मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

क़ुरैश के बदमाशों का रवैया



जब तक अबु तालिब जीवित रहे क़ुरैश के बदमाशों को आप सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम को सताने  में संकोच होता था, लेकिन आबू तालिब की मौत के बाद वो लोग आप की शान में बहुत ज़्यादा गुस्ताख़ हो गए, और आप को तरह तरह से सताने और तकलीफ देने लगे,यहाँ तक कि क़ुरैश के एक नादान आदमी ने आप के ऊपर मिट्टी डाल दी ,आप घर आए तो आप की एक बेटी आप के चेहरे से रोते  हुए मिट्टी झाड़ने लगी तो आप ने कहा : बेटी मत रो अल्लाह ताआला तुम्हारे बाप की सुरक्षा करने वाला है। फिर आप ने कहा : क़ुरैश ने अबुतालिब की मृत्यु से पहले मेरे साथ कभी कोई बड़ी बदसलूकी नहीं की।

गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

ग़म का साल

नबूवत मिलने का  दसवां  साल  आप सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम पर बहुत ही मुश्किलों भरा रहा, एक तरफ मुशरिकों की तरफ से आप को अज़ियतें और तकलीफें दी जाती रहीं, और आप को इस्लाम के प्रचार से रोकने की पूरी कोशिश की जाती, रही इसी दौरान आप को स्पोर्ट करने वाले और हर मुसीबत में साथ देने वाले चचा अबु तालिब और हद से ज़्यादाह प्यार करने वाली और हर मौक़ा से 
सन्तावना देने वाली पत्नी का देहांत हो गया।

चाचा अबुतालिब का देहांत


घाटी से निकलने के छह महीने बाद रमज़ान या शव्वाल या ज़िलक़ादा सन १० नबवी में  आप के चाचा अबुतालिब का देहांत हो गया, जब उनकी  मौत का समय आया तो आप उनके पास गए, उस वक़्त वहाँ पर अबु जहल और अब्दुल्लाह इब्ने अबी ओमैया मौजूद थे, आप ने अबु  तालिब से कहा :" ऐ चाचा जान आप "ला इलाहा इल्लल्लाह " कह दीजिए ,क्यूंकि यह एक ऐसा कलमा है जिसके ज़रिये अल्लाह से आप की बख्शीश के लिए सिफारिश कर सकूँ " तो अबूजहल और अब्दुल्लाह इब्ने अबी ओमैया ने कहा :ऐ अबुतालिब! क्या आप अनपे बाप दादा के धर्म से फिर जाएंगे ? दोनों अपनी बात कहते रहे यहाँ तक की अबु तालिब ने कलमा पढ़ने से इनकार कर दिया, और आखरी बात जो कही वो यह कि "मुझे अब्दुल मुत्तलिब के धर्म पर मरना है। " फिर आप ने कहा कि :" मैं उस वक़्त तक अल्लाह से आप के लिए बख्शीश तलब  करता रहूंगा जब तक उस से रोक न दिया जाऊं " उसी वक़्त अल्लाह तआला  ने आयते करीमा नाज़िल फ़रमाई , जिसका अर्थ है :( नबी के लिए और दूसरे मुसलमानों के लिए यह जाएज़ नहीं कि  मुशरेकीन के लिए  मग़फ़ेरत की दुआएं करें, यह उनके क़रीबी रिश्तेदार ही क्यों न हों, यह ज़ाहिर  हो जाने के बाद कि यह लोग जहन्नमी हैं )(सूरह तौबा :११३ )
और अबुतालिब के बारे में आप से फरमाया :( आप जिसे चाहें हिदायत नहीं दे सकते बल्कि अल्लाह तआला ही जिसे चाहे हिदायत देता है ) (सूरह क़सस :५६)

पत्नी खदीजा का देहांत


अभी आप के चाचा की मौत का ज़ख़्म ताज़ा ही था कि आप की हमदर्द और ग़मख़ार सब से प्यारी पत्नी और मुसलमानों की माँ  खदीजा रज़ीअल्लाहो अन्हा का देहांत हो गया , उनका देहांत अबुतालिब के देहांत के तीन दिनों बाद रमज़ान के महीने में हुआ। 
खदीजा रज़ीअल्लाहो अन्हा ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की हर मोड़ पर अपनी जान और माल से मदद की आपके हर ग़म और तकलीफ को बांटा , अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम फरमाया करते थे :" खदीजा मुझ पर उस वक़्त ईमान लाईं जब लोगों ने मेरा इंकार किया ,मुझे सच्चा जाना जब लोगों ने मुझे झुटला दिया , जब लोगों ने मुझे कुछ नहीं दिया तो उन्हों ने अपने धन दौलत में मुझे साझी किया ,और उनसे अल्लाह ने मुझे औलाद दी जब कि दूसरी पत्नियों से नहीं दिया।" 
एक दिन जिब्राईल अलैहिस्सलाम अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो  वसल्लम के पास आये और कहा : ऐ अलाह के रसूल ! यह खदीजा आ रही हैं इनके हाथ में कोई सालन अथवा खाने या पीने की कोई चीज़ है, जब यह नज़दीक आएं तो उनको मेरा और उनके रब (अल्लाह) का सलाम  दीजिये और उनको जन्नत में बांस के बने हुए एक घर की खुशखबरी सूना दीजिये जिसमें न कोई परेशानी होगी और न हल्ला गुला।

अल्लाह  के रसूल सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम हमेशा प्यार और मोहब्बत से इनको याद किया करते, और घर में कोई चीज़ आती या बकरी ज़बह करते तो नकी सहेलियों को भिजवाते।

रविवार, 8 मार्च 2015

मुकम्मल समाजी बहिस्कार


जब मुशरेकीन के सारे हीले और बहाने खत्म हो गए और उन्हों ने देखा कि बनु हाशिम और बनु मुत्तलिब  आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की हिफाज़त पर आमादा हैं , और हर हाल में आप का साथ दे रहे हैं, तो उन्होंने एक मीटिंग बुलाई जिसमें   मौजूदा समस्या का कोई मोकम्मल समाधान निकाला जाए।
इस पंचायत में वो लोग खूब गौरोफ़िकर के बाद एक क्रूर समाधान पर पहुंचे एवं उस पर सौगंध खाई कि जब तक यह लोग मुहम्मद(सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) को उनके हवाले न कर दें, ताकि वो उन्हें क़तल कर दें ,बनु हाशिम और बनु मुत्तलिब का सम्पूर्ण समाजी बायकाट कर दिया जाए , उनसे कोई भी रिश्ता नहीं रखा जाए , न उनके साथ शादी बियाह किया जाए , न खरीदो फरोख्त किया जाए , न उनके साथ बैठा जाए , न उनके यहाँ जाया जाए , न उनसे बात की जाए , और न ही उनसे कोई सुलह सफाई की जाए।
इस फैसले को लागू करने पर सब ने क़सम खाई और उसे एक कागज़ पर लिख कर खाना काबा के अंदर लटका दिया। इस  फैसले को बगीज़ बिन आमिर बिन हाशिम ने अपने हाँथ से लिखा था जिस पर आप(सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) ने बद्दुआ कर दी थी जिसकी वजह  उसके हाथ को लक़वा मार दिया था।
बनु हाशिम और बनु तालिब के सारे लोग अबु लहब को छोड़ कर चाहे वो मुसलमान हों या काफ़िर शेबे अबितालिब नामी घाटि में चले गए और उनसे हर चीज़ रोक दी गयी जिस से उनको काफी मशक़्क़त और परेशानी उठानी पड़ी यहाँ तक कि पत्ते और चमड़े  खाने पर मजबूर हो गए। भूक के मारे औरतों और बच्चों के रोने  आवाज़ें सुनाई देती थीं ,कभी कभी कोई चीज़ चोरी छिपे  उन तक पहुँच जाती  थी , हकीम बीन हेशाम अपनी फूफी खदीजा रज़ी अल्लाहो अन्हा तक कुछ जौ या गेहू पहुंचा दिया करते थे ,वो लोग केवल हुरमत वाले दिनों में ही घाटी से निकलते थे और  बाहर से आने वाले व्यवसायियों से ही कुछ खरीदते थे ,फिर भी जब मक्का वालों को मालूम पड़ जाता था तो जाकर सामान की क़ीमत इतनी बढ़ा देते थे कि वो लोग खरीद न सकें।
इसके बावजूद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अपनी दावत जारी रखे रहे और लोगों को एक अल्लाह की इबादत की तरफ बुलाते रहे , ख़ास कर हज के दिनों में जब अरब के क़बाएल हर तरफ से मक्का 
आते थे।

क़रार का अंत
तीन वर्षों तक मक्का वालों का यह क्रूर रवैय्या चलता रहा उसके बाद अल्लाह तआला ने उन लोगों से यह मुसीबत खत्म करने का इरादा किया अतः उनलोगो में से पांच सज्जनो  के दिल में इस क़रार नामा को खत्म करने की बात डाल दी , इन लोगों ने जब  इस अन्याय और ज़ुल्म तथा कोरैशियों के घमंड को देखा तो एक जगह मीटिंग किया और इस ज़ालिमाना अहद नामा  को खत्म करने प्रण लिया , वो पांच लोग हैं: हिशाम बिन अमर बिन हारिस , ज़ोहैर बिन अबु ओमैया (यह आप की फूफी आतेका के बेटे थे ) अबुल बख्तरी बिन हिशाम , मूतइम बिन अदी और ज़मआ  बिन अस्वद।
प्लान के अनुसार यह लोग सुबह के समय मस्जिदे हराम में आये , उस वक़्त क़ुरैश वाले खाना काबा के आस पास बैठे हुए थे, ज़ोहैर तवाफ़ करने के बाद उन लोगों के पास आया और कहने लगा कि : ऐ मक्का वालों ! हम लोग खाते पहनते हैं ,और यह लोग तबाह हो रहे हैं , अल्लाह की क़सम जब तक यह ज़ालिमाना अहदनामा फाड़ नहीं दिया जाता मैं चुप नहीं बैठूंगा।  तो अबुजहल ने कहा : तू झूठा है अल्लाह की क़सम यह अहदनामा नहीं फाडा जाएगा।  तो ज़मआ  ने उठ कर कहा : अल्लाह की क़सम तुम सब से बड़े झुटे हो, हम लोग इसे लिखे जाने के समय ही इस के हक़ में नहीं थे। फिर अबुलबख्तरी ने उठ कर कहा कि :ज़मआ  की बात सच है हम इस से कभी राज़ी नहीं थे और न ही कभी इस की ताईद की। उसके बाद मूतईम  ने कहा : तुम दोनों सच कहते हो , और इसके अलावा जो भी है वो सब झूट है हम इस से अपनी बराअत का इज़हार करते हैं। हिशाम बिन अमर ने भी इसकी ताईद की।  अबुजहल ने कहा:यह साज़िश रात में रची गई है और इसका इसका मशवेरा यहाँ आने से पहले हो चुका है।  फिर मूतइम  बिन अदि  खड़े हुए और उस अहद नामा को फाड़ दिया।

अबु तालिब मस्जिद के एक कोने में बैठे हुए थे जो उनलोगों को यह बताने आये थे की मुहम्मद(सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) ने उनको खबर दी है कि वही के ज़रीये अल्लाह तआला ने उन्हें खबर दी है कि  दीमक ने इस अहद नामा में मौजूद ज़ुल्म और बेवफाई वाली सारी  बातों को चाट लिया है और अल्लाह के नाम के सिवा उस में कुछ भी बाक़ी नहीं है। फिर जब सारे लोगों ने जाकर देखा तो वाक़ेई उस में अल्लाह के नाम के अलावा कुछ भी बाक़ी नहीं था।