शनिवार, 31 जुलाई 2010

हीलफूल फोज़ूल / अच्छे कार्यों के लिए अनुबंध तथा प्रतिबद्धता

फेजार की लड़ाई के उपरांत ज़ुल्क़ादा के महीने में यह अनुबंध क़बीला क़ुरैश की पाँच शाखों के बीच हुआ जिन का नाम है : बनू हाशिम , बनू मुत्त्तलिब , बनू असद , बनू ज़ोहरा तथा बनू तमीम
हुआ यूँ कि यमन के क़बीला ज़बीद का एक आदमी कुछ व्यापार का सामग्री लेकर मक्का आया जिसे आएल के पुत्र आस ने उस से खरीदा लेकिन उसका मूल्य देने से इनकार कर दिया ज़बिदी ने मक्का में मौजूद अपने हलीफ़ों (मित्रों) से कहा कि उसका हक दिलाएँ लेकिन किसी ने भी उस की सहायता नहीं की तो वो सूर्योदय के समय अबू क़ोबैस नामी पहाड़ी पर चढ़ गया - उस समय क़ुरैश के लोग काबा के समीप बैठे हुए थे - तथा उँची आवाज़ में उपने उपर हुए अन्याय को कविताओं में बयान करने लगा ताकि लोग उस क़ि सहायता करें और उसका अधिकार दिलाएँ
फिर इस मामले में अब्दुल्मुत्तलिब के पुत्र ज़ुबैर की पहल पर वो लोग बनू तैम के मुखिया जुदआन के पुत्र अब्दुल्लाह के घर में इकट्ठा हुए तथा इस बात का अनुबंध किया कि वो सब किसी पर हुए अन्याय के खिलाफ एक जुट होकर उस की सहायता करेंगे तथा उसका हक दिलाएँगे अतः वो लोग आस बिन वाएल के पास गए और ज़बिदी का हक दिलवाया
इस अनुबंध में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने भी शिरकत की थी और आप इस से बहुत प्रसन्न हुए थे आप ने फ़रमाया : मैं अब्दुल्लाह बिन जुदआन के मकान में इस अनुबंध के समय उपस्थित था एवम् यह मेरे समक्ष लाल उंटों से भी अधिक बहुमूल्य था और अगर मुझे इस्लाम के समय में भी इस अनुबंध की दावत दी जाती तो मैं इसे क़बूल कर लेता

फेजार की लड़ाई

आप की आयु बीस वर्ष के क़रीब थी तो क़ुरैश व केनाना तथा कैस ईलान के बीच सूक़े ओकाज़ (ओकाज़ नामी बाज़ार) में यूद्ध छिड़ गयी, यूद्ध बहुत ही भयंकर अंदाज़ में हुई तथा दोनों तरफ के बहुत सारे लोग मारे गये इस यूद्ध में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने भी भाग लिया था आप तीर उठा उठा के अपने चाचा लोगों को दिया करते थे फिर दोनों पक्षो ने जंग बंदी का ऐलान किया तथा उनके बीच सुलह हो गयी एवम् आपसी कलह तथा शत्रुता को ख़तम करके एक हो गए
इस यूद्ध का नाम फेजार इसलिए पड़ा कि इस यूद्ध के ज़रिए इन लोगों ने हरमे मक्का तथा पवित्र महीने की पवित्रता का उल्लंघन किया था

मंगलवार, 27 जुलाई 2010

मूलके शाम की यात्रा तथा ईसाई संत

आप के चाचा अबू तालिब ने व्यापार के लिए क़ुरैश के क़ाफले के साथ शाम की यात्रा का इरादा किया उस समय आप की आयु बारह वर्ष से कुछ अधिक थी चाचा की जुदाई आप को बहुत मुश्किल मालूम हुई अतः चाचा को आप पर दया आ गई तथा आप को अपने साथ ले लिया
जब क़ाफ़िला शाम की सीमा पर बसे बुसरा नामी शहर के समीप उतरा तो ईसाइयों के बड़े संतों में से एक जिस का नाम बोहैरा राहीब था लोगों की भीड़ को चीरते हुए अल्लाह के रसूल के समीप आया तथा आप का हांथ पकड़ कर कहा : यह स्मस्त संसार के सरदार हैं, यह समस्त संसार के पालनहार के दूत हैं, इन्हें अल्लाह समस्त संसार के लिए रहमत (द्या,लु) बना कर भेजेगा. यहाँ यह ज्ञात हो कि इस से पहले बोहैरा कभी भी इनके पास नहीं आया था और ना हीं इनको कभी कोई महत्व दिया था लोगों ने पूछा : तुम्हे इस का ज्ञान कैसे हुआ ? तो उसने कहा : तुम लोग जब घाटी के समीप पहुँचे तो सारे पेड़ तथा पत्थर सजदे में गिर गये , और यह दोनों केवल किसी नबी को ही सजदा करते हैं, तथा मैं उनको उस ख़त्मे नबुवत ( नबुवत की सील) से पहचानता हूँ जो सेब जैसा आप के कंधे के नीचे पाया जाता है, एवम् इनका ज़िक्र हम अपनी पुस्तकों में पाते है
फिर बोहैरा ने उनकी काफ़ी आव भगत तथा अतिथि सत्कार किया एवम् अबू तालिब से कहा कि आप इन्हें मक्का वापस भेज दें शाम ना ले जाएँ क्योंकि इन्हें यहूदियों और रूमानियों से ख़तरा है अतः अबू तालिब ने आप को मक्का वापस लौटा दिया

कृपालु तथा दयालु चाचा के पास

आप के चाचा अबू तालिब आप के पिता के असली भाई थे, आपके दादा ने मरते समय आप को उनके सुपुर्द कर दिया, आप उन्हीं के पास पले बढ़े तथा जवान हुए, अबू तालिब ने भतीजे का पूरा ध्यान रखा , आप को अपनी संतान के साथ मिला लिया , आप को खूब आदर सम्मान दिया , अपने बच्चों से ज़्यादा प्यार किया , आठ (8) वर्ष कि आयु से लेकर एक्यावन (५१) वर्ष कि आयु तक लगभग (४३) साल आप अपने इस द्या लु चाचा के पास रहे , उन्होंने हर मुश्किल घड़ी में आप का साथ दिया . अबूतालिब थोड़े कम पैसे वाले थे लेकिन अल्लाह ने उसी में बरकत दी थी, यहाँ तक कि एक आदमी के खाने में समस्त परिवार भोजन कर लेता