रविवार, 8 मार्च 2015

मुकम्मल समाजी बहिस्कार


जब मुशरेकीन के सारे हीले और बहाने खत्म हो गए और उन्हों ने देखा कि बनु हाशिम और बनु मुत्तलिब  आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की हिफाज़त पर आमादा हैं , और हर हाल में आप का साथ दे रहे हैं, तो उन्होंने एक मीटिंग बुलाई जिसमें   मौजूदा समस्या का कोई मोकम्मल समाधान निकाला जाए।
इस पंचायत में वो लोग खूब गौरोफ़िकर के बाद एक क्रूर समाधान पर पहुंचे एवं उस पर सौगंध खाई कि जब तक यह लोग मुहम्मद(सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) को उनके हवाले न कर दें, ताकि वो उन्हें क़तल कर दें ,बनु हाशिम और बनु मुत्तलिब का सम्पूर्ण समाजी बायकाट कर दिया जाए , उनसे कोई भी रिश्ता नहीं रखा जाए , न उनके साथ शादी बियाह किया जाए , न खरीदो फरोख्त किया जाए , न उनके साथ बैठा जाए , न उनके यहाँ जाया जाए , न उनसे बात की जाए , और न ही उनसे कोई सुलह सफाई की जाए।
इस फैसले को लागू करने पर सब ने क़सम खाई और उसे एक कागज़ पर लिख कर खाना काबा के अंदर लटका दिया। इस  फैसले को बगीज़ बिन आमिर बिन हाशिम ने अपने हाँथ से लिखा था जिस पर आप(सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) ने बद्दुआ कर दी थी जिसकी वजह  उसके हाथ को लक़वा मार दिया था।
बनु हाशिम और बनु तालिब के सारे लोग अबु लहब को छोड़ कर चाहे वो मुसलमान हों या काफ़िर शेबे अबितालिब नामी घाटि में चले गए और उनसे हर चीज़ रोक दी गयी जिस से उनको काफी मशक़्क़त और परेशानी उठानी पड़ी यहाँ तक कि पत्ते और चमड़े  खाने पर मजबूर हो गए। भूक के मारे औरतों और बच्चों के रोने  आवाज़ें सुनाई देती थीं ,कभी कभी कोई चीज़ चोरी छिपे  उन तक पहुँच जाती  थी , हकीम बीन हेशाम अपनी फूफी खदीजा रज़ी अल्लाहो अन्हा तक कुछ जौ या गेहू पहुंचा दिया करते थे ,वो लोग केवल हुरमत वाले दिनों में ही घाटी से निकलते थे और  बाहर से आने वाले व्यवसायियों से ही कुछ खरीदते थे ,फिर भी जब मक्का वालों को मालूम पड़ जाता था तो जाकर सामान की क़ीमत इतनी बढ़ा देते थे कि वो लोग खरीद न सकें।
इसके बावजूद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अपनी दावत जारी रखे रहे और लोगों को एक अल्लाह की इबादत की तरफ बुलाते रहे , ख़ास कर हज के दिनों में जब अरब के क़बाएल हर तरफ से मक्का 
आते थे।

क़रार का अंत
तीन वर्षों तक मक्का वालों का यह क्रूर रवैय्या चलता रहा उसके बाद अल्लाह तआला ने उन लोगों से यह मुसीबत खत्म करने का इरादा किया अतः उनलोगो में से पांच सज्जनो  के दिल में इस क़रार नामा को खत्म करने की बात डाल दी , इन लोगों ने जब  इस अन्याय और ज़ुल्म तथा कोरैशियों के घमंड को देखा तो एक जगह मीटिंग किया और इस ज़ालिमाना अहद नामा  को खत्म करने प्रण लिया , वो पांच लोग हैं: हिशाम बिन अमर बिन हारिस , ज़ोहैर बिन अबु ओमैया (यह आप की फूफी आतेका के बेटे थे ) अबुल बख्तरी बिन हिशाम , मूतइम बिन अदी और ज़मआ  बिन अस्वद।
प्लान के अनुसार यह लोग सुबह के समय मस्जिदे हराम में आये , उस वक़्त क़ुरैश वाले खाना काबा के आस पास बैठे हुए थे, ज़ोहैर तवाफ़ करने के बाद उन लोगों के पास आया और कहने लगा कि : ऐ मक्का वालों ! हम लोग खाते पहनते हैं ,और यह लोग तबाह हो रहे हैं , अल्लाह की क़सम जब तक यह ज़ालिमाना अहदनामा फाड़ नहीं दिया जाता मैं चुप नहीं बैठूंगा।  तो अबुजहल ने कहा : तू झूठा है अल्लाह की क़सम यह अहदनामा नहीं फाडा जाएगा।  तो ज़मआ  ने उठ कर कहा : अल्लाह की क़सम तुम सब से बड़े झुटे हो, हम लोग इसे लिखे जाने के समय ही इस के हक़ में नहीं थे। फिर अबुलबख्तरी ने उठ कर कहा कि :ज़मआ  की बात सच है हम इस से कभी राज़ी नहीं थे और न ही कभी इस की ताईद की। उसके बाद मूतईम  ने कहा : तुम दोनों सच कहते हो , और इसके अलावा जो भी है वो सब झूट है हम इस से अपनी बराअत का इज़हार करते हैं। हिशाम बिन अमर ने भी इसकी ताईद की।  अबुजहल ने कहा:यह साज़िश रात में रची गई है और इसका इसका मशवेरा यहाँ आने से पहले हो चुका है।  फिर मूतइम  बिन अदि  खड़े हुए और उस अहद नामा को फाड़ दिया।

अबु तालिब मस्जिद के एक कोने में बैठे हुए थे जो उनलोगों को यह बताने आये थे की मुहम्मद(सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) ने उनको खबर दी है कि वही के ज़रीये अल्लाह तआला ने उन्हें खबर दी है कि  दीमक ने इस अहद नामा में मौजूद ज़ुल्म और बेवफाई वाली सारी  बातों को चाट लिया है और अल्लाह के नाम के सिवा उस में कुछ भी बाक़ी नहीं है। फिर जब सारे लोगों ने जाकर देखा तो वाक़ेई उस में अल्लाह के नाम के अलावा कुछ भी बाक़ी नहीं था।