में कोई चीज़ आती या बकरी ज़बह करते तो नकी सहेलियों को भिजवाते।

रविवार, 8 मार्च 2015

मुकम्मल समाजी बहिस्कार


जब मुशरेकीन के सारे हीले और बहाने खत्म हो गए और उन्हों ने देखा कि बनु हाशिम और बनु मुत्तलिब  आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की हिफाज़त पर आमादा हैं , और हर हाल में आप का साथ दे रहे हैं, तो उन्होंने एक मीटिंग बुलाई जिसमें   मौजूदा समस्या का कोई मोकम्मल समाधान निकाला जाए।
इस पंचायत में वो लोग खूब गौरोफ़िकर के बाद एक क्रूर समाधान पर पहुंचे एवं उस पर सौगंध खाई कि जब तक यह लोग मुहम्मद(सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) को उनके हवाले न कर दें, ताकि वो उन्हें क़तल कर दें ,बनु हाशिम और बनु मुत्तलिब का सम्पूर्ण समाजी बायकाट कर दिया जाए , उनसे कोई भी रिश्ता नहीं रखा जाए , न उनके साथ शादी बियाह किया जाए , न खरीदो फरोख्त किया जाए , न उनके साथ बैठा जाए , न उनके यहाँ जाया जाए , न उनसे बात की जाए , और न ही उनसे कोई सुलह सफाई की जाए।
इस फैसले को लागू करने पर सब ने क़सम खाई और उसे एक कागज़ पर लिख कर खाना काबा के अंदर लटका दिया। इस  फैसले को बगीज़ बिन आमिर बिन हाशिम ने अपने हाँथ से लिखा था जिस पर आप(सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) ने बद्दुआ कर दी थी जिसकी वजह  उसके हाथ को लक़वा मार दिया था।
बनु हाशिम और बनु तालिब के सारे लोग अबु लहब को छोड़ कर चाहे वो मुसलमान हों या काफ़िर शेबे अबितालिब नामी घाटि में चले गए और उनसे हर चीज़ रोक दी गयी जिस से उनको काफी मशक़्क़त और परेशानी उठानी पड़ी यहाँ तक कि पत्ते और चमड़े  खाने पर मजबूर हो गए। भूक के मारे औरतों और बच्चों के रोने  आवाज़ें सुनाई देती थीं ,कभी कभी कोई चीज़ चोरी छिपे  उन तक पहुँच जाती  थी , हकीम बीन हेशाम अपनी फूफी खदीजा रज़ी अल्लाहो अन्हा तक कुछ जौ या गेहू पहुंचा दिया करते थे ,वो लोग केवल हुरमत वाले दिनों में ही घाटी से निकलते थे और  बाहर से आने वाले व्यवसायियों से ही कुछ खरीदते थे ,फिर भी जब मक्का वालों को मालूम पड़ जाता था तो जाकर सामान की क़ीमत इतनी बढ़ा देते थे कि वो लोग खरीद न सकें।
इसके बावजूद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अपनी दावत जारी रखे रहे और लोगों को एक अल्लाह की इबादत की तरफ बुलाते रहे , ख़ास कर हज के दिनों में जब अरब के क़बाएल हर तरफ से मक्का 
आते थे।

क़रार का अंत
तीन वर्षों तक मक्का वालों का यह क्रूर रवैय्या चलता रहा उसके बाद अल्लाह तआला ने उन लोगों से यह मुसीबत खत्म करने का इरादा किया अतः उनलोगो में से पांच सज्जनो  के दिल में इस क़रार नामा को खत्म करने की बात डाल दी , इन लोगों ने जब  इस अन्याय और ज़ुल्म तथा कोरैशियों के घमंड को देखा तो एक जगह मीटिंग किया और इस ज़ालिमाना अहद नामा  को खत्म करने प्रण लिया , वो पांच लोग हैं: हिशाम बिन अमर बिन हारिस , ज़ोहैर बिन अबु ओमैया (यह आप की फूफी आतेका के बेटे थे ) अबुल बख्तरी बिन हिशाम , मूतइम बिन अदी और ज़मआ  बिन अस्वद।
प्लान के अनुसार यह लोग सुबह के समय मस्जिदे हराम में आये , उस वक़्त क़ुरैश वाले खाना काबा के आस पास बैठे हुए थे, ज़ोहैर तवाफ़ करने के बाद उन लोगों के पास आया और कहने लगा कि : ऐ मक्का वालों ! हम लोग खाते पहनते हैं ,और यह लोग तबाह हो रहे हैं , अल्लाह की क़सम जब तक यह ज़ालिमाना अहदनामा फाड़ नहीं दिया जाता मैं चुप नहीं बैठूंगा।  तो अबुजहल ने कहा : तू झूठा है अल्लाह की क़सम यह अहदनामा नहीं फाडा जाएगा।  तो ज़मआ  ने उठ कर कहा : अल्लाह की क़सम तुम सब से बड़े झुटे हो, हम लोग इसे लिखे जाने के समय ही इस के हक़ में नहीं थे। फिर अबुलबख्तरी ने उठ कर कहा कि :ज़मआ  की बात सच है हम इस से कभी राज़ी नहीं थे और न ही कभी इस की ताईद की। उसके बाद मूतईम  ने कहा : तुम दोनों सच कहते हो , और इसके अलावा जो भी है वो सब झूट है हम इस से अपनी बराअत का इज़हार करते हैं। हिशाम बिन अमर ने भी इसकी ताईद की।  अबुजहल ने कहा:यह साज़िश रात में रची गई है और इसका इसका मशवेरा यहाँ आने से पहले हो चुका है।  फिर मूतइम  बिन अदि  खड़े हुए और उस अहद नामा को फाड़ दिया।

अबु तालिब मस्जिद के एक कोने में बैठे हुए थे जो उनलोगों को यह बताने आये थे की मुहम्मद(सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) ने उनको खबर दी है कि वही के ज़रीये अल्लाह तआला ने उन्हें खबर दी है कि  दीमक ने इस अहद नामा में मौजूद ज़ुल्म और बेवफाई वाली सारी  बातों को चाट लिया है और अल्लाह के नाम के सिवा उस में कुछ भी बाक़ी नहीं है। फिर जब सारे लोगों ने जाकर देखा तो वाक़ेई उस में अल्लाह के नाम के अलावा कुछ भी बाक़ी नहीं था।     

सोमवार, 13 अक्तूबर 2014

यहूदियों के तीन प्रश्न

    

मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को परेशान करने की ख़ातिर  मक्का वालों ने नज़्र  बिन हारिस और उक़्बा  बिन अबु मोईत को मदीना के यहूदी पंडितों के पास भेजा ताकि उनसे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के बारे में पूछें।  
यहूदियों ने उन दोनों से कहा कि तुम लोग उस से तीन बातें पूछो अगर वह तुम को इनकी सही ख़बर दे तो समझ लो कि वह अल्लाह का नबी है :
१ -उन युवाओं के बारे में पूछो जो पिछले ज़माने में गुज़र चुके हैं , उनका क्या मामला था ? (पुराने समय में कुछ नौजवान थे जिन्हों ने अपने ईमान  बचाने  लिए एक ग़ार  में पनाह लिया था और तीन सौ नौ वर्षों तक सोये रहे थे और जब वह जगे तो उनको लगा कि  वह दिन के कुछ पहर ही  सोये हैं . )
२ -  उस से उस आदमी के बारे में पूछो जिसने पूरब और पश्चिम समस्त भूमी का दौरा किया था। (ज़ुलक़रनैन के बारे में)
३ - तुम लोग उस से रूह (आत्मा)बारे में पूछो कि उसका सत्य क्या है ?
वह दोनों मक्का आये और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से  यह तीनों प्रश्न किये , आप ने उनसे कहा : मैं इन तीनों प्रश्नों का उत्तर तुम को कल दूंगा , और आप ने ईनशाअ अल्लाह नहीं कहा तो पंद्रह दिनों तक वही का आना बंद रहा जिसकी वजह से आप बहुत ज़्यादा परेशान और दुखी हुए , फिर सूरह कहफ़ नाज़िल हुई  जिसमें अल्लाह की तरफ से अपने रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ताईद में इन  तीनों प्रश्नों का उत्तर दिया गया है।   


चाँद के दो टुकड़े



उनके इन्हीं मोतालेबात में से एक यह था कि  अगर तुम सच्चे हो तो चाँद के दो टुकड़े कर के दिखाओ अतः अल्लाह ने इस  मोजज़ा के ज़रीये आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की मदद फ़रमाई और आप ने चाँद की तरफ़  इशारा किया और चाँद के दो टुकड़े हो गए ,एक टुकड़ा अबुक़ोबैस नामी पहाड़ी पर नज़र आने लगा  तो दुसरा सोवैदा नामी पहाड़ी के ऊपर। जब यह नज़्ज़ारा काफिरों ने  देखा तो कहने लगे कि मुहम्मद ने उन पर जादू कर दिया है।      

उल्टे सीधे प्रश्न



मुशरेकीन ने देखा कि मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने  उनके सारे मोतालेबात को ठुकरा  दिया है तो उन्होंने आप को परेशान तथा विफल  करने के लिये उल्टे  सीधे प्रश्न और मोतालबे  करना शुरू  कर दिया : कभी कहते कि  अपने अल्लाह से  कहो कि  मक्का की इन पहाड़ियों को हम से दूर कर दे जिनकी वजह से मक्का की भूमि  हमारे लिए तंग हो गयी है ,कभी कहते कि  अपने अल्लाह से कहो कि  हमारे ऊपर जल्दी अज़ाब  नाज़िल करे।                                          

मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

अनोखी पेशकश


ऊमर  और हमज़ा  रजिअल्लाहो  अन्हुमा के इस्लाम लाने से मुसलमानों को जो ताक़त और हौसला मिला उसे देखते हुए मुशरेकीन ने एक मीटिंग बुलाई ताकि मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और मुसलामानों के बारे में कोई उचित फैसला कर सकें, उस मजलिस में उतबा बिन रबीआ जो कि अपनी क़ौम का एक रसूखदार और पहुंच वाला व्यक्ति था ने कहा:क्यूँ न मैं मुहम्मद(सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) से बात करूं  और कुछ पेशकश करूं शायद उनमें से कुछ मान ले और हमारे खिलाफ कुछ न कहे। लोगों ने कहा ठीक है जाकर बात कीजिये, अतःउतबा बिन रबीआ  अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के पास गया,(उस समय आप अकेले मस्जिद में बैठे हुए थे) और कहा ऐ भतीजे!तू हम में वंश और खानदान के हिसाब से सब से अच्छे हो, और तुम ने अपनी क़ौम पर एक बहुत बड़ा बोझ लाद दिया है जिस से उनमें फूट पड़ गई है , तुम उनके देवताओं को बुरा कहते हो और उनके बाप दादाओं को काफिर कहते हो ,सुनो मैं तुम्हारे सामने कुछ बातें रखता हूँ शायद तुम उन में से कुछ को स्वीकार कर अपने काम से बाज़ आ जाओ!आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने कहा :ऐ अबुल वलीद आप बोले मैं सुन रहा हूँ। तो उतबा ने कहना आरम्भ किया :
ऐ भतीजे! तुम अपने धर्म के बदले दौलत चाहते हो तो हम तुम्हे इतनी दौलत देंगे कि तुम सब से ज़यादा मालदार हो जाओगे, और अगर सरदारी चाहते हो तो हम तुम्हे अपना सरदार बना लेंगे और तुम्हारी आज्ञा का पालन करेंगे और अगर राजा बनने कि ख्वाहिश है तो हम तुम्हे अपना राजा बनाने को तैयार हैं , और अगर औरत चाहिए तो कुरैश की जिस औरत से कहो हम तुम्हारा दस विवाह करा देंगे, और अगर तुम्हारे ऊपर जादू हो गया है तो कहो हम दौलत खर्च कर के तुम्हारा पूर्ण ईलाज कराएंगे।
उसके बाद आप सल्लल्लाहो वसल्लम ने कहा:ऐ अबुल वलीद! तुम ने अपनी बात कह ली. उस ने कहा हाँ। आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने कहा:अब मेरी सुनो, फिर आप ने सुरह सजदा की आयतें तिलावत करना शुरू कर दी तिलावत से फारिग हुए तो उतबा वहाँ से उठ कर अपने साथियों के पास आया लोगों ने जब उसे देखा तो कहा , उतबा जैसा गया था वैसा नहीं कुछ बदला बदला सा है। फिर जब उतबा उनके पास आकर बैठ गया तो उन लोगों ने पूछा उतबा क्या हुआ? तो उसने कहा अल्लाह की सौगंध मैंने जो कलाम(बात) सुना है मैंने कभी नहीं सुनी थी अल्लाह की सौगंध उसकी बातें न कविता है न जादू है और न ही किसी काहिन की बातें हैं, ऐ क़ुरैश के लोगों उसे अपनी हालत पर छोड़ दो अगर अरब के लोग इनको ख़तम कर देते हैं तो तुम्हारा काम हो जाएगा और अगर यह ग़ालिब आते हैं तो  इनकी  हुकूमत तुम्हारी हुकूमत होगी और इनकी इज्ज़त तुम्हारी इज्ज़त होगी और इनको पाकर तुमलोग दुनिया के सब से खुशनसीब लोग होगे। यह सुन कर उनलोगों ने कहा:ऐ अबुल वलीद उसने तुम पर जादू कर दिया है। उतबा ने कहा: यह मेरी राय है ,बाक़ी तुम लोग जो समझो करो।
जब यह लोग आप को वैश्विक लालच देने में नाकाम हुए तो आप को धार्मिक बार्गेनिंग में फंसाने की कोशिश की और कहा कि क्यूँ न हम यह रास्ता निकालें कि आप हमारे देवताओं की एक वर्ष पूजा करें और हम एक साल आप के अल्लाह की पूजा करें इस तरह जो सत्य होगा उसका कुछ भाग हमें मिल जाएगा। उसी समय अल्लाह तआला ने सुरह काफिरून नाज़िल फरमाई जिसका अर्थ है :(ऐ मुहम्मद!आप इनसे कह दीजिये कि ऐ काफिरों!जिन चीज़ों कि तुम पूजा करते हो मैं उनकी पूजा नहीं कर सकता। और जिसकी पूजा मैं करता हूँ तुम उसकी पूजा करने वाले नहीं हो ,और न मैं पूजा करने वाला हूँ जिसकी तुम पूजा करते हो, और न तुम उसकि पूजा करोगे जिसकी मैं पूजा करता हूँ , तुम्हारे लिए तुम्हारा धर्म और मेरे लिए मेरा धर्म) इसी तरह यह आयत भी नाज़िल हुई जिसका अर्थ है :(ऐ मुहम्मद आप (इन से) कह दीजिये:ऐ नादानों तुम लोग मुझे अल्लाह के सिवा कि पूजा का हुक्म देते हो) (सुरह जोमर :३९,६४) इसी तरह यह आयत भी नाज़िल हुई जिसका अर्थ है :(ऐ मुहम्मद आप (इन से ) कह दीजिये :तुम लोग अल्लाह के अलावा जिनकी पूजा करते हो उनकीं पूजा से मुझे रोक दिया गया है )

        

रविवार, 26 जनवरी 2014

ऊमर रज़ी अल्लाहो अन्हो का ईस्लाम लाना


हमज़ा  रज़ीअल्लाहो अन्हो  के  ईस्लाम  लाने के तीन  दिनों के बाद उमर  रज़ीअल्लाहो अन्हो  ने भी ईस्लाम  क़बूल  कर लिया . इनके इस्लाम लाने से पहले ही अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो  अलैहे वसल्लम ने अल्लाह से दुआ की थी कि :" ऐ  अलाह ! अबू जहल या खत्ताब के बेटे ऊमर में से जो भी तेरे नज़दीक ज़्यादा प्रिय हो उसके ज़रिये ईस्लाम को शक्ति दे " अतः अल्लाह तआला  ने ऊमर रज़ीअल्लाहो अन्हो के हक़ में आप की प्रार्थना को कबूल कर लिया और सुबह के समय ऊमर रज़ीअल्लाहो अन्हो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो  अलैहे वसल्लम के पास आकर मुसलमान हो गए.इनके इस्लाम लाने की कहानी निम्न है:
काफिरों की तमाम कोशिसों के बावजुद इस्लाम दिनो दिन बढ़ता चला जा रहा था और मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के सहाबा की तादाद बढ़ती चली जा रही थी इसके साथ ही इस्लाम से मुखालफत भी ज़ोर पकड़ती जा रही थी क्यूंकि अरब के बड़े बड़े क़बीलों में और आस पास की  हुकूमतों में भी इस्लाम की चर्चा होने लगी थी . उमर रज़िअल्लाहो अन्हो उन लोगों में से थे जो मुसलमान होने से पहले इस्लाम से और इस्लाम लाने वालों से बहुत ज़्यादा नफ़रत करते थे और मुसलमानों को बहुत ज़यादा तकलीफें  दिया करते थे। एक दिन जब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम काबा के पास नमाज़ पढ़ रहे थे चुपके से क़ुरआन मजीद कि कुछ आयतें सुन लीं इनके दिल में आया कि यह सत्य है लेकिन फिर भी अपने हठ  पर क़ायम  रहे।
एक दिन तलवार लेकर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को क़त्ल करने निकले रास्ते में एक आदमी मिला इनका तेवर देख कर पूछा उमर कहाँ का इरादा है ?  उन्हों ने कहा मुहम्मद(सल्लल्लाहो  अलैहे वसल्लम) को क़त्ल करने जा रहा हूँ।  उस आदमी ने कहा : अगर मुहम्मद(सल्लल्लाहो  अलैहे वसल्लम) को क़त्ल किया तो क्या बनू हाशिम और बनू ज़ोहरा वाले तुम्हे छोड़ देंगे ? उमर ने कहा :लगता है तू भी अधर्म हो गया है। उसने कहा : मैं तुम्हे एक अजीब बात न बताऊँ ? तूम्हारी बहन और बहनोई दोनों मुसलमान हो चुके हैं। यह सुनते ही उमर गुस्से में अपनी बहन के घर चल दिए , जिनके पास खब्बाब बिन अरत रज़िअल्लाहो अन्हो थे और उन्हें क़ुरआन  मजीद पढ़ा रहे थे ,जब इनको उमर कि आहट हुई तो खब्बाब रज़िअल्लाहो अन्हो  छुप गए और इनकी बहन ने क़ुरआन मजीद कि आयतें छुपा लिया। उमर  ने अंदर आकर इन से पूछा :तुम लोग क्या पढ़ रहे थे ? उन्हों ने कहा: कुछ नहीं हम तो आपस में बातें कर रहे थे। उमर  ने कहा : शायद तुम लोग मुसलमान हो चुके हो ? इनके बहनोई ने कहा : उमर अगर सत्य तुम्हारे धर्म के अलावा में हो तो तुम्हारा क्या ख्याल है ? यह सुनते ही ऊमर उन पर पिल पड़े  और मारने लगे, बहुत मारा जब इनकी बहन बचाने आयी तो उनको भी धक्का दे दिया जिस से उनको  चोट लगी और चेहरे से खून बहने लगा , और उन्हों ने गुस्से में आकर कहा :ऎ उमर हाँ हम मुस्लम हो चुके हैं "हम गवाही देते हैं कि अल्लाह के सिवा कोई सच्ची पूजा के लाएक़ नहीं है ,और गवाही देते हैं के मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं " तुम से जो बनता है कर लो। यह सुनते ही उमर का दिल पिघल गया और अपने किये पर शर्मिंदा हुए और कहा कि जो तुम लोग पढ़ रहे थे उसे मुझे भी दिखाओ, तो उनकी बहन ने कहा कि तुम अपवित्र हो और इसे केवल पवित्र लोग हो छू सकते हैं , इसलिए तुम जाओ और स्नान करके आओ तब छूना ,उमर गुस्ल करके आये और क़ुरान मजीद की सुरह ताहा की कुछ आयतों कि तिलावत की  और कहा कि यह कितनी अच्छी बातें हैं और कितना अच्छा कलाम है ,मुझे मुहम्मद का पता दो मैं मुसलमान होना चाहता हूँ। उसी समय खब्बाब निकले और कहा कि ऐ ऊमर  तुम्हारे लिए बशारत है मैं समझता हूँ कि जुमरात की रात में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने  जो दुआ किया था वो तुम्हारे हक़ में क़बूल हुई है कि ऐ अल्लाह तुम्हारे नज़दीक दो आदमियों में से जो ज़यादा प्यारा हो उस से इस्लाम को मज़बूती अता फरमा।
फिर उन्हें बताया कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अपने साथियों के साथ सफा पहाड़ी के क़रीब  दारे  अरक़म में हैं।  उमर दारे  अरक़म आये और दरवाज़ा खटखटाया लोगों ने झाँक कर देखा तो इन्हें तलवार सौतें हुए देखा उस वक़्त हम्ज़ा रज़ीअल्लाहो अन्हो  ने कहा आने दो अगर अच्छी नियत से आया है तो ठीक है वर्ना उसी की  तलवार से उ\से उसकी गर्दन मार देंगे ,दरवाज़ा खोला गया और उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो अंदर दाखिल हुए तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो  अलैहे वसल्लम  ने उनको पकड़ कर झंझोड़ा और कहा उमर जब तक अल्लाह वलीद बिन मोघीरा जैसा तुम्हारा हाल न कर दे तुम बाज़ नहीं आओगे। ऐ अल्लाह यह ऊमर बिन खत्ताब  है इसके ज़रीये इस्लाम को मज़बूत कर। उसी समय ऊमर  ने कलमा पढ़ा कि " मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई सच्ची पूजा के लाएक़ नहीं और यह गवाही देता हूँ कि आप अल्लाह के रसूल हैं" यह सुनते ही सारे लोगों ने अल्लाहु अकबर का नारा इतनी ज़ोर से लगाया जिसे मस्जिदे हराम में मौजूद लोगों ने भी सुना।
ऊमर  रज़ीअल्लाहो अन्हो  के इस्लाम लाने से एक तरफ काफिरों को जहां बहुत बड़ा आघात पहुंचा वहीँ मुसलमानों के अंदर ताक़त आ गई क्यूंकि ऊमर  रज़ीअल्लाहो अन्हो  अपनी क़ौम के काफी मज़बूत और साहबे इज्ज़त आदमी थे इस से पहले मुसलमान छुप छुपा कर नमाज़ पढ़ा करते थे लेकिन जब ऊमर रज़ीअल्लाहो अन्हो इस्लाम लाये तो खुल्लम खुल्ला नमाज़ें अदा करने लगे।

       

शनिवार, 2 मार्च 2013

हमज़ा रज़ी अल्लाहो अंहो का इस्लाम लाना



एक रोज़ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम सफा पहाड़ी के समीप बैठे हुए थे उसी समय वहाँ से अबू जहल का गुज़र हुआ वह आप के सामने आकर आप को अपशब्द कहने लगा और आप को बहुत ज़यादा गालियाँ दी ,आप ने सब्र और शान्ति के साथ सब कुछ सूना और बर्दाश्त कर गए, उस वक़्त अब्दुल्लाह बिन जुदआन की एक आज़ाद की हुई लौंडी जो सफा पहाड़ी पर एक घर में रहती थी  यह सारा माजरा देख  और सुन रही थी ,अबुजहल आप के साथ बदजुबानी करने के बाद काबा के समीप आकर कुरैशियों की महफ़िल में बैठ गया , कुछ ही देर के बाद वहां से हमज़ा रज़ी अल्लाहो अंहो का गुज़र हुआ जो अपना तीर कमान गर्दन में लटकाए  हुए शिकार से लौट रहे थे जब उनका गुज़र लौंडी के पास से हुआ तो उसने कहा : ऐ अबू ओमारा ! काश आपने अपने भतीजे के साथ अबुजहल की बद्सोलुकी देखि होती जिसने उनको बहुत ज्यादा गाली दी और उनके साथ  बद्सोलूकी  की , लेकिन मुहम्मद ने कोई बात नहीं की , यह सुन कर हमज़ा  गज़बनाक हो गए और महफ़िल में जा कर अबू जहल के सर पर कमान से जोर से मारा जिससे उसका सर ज़ख़्मी हो गया और उस से कहा :तुम मेरे भतीजे को गाली देते हो जबकि मैं ने उसका धर्म कबूल कर लिया है , मैं  वही कहता हूँ जो वह कहता है ,अगर तुम्हारे अन्दर हिम्मत है तो मरी तरफ हाथ बढ़ा कर देखो .
बनू मख्जूम के कुछ लोग अबू जहल की मदद के लिए उठे लेकिन अबुजहल ने उनको रोका और कहा कि  जाने दो मैंने इसके भतीजे सही में बहुत ज्यादा गालियाँ दी हैं .


शनिवार, 9 फ़रवरी 2013

नजाशी के दरबार में

  फिर नजाशी नें उन सब को अपने दरबार में बुलाया ,जब जाफर बिन अबी तालिब और उनके साथी उसके दरबार में पहुंचे तो इनलोगों ने उनको सलाम किया सजदा नहीं किया ,नजाशी ने पूछा कि : तुमलोगों ने औरों की तरह सजदा करके सलाम क्यों नहीं किया ? जाफर ने कहा कि : सलाम के बारे हमारे रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने हमें बताया है कि  यह तहिय्या (सलाम) जन्नत  वालों का है ,और हमें इसी का हुक्म दिया गया है. इसलिए हम ने आप को वही सलाम  पेश किया है जो हम एक दुसरे को करते हैं
नजाशी ने पूछा :यह कौन सा धर्म है जिसकी वजह से तुम लोग अपनी क़ौम  से जुदा हो गए ? हमारे धर्म में भी दाखिल नहीं हुए और न ही किसी अन्य धर्म को अपनाया ?   मुसलमानों की तरफ से जाफर बिन अबू तालिब रज़ी अल्लाहो अंहो ने उसके सवालों का जवाब दिया और कहा : हे राजा हम लोग अज्ञानता और जाहिलियत के दौर से गुज़र रहे थे ,अपने हाथों से बनाई हुई मूर्तियों की पूजा करते थे ,मुर्दार  खाते थे ,अनैतिकता का शिकार थे, तथा अश्लील कार्य करते थे ,  रिश्तों को तोड़ते थे ,पड़ोसियों का ख़याल नहीं रखते थे,और हम में से जो ताक़तवर था वोह गरीबों से  छीन लेता था , हमारी हालत यही थी यहाँ तक कि  अल्लाह तआला  ने हम ही में से एक रसूल (दूत) भेजा ,जिसके वंश को और उसकी सच्चाई , अमानत तथा पाकदामनी को हम अच्छी तरह से जानते थे .
उन्होंने हमें एक अल्लाह की पूजा करने को कहा, और हमारे  और हमारे पुर्वज के अपने हाथों से बनाए हुए  पत्थरों की मूर्तियों की पूजा से मना किया ,उन्होंने हमें सच्चाई ,अमानत की अदाएगी ,रिश्तेदारी निभाने और पड़ोसियों का ख्याल रखने का हुक्म दिया  तथा हराम कामों और और किसी की ह्त्या करने तथा आतंक को छोड़ने  का हुक्म दिया।
इसी तरह उन्हों ने बदकारी ,झूट बोलने,अनाथ  का माल खाने ,तथा पवित्र महिलाओं पर झुटा इलज़ाम लगाने से मना किया।
और उन्होंने  हमें नमाज़,रोज़ा और ज़कात का हुक्म दिया - यहाँ पर इस्लाम के अरकान (स्तम्भ) को गिनाया- अतः हम आप पर ईमान लाये और  आप की आज्ञा का पालन किया तो हमारे लोग हमारे दुश्मन हो गए और हमें अपने पिछले धर्म में वापस लाने के लिए बहुत सताया और हमारे ऊपर ज़ुल्म और अन्याय की हद कर दी यहाँ तक की हम लोग अपना मुल्क और घर बार छोड़ कर आप के यहाँ आ गये और आपके देश में रहने लगे।
नजाशी ने जब यह बातें सुनी तो जाफर रज़ी अल्लाहो अन्हो  से कुरआन मजीद में से कुछ पढ़ने  के लिए कहा तो उन्होंने सुरह मरयम की आरंभिक आयातों की तिलावत शुरू की जिसे सुन कर नजाशी रोने लगा यहाँ तक कि  आंसुओं से उसकी दाढ़ी भीग गई ,यही हाल उसके  दरबारियों का भी हुआ ,फिर नजाशी ने कहा कि:अल्लाह की क़सम यह नूर (प्रकाश )तो उसी चिराग़  से निकला है जिस से मुसा अलैहिस्सलाम का नूर निकला था .  
फिर नजाशी ने कुरैशी दूतों को कहा कि  तुम लोग वापस चले जाओ यह लोग यही रहेंगे ,हम इन्हें तुम्हें नहीं सौपेंगे . यह लोग दरबार से निकल कर चले  गए।
फिर दुसरे दिन अम्र बिन आस ने एक और चाल चली और नजाशी से कहा कि:यह मुसलमान लोग ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में कुछ गलत कहते हैं ,नजाशी ने मुसलामानों को बुला कर इस बारे में पुछा तो जाफर रज़ी अल्लाहो अन्हो  ने कहा:हम ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में वही कहते हैं जो हमारे नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने हमें बताया है कि:वोह अल्लाह के बन्दे और उसके रसूल थे ,उसका कलमा थे जिसको मरयम   के अन्दर डाल  दिया था  और उसकी जानिब से एक रूह थे , अज़रा  बतुल के बेटे थे .
यह सुन कर नजाशी ने एक लकड़ी अपने हाथ में ली और कहा: अल्लाह की क़सम मरयम के बेटे इस लकड़ी के बराबर भी इस बात से ज्यादा नहीं थे जो तुम ने कही .फिर उसने मुसलमानों को कहा कि  तुम लोग हमारे देश में अमन चैन के साथ जहां चाहो रहो ,फिर उसने कुरैशियों का उपहार वापस करवाया और उनको अपने मुल्क से निकल जाने के लिए कहा , अतः वोह लोग शर्मसार हो कर वहाँ से वापस आ गये। 

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

कुरैश के लोग नजाशी को मोहाजिरों के खिलाफ उभारते हैं



जब कुरैश ने देखा कि  मुसलमान उन से बच कर चले गए और हबशा में जा कर अमन और इत्मीनान के साथ रह रहे हैं तो इन्होंने नजाशी को उनके खिलाफ भड़काने का प्रयास  किया और अपने दो आदमी अम्र बिन आस और अब्दुल्लाह बिन रबिआ को जो उस समय तक ईमान नहीं लाये थे बहुत सारा उपहार देकर हबशा भेजा और उनको नजाशी को रिझाने के सारे गुर बताये ,अतः यह लोग एक सोची समझी प्लानिंग के साथ हबशा गए और वहाँ पहुँच कर प्रथम एक एक दरबारी को उपहार दिया फिर उनके बाद नजाशी के दरबार में गए और उसको भी मूल्यवान उपहार दिया और कहा: माननीय राजा ! हमारे कुछ बेवकूफ और नादान नौजवान आप के देश में पनाह लिए हुए हैं जिन्होंने अपने पूर्वजों के धर्म को छोड़ कर एक नया धर्म ईजाद  कर लिया है ,और इनलोगों ने आप के धर्म को भी  नहीं अपनाया है। हमको इनके बाप,दादा और चाचाओं ने भेजा है ताकि आप इन्हें अपने मुल्क में न रहने दें और हमारे साथ इनको वापस भेज दें. इतना सुन कर नजाशी गुस्सा हो गया और कहा कि : अल्लाह की सौगंध मैं इन्हें हरगिज़ वापस नहीं करूंगा जब तक इनकी बातें न सुन लूँ क्योंकि इन्होंने हमारे यहाँ पनाह ली है और दूसरों के मुकाबले में हमारे यहाँ रहने को तरजीह दी है,अगर तुम्हारा कहना सच हुआ तो हम उनको तुम्हारे हवाले कर देंगे वरना उन्हें यहीं हिफाज़त के साथ रहने दूंगा .

हबशा की तरफ दूसरी बार हिजरत



कुरैश वालों से जो सुस्ती और नादानी हुई थी जिस की वजह से वोह मुसलमानों के साथ सजदे में चले गए थे  और मुसलमान उन से बच  कर हबशा चले गए थे और वहाँ पर वोह हंसी ख़ुशी तथा आज़ादी के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहे थेउस से उनका ग़ुस्सा  सातवें आसमान पर था, इसलिए इन लोगों ने मुसलमानों को और ज़्यादा सख्ती के साथ सताना और उन्हें तकलीफें देना आरंभ कर दिया  ,इन हालात को देखते हुए अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने मुसलमानों को दोबारा  हबशा की तरफ हिजरत  करने की इजाज़त देदी,अतः18 औरतें तथा 82 या 83 मर्द हिजरत के लिए निकले  ,और यह सब लोग काफिरों से बचते हुए हबशा पहुँच गए .

गुरुवार, 31 जनवरी 2013

मुसलमानों का मक्का वापस आना



काफिरों के मुसलमानों के साथ सजदा करने की खबर जब हबशा में मुसलमानों को इस तरह  मिली कि सारे मक्का  वाले मुसलमान हो गए हैं तो वह लोग बहुत खुश हुए और मक्का की तरफ वापस हो गए , लेकिन जब मक्का के करीब पहुंचे तो उनको सही बात का पता चला कि उन लोगों के मुसलमान होने की खबर बे बुनियाद थी तो उन में से कुछ लोग हबशा वापस चले गए और कुछ लोग ख़ुफ़िया तौर पर मक्का में दाखिल हो गए। 


मुशरेकीन का सुरह नज्म की तिलावत के समय मुसलमानों के साथ सजदा करना



मुसलमानों के हबशा की जानिब हिजरत करने के दो  महीने बाद नबूवत के पांचवे वर्ष रमजान के महीने में एक दिन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम मस्जिदे हराम  की तरफ निकलेउस समय काबा के इर्द गिर्द कुरैश के बड़े बड़े लोग और उनके सरदार बैठे हुए थेआप ने जा कर उनके पास अचानक सुरह नज्म की तिलावत शुरू कर दीकुरैश के लोग इस से पहले ऐसा रोबदार और दिलों पर असर करने वाला कलाम नहीं सूना था ,इस कलाम का इन पर ऐसा दहशत छाया कि मबहूत होकर खामोशी के साथ सुनते रहे और जब आप इस सुरह के आखरी भाग की तिलावत करके सजदे में गए वोह लोग भी अपने ऊपर काबू न रख सके और मुसलमानों के साथ सजदे में चले गए.

मंगलवार, 29 जनवरी 2013

हबशा की तरफ हिजरत



कुरैश ने जब मुसलमानों पर ज़ुल्म की हद कर दी और  अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम उनका बचाव करने से माज़ूर थे उस वक़्त आप ने अपने साथीओं  को हबशा(इथोपिया) की तरफ हिजरत (पलायन) करने की अनुमति  दे दी,आप को मालूम था की वहाँ का राजा सहमा नजाशी एक इन्साफ पसंद राजा है जिस के पास किसी के ऊपर अन्याय नहीं होता .
नबूवत के पांचवें साल में रजब के महीने में यह लोग हबशा के लिए रवाना हुए जिन में बारह मर्द और चार औरतें थीं जिन में आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम  की बेटी रोकैय्या और उनके पति उस्मान रजी अल्लाहो अन्होमा भी थे।  उनको रुखसत करते समय आप ने कहा था :"अल्लाह उनका साथी हो ,बेशक लूत अलैहिस्सलाम के बाद यह पहले आदमी हैं जिन्होंने अपनी बीवी के साथ अल्लाह के रास्ते में हिजरत की है ".
यह लोग रात के अँधेरे में  छुप कर मक्का से निकले ताकि कुरैशियों को उनके सफ़र का ज्ञात न हो सके , यह लोग शोऐबा  के बंदरगाह पर पहुंचे और हबशा जाने वाली दो तेजारती कश्तियों (नावों) पर सवार हो गए ,कुरैश के काफिरों को उनकी हिजरत के बारे में उस समय मालूम हुआ जब इनकी  कश्तियाँ साहिल  छोड़ कर हबशा की तरफ रवाना हो चुकी थीं  .

सोमवार, 28 जनवरी 2013

दारे अरक़म के अंदर



इस्लामी प्रचार के उपरान्त मुसलामानों पर आई मुसीबतों एवं परेशानियों को देखते हुए अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने मुसलामानों की हिफाज़त के लिए  चंद  क़दम उठाए जिनमें दारे अरक़म  को तालीम का मरकज़ बनाना और मुसलमानों को मुल्के हबशा की तरफ हिजरत करने की इजाज़त देना है .
अरक़म  बिन अबुल अरक़म  को आपने मुसलामानों की शिक्षा और  उनके मार्गदर्शन के लिए चुना जहां आप उनकी तरबियत का एहतेमाम करते ,उनको कुरआन की तालीम देते और दीन  की बातें सिखाते इस तदबीर से आप के साथी उन बहुत सारी रेशानियों से बच  गए जो उन पर खुले आम इस्लामी कार्य करने पर होतीं ,अलबत्ता खुद आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने दावते दीन का काम एलानिया तथा खुले आम  जारी रखा  वजह साफ़ थी कि  इस्लामी दावत हर एक को पहुँच जाए ताकि क़यामत के दिन कोई यह न कह सके कि उसके पास कोई बताने या डराने वाला नहीं आया .

रविवार, 27 जनवरी 2013

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को तकलीफें




जब कुरैश की हर चाल नाकाम हो गई और उन्होंने देखा कि धमकी और चैलेन्ज का कोई फाइदा नहीं हो रहा है तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के व्यक्तित्व पर हमला तेज़ कर दिया और मुसलामानों को और ज्यादा तकलीफें देनी शुरू कर दी. अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम चूँकि  बहुत इज्ज़त और मर्तबा वाले थे इसलिए कमतर लोग आप को तकलीफ देने की सोच भी नहीं  सकते थे इसलिए आप को तकलीफ देने का बीड़ा कुरैश के बड़े लोगों ने उठाया ,जिनमें अबुजहल आप का सब से बड़ा दुश्मन था और आप को तरह तरह से सताया करता था. आप को नमाज़ पढने से रोकता आप के खिलाफ तरह तरह के हीले और तदबीरें करता और अपने किये पर फख्र करता और खुश होता ,एक रोज़ इसने जब आप अबूबकर और उस्मान रज़ी अल्ल्लाहो अन्होमा के साथ काबा का तवाफ़ कर रहे थे कपडे से आप का गला घोंट कर आप को मारना चाहा तो उस्मान रज़ी अल्ल्लाहो अंहो ने उसे धक्का दे कर आप से अलग किया .
आप एक दिन ज़ुल मजाज़ नामी बाज़ार में लोगों को दावत दे रहे थे और लोगों को कह रहे थे :" ऐ लोगों ! ला ईलाह इलल्लाह (अर्थात : अल्लाह के इलावा कोई भी सच्ची पूजा के लायेक नहीं है) कहो कामयाब हो जाओगे"  और आप के पीछे अबू जहल आप पर रेत  डाल रहा था और कहे जा रहा था लोगों !यह आदमी तुम को तुम्हारे धर्म से भटका देगा , यह चाहता है कि  तुम लोग  लात और उज्ज़ा की पूजा करनी छोड़ दो .
एक रोज़ मक्का के मुशरेकीन से आप की लम्बी बात हुई और जब आप उनके पास से वापस आये तो अबुजहल ने कहा: ऐ कुरैश के लोगो ! मुहम्मद ने हमारी हर बात से इनकार कर दिया है, हमारे धर्म को ऐब लगाता है ,हमारे देवताओं को बुरा भला कहता है, मैं तुम सब के सामने अहद करता हूँ कि कल मैं जब वोह सजदा करेगा तो उसका सिर पत्थर से कुचल दूंगा ,उसके बाद बनू अब्दे मुनाफ को जो समझ में आये हमारे खिलाफ करे .
अगले  दिन  सुबह के समय अबुजहल खाना काबा के पास पत्थर ले कर  बैठ गया और नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम रुकने अस्वद और रुकने यमानी के दरमियान नमाज़ पढ़ने लगे कुरैश के लोग अपनी मजलिसों में बैठ कर देखने लगे कि  क्या होता है ,जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने सजदा  किया तो अबुजहल पत्थर ले कर आप की तरफ बढ़ने लगायहाँ तक कि जब आप के करीब पहुंचा तो निहायत ही खौफज़दा हो कर वापस भागा उसके चेहरे का रंग बदला हुआ था और उसके दोनों हाथ पत्थर पर जमे हुए थे  फिर उसने पत्थर को दूर फ़ेंक दिया .
कुरैश के लोगों ने पूछा : किया हुआ ? तो उस ने कहा: मैं अपने वादे के अनुसार मुहम्मद का सर कुचलने के लिए आगे बढ़ा जब उसके समीप पहुंचा तो मेरे सामने एक निहायत ही डरावना ऊँट आ गया अल्लाह की क़सम मैं ने ज़िन्दगी में कभी भी उसके जैसा सर ,गर्दन और दांत नहीं देखा ,वोह मुझे खा जाना चाहता था .
एक रिवायत में है कि  वोह अल्लाह के फ़रिश्ते जिब्रील अलैहिस्सलाम थे ,अगर वोह आप से करीब होता तो उसे पकड़ लेते .
इस तरह की और भी बहुत सी रिवायतें हैं जिन में है कि अबुजहल आप के सर को कुचलने के लिया बढ़ा लेकिन फरिश्तों के खौफ से उसे वापस भागना पड़ा.
आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को सताने वालों में सब से बड़ा नाम अबू लहब का है जो आप का अपना चचा था ,जिस रोज़ आप ने अपनी नबूवत का एलान किया उसी दिन से यह आप के पीछे पड़  गया उसकी इस साज़िश में उसकी भेंगी बीवी उम्मे जमील भी बढ़ चढ़ कर भाग लेती आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और आप के साथियों की राह में कांटे दार झाड़ियाँ  डाल देती ताकि उनकी पावों  में चुभे। 
आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की दो बेटियों रोकैय्या और उम्मे कुलसूम का  विहाह अबुलहब के बेटों उत्बा और ओतैबा के साथ हुआ था अबुजहल के कहने पर उसने उन दोनों को तलाक़ दिलवा दिया .एक रोज़ जब सुरह लहब नाजिल हुई तो उम्मे जमील गुस्से में हाथ में रेत  लेकर  आप को तलाश करने लगी आप अबूबकर रज़ी अल्लाहो अंहो  के साथ काबा के समीप बैठे हुए थे वोह आई और अबूबकर रज़ी अल्लाहो अंहो  से पूछने लगी तुम्हारा दोस्त कहाँ है ? मैं ने सूना है कि वह मेरी बुराई करता है , अगर मिल गया तो उसके चेहरे पर यह रेत मार दूंगी .फिर वह चली गई अल्लाह ने उसकी आँखों पर पर्दा डाल दिया था कि आप सामने होते हुए भी उसको नज़र नहीं आये . 
उन्हीं सताने वालों में से उक़बा बिन मोईत  भी था जिसने कुरैश के लोगों की मौजूदगी में आप की पीठ पर जबकि आप सजदा में थे ऊँट की भारी ओझड़ी   रख दी जिस से आप हिल नहीं सकते थे कुरैश के लोग यह सब कुछ देखते रहे और आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम उसी तरह सजदे में पड़े रहे फिर आप की छोटी बेटी फातिमा रज़ी अल्ल्लाहो अन्हा ने आकर उस ओझड़ी को आप की पीठ से हटाया .
उसी वक़्त आप ने कहा :"ऐ अल्लाह !कुरैश के इन सरदारों से तू निमट ले" फिर आप ने एक एक का नाम लिया :"ऐ अलाह तू फलाने से निमट  ले .ऐ अलाह तू फलाने से निमट ले ........" उन में से जिनका भी आप ने नाम लिया सब के सब बदर की लड़ाई में बुरी तरह मारे गए . 
इसी उक़्बा बिन मोईत ने एक बार गला घोंट कर आप को मारने की कोशीश की थी उसी समय वहां पर अबूबकर रज़ी अल्लाहो अंहो  आ गये और उसको आप से अलग किया. 
इनके अलावा कुरैश के बहुत सारे बड़े लोग और भी थे जो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और आप के साथियों का मजाक उड़ाते ,उनको तंग करते ,इस्लाम और मुसलामानों पर तरह तरह का इलज़ाम लगाते, मुसलमानों पर सख्ती करते ,उनको भूका और प्यासा रखते उनको रस्सियों से बाँध कर जलती और तपती रेत  पर डाल देते बाहर से आने वाले लोगों को अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की बात सुनने से रोकते ,और कहते के वह जादूगर है,अर्थात इनलोगों ने उन पर ज़ुल्म और अन्याय की इन्तेहा कर दी. इनलोगों में से  मशहूर : आस बिन वाएल,अस्वद बिन मुत्तलिब ,अस्वद बिन अब्दे यगूस, वलीद बिन मोगीरा ,हारिस बिन क़ैस, नज्र  बिन हारिस  आदि थे  जिनको अल्लाह तआला  ने भिन्न तरीकों से हेलाक और बर्बाद कर दिया। 

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सोमवार, 30 अप्रैल 2012

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और मुशरेकीन का रवैय्या


अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अपने उदारता,आदर और गरीमा जो कि  अल्लाह तआला ने आप को दे रखी  थी उनकी  वजह से बहुत सारी परीशानियों से  बचे रहते,अबुतालिब भी पूरी तरह से आप की हिमायत करते जो कि कुरैश के एक महान पुरुष थे ,आपकी बातों और फैसलों का एहतेराम किया जाता था ,और पुरे अरब में आप को इज्ज़त की निगाह से देखा जाता था.इसी वजह से आपको सताने में लोग इह्तेयात से काम लेते थे, उन्होंने अपनी बात रखने के लिए आप के चाचा के पास पहुंचे और थोड़ी  धमकी भरे अंदाज़ में ही अपनी बात रखी .
कुरैश के कुछ बड़े लोग अबुतालिब के पास पहुंचे और उन से कहा : आप का यह भतीजा हमारे देवी देवताओं को गाली देता है ,हमारे मज़हब को ग़लत कहता है, और हमारे पूर्वजों को भटका हुआ कहता है,या तो आप उसे रोकिए या हमारे बीच से हट जाईये क्योंकि आपका भी वही धर्म है जो हमारा है! अबुतालिब ने उन से मुनासिब तथा नर्म बातें कहीं और वह लोग वापस चले आये.
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अपने मिशन में लगे रहे और बन्दों को एक अल्लाह की पूजा की तरफ बुलाते रहे ,यह देख कर वह लोग फिर अबू तालिब के पास गए तथा कहने लगे:ऐ अबुतालिब! आप हमारे नज़दीक  बुज़ुर्ग तथा माननिय व्यक्ति हैं ,हम ने आपको अपने भतीजे को मना करने के लिए कहा था लेकिन आपने उसे नहीं रोका ,और हम अपने देवताओं की बुराई नहीं बर्दाश्त कर सकते , आप या तो उसे रोकिए या उसका साथ देना छोड़ दीजिए फिर हमारे बीच फैसला हो जाएगा ! यह कह कर वह लोग चले गए.
इस धमकी से अबुतालिब परेशान हो गए और आपको बुला कर उनकी बात बताई और कहा: खुद पर और मुझ पर मेहरबानी कर ,मेरे ऊपर इतना बोझ मत डाल जिसे मैं बर्दाश्त  कर सकूं.
अपने चाचा की मजबूरी और कमज़ोरी देख कर आप आबदीदा हो गए और रोने लगे और कहा:  "चाचा जान !यह लोग मेरे दाहिने हाथ में सूरज और बाएं हाथ में चाँद रख दें और कहें कि यह काम छोड़ दूँ तो यह नामुमकिन है यहाँ तक कि अल्लाह तआला इस दीन को ग़ालिब करदे या मैं ख़तम हो जाऊं".
आप के इस दृढ़ संकल्प को देख कर अबुतालिब नरम पड़ गए और कहा:भतीजे अपना काम करते रहो मैं तुझे किसी बात पर मजबूर नहीं करूंगा.
जब कुरैश ने देखा कि उनकी धमकी का कोई फाईदा नहीं हुआ और आप अपने काम में लगे हुए हैं और अबुतालिब आप की हिमायत भी कर रहे हैं तो वह एक अजीबो ग़रीब प्रस्ताव ले कर अबुतालिब के पास पहुंचे,ओमारा बिन वलीद जो कि कुरैश के नौजवानों का सरदार  और बहुत ही हसीन और ख़ूबसूरत था उसको लेकर उनके पास गए कहा :अबुतालिब आप इस लड़के को अपना बेटा बना लीजिए और अपने उस भतीजे को हमारे हवाले कर दीजिए जिस ने आप के और आपके पूर्वजों के धर्म का उल्लंघन किया है और आपकी कौम में फुंट डाल दिया है.हम आप को एक आदमी के बदले एक आदमी दे रहे हैं.
अबुतालिब ने कहा : अल्लाह की क़सम तुम लोग मेरे साथ कितना बुरा मामला करना चाहते हो ,तुम लोग अपना बेटा मुझे दोगे कि मैं उसे खिलाऊं पिलाऊं और उसकी परवरिश करूं ,और मैं तुम्हें  अपना बेटा दूं जिसे तुम लोग क़तल करोगे.अल्लाह की क़सम ऐसा कभी नहीं हो सकता. 
इसके बाद उनलोगों की सारी उम्मीदें टूट गईं और जब देखा कि धमकी से कोई बात नहीं बन रही है तो उनकी दुश्मनी और बढ़ गई और आप को तकलीफें देनीं की नित नई तरकीबें सोचने लगे,और कुरैश के गुंडों को आपके पीछे लगा दिया ताकि वह आप को क़तल कर दें या आप शहर छोड़ दें.
उपरान्त नाकाम कोशिशों के बाद उन्हों ने एक और तथा अंतिम कोशिश करनी चाहि अतः सब लोग  जमा हो कर आप के पास आये और आप से कहा: ऐ मुहम्मद ! अगर तुम  धन चाहते हो तो हम  तुमको  इतना धन देंगे कि तुम सब से अधिक मालदार हो जाओगे ,और अगर सरदारी  चाहते हो तो हम तुम्हें अपना सरदार बनाने के लिए तैयार हैं ,और अगर राजा बनना चाहते हो तो हम तुम्हें अपना राजा  बना देंगे,और अगर तुम पर किसी जिन्न का असर  है तो अपनी दौलत  ख़र्च करके तुम्हारा ईलाज  कराएंगे  और तुम ठीक हो जाओगे या फिर हम तुमको माज़ूर समझने लगेंगे.
आप ने उन लोगों से कहा: तुम जो कुछ कह रहे हो उन में से कोई भी बात सहीह नहीं है , मुझ को तो अल्लाह तआला ने रसूल (दूत) बना कर भेजा है,और मुझ पर कुरआन करीम नाजिल फ़रमाया है ,और मुझे हुक्म दिया है कि तुम लोगों को जन्नत की खुशखबरी सुनाऊँ और जहन्नम की आग से डराऊं, मैं ने तुम तक अपने रब का सन्देश पहुंचा दिया है, और तुम्हारी भलाई चाहा है,अगर मेरी दावत क़बूल कर लोगे तो दुनिया और आख़ेरत में कामयाब हो जाओगे और अगर तुम इसका इनकार कर देते हो तो मैं सब्र करूंगा यहाँ तक कि अल्लाह हमारे और तुम्हारे बीच फैसला कर दे.