बुधवार, 28 सितंबर 2011

ईस्लाम का आमंत्रण

जैसा कि पहले बताया गया कि पूरी अरब समुदाए इश्वरीए सिद्धांतों से भटकी हुई थी एक अल्लाह को छोड़ कर अनगिनत देवी देवताओं तथा मनुष्यों एवं मूर्तियों की पूजा की  जाती थी उनकी दलील केवल यह थी कि उनके पूर्वज यही करते आये हैं इसलिए हम भी यही करने को बाध्य हैं ! अन्याय अनैतिकता तथा क़त्ल उन में आम बात  थी. उनका आचार उनकी स्वयं कि प्राथमिकताएं थीं अपनी मुश्किलों के हल के लिए केवल तलवार ही उनकी प्राथमिकता थी , ऐसे माहौल में जब आप ने सत्य एवं स्वक्छ धर्म का प्रचार आरम्भ किया तो आल्लाह ने आप को आज्ञा दिया कि प्रारम्भ में गुप्त रूप से ईस्लाम का प्रचार करें और केवल उन्हीं लोगों को आमंत्रित करें जो आप के समीप भलाई तथा सत्यता से प्रेम करने वाला हो एवं आप को उन पर भरोसा हो अतः दुसरे लोगों से पहले अपने परिवार वालों में प्रचार करें

शनिवार, 24 सितंबर 2011

नबूवत की शूरूआत तथा कुरआन का नोज़ूल

जब आप की आयु चालीस वर्ष की हुई तो २१ रमज़ान सोमवार के दिन १० अगस्त सनः ६१० ई. को हेरा के ग़ार (खोह ) में आप के पास जिब्रील अलैहिस्सलाम आये और आप से पढ़ने को कहा , तो आप ने कहा कि मैं पढ़ना नहीं जानता तो जिब्रील ने आप को पकड़ कर कस के भेंचा (दबाया ) और फिर छोड़ दिया ,और कहा पढ़िये तो आप ने फिर कहा मुझे पढ़ना नहीं आता फिर दूसरी बार आप को पकड़ के भेंचा फिर छोड़ दिया और कहा पढ़िए तो आप ने फिर कहा कि मुझे पढ़ना नहीं आता तो जिब्रील अलैहिस्सलाम ने तीसरी बार पकड़ कर भेंचा और फिर छोड़ दिया और कहा :(ऐ पैगम्बर आप अपने रब के नाम से पढ़िए जिस ने (समस्त चीज़ को )  पैदा किया है (अर्थात समस्त सृष्टि की रचना की है ) जिस ने मनुष्य को रक्त के लोथड़े से पैदा किया है , पढ़िए , और आप का रब अति उदारता वाला है जिस ने क़लम के ज़रिये  शिक्षा तथा ज्ञान दिया है उस ने मनुष्य को वह सब कुछ सिखाया जो वह नहीं जानता था )
कुरआन करीम की इन पहले आयतों (अध्यायों ) को लेकर घर कि तरफ चले , आप का दिल बहुत तेज़ी से धड़क रहा था , आप अपनी पत्नी खदीजा के पास आये और कहा : मुझे कम्बल ओढ़ाओ मुझे कम्बल ओढ़ाओ तो घर वालों ने आप को कम्बल ओढ़ा  दिया अतः आप का भए जाता रहा , फिर आप ने अपनी पत्नी खदीजा रज़िअल्लाहो अन्हा को पूरी बात बताई और कहा कि मैं अपने बारे में डर गया हूँ ! खदीजा ने कहा : बिलकुल नहीं अल्लाह कि सौगंध अल्लाह आप को कभी शर्मिंदा नहीं करेगा , आप तो रिश्तेदारी निभाते हैं , मजबूरों का बोझ उठाते हैं ,ग़रीबों के लिए कमाते हैं , अत्तिथि कि सेवा करते हैं एवं सही कामों में मनुष्य की मदद करते हैं !   
फिर खदीजा आप को ले कर अपने चाचा ज़ाद भाई नौफल के पुत्र वरक़ा के पास आईं जो उस समय बहुत बूढ़े तथा कमज़ोर हो गए थे यह नसरानी (क्रिस्चन ) थे और इंजील को इब्रानी भासा में लिखते थे उन्हों ने वरक़ा से कहा : भाई अपने भतीजे की बात सुनिए तो उन्हों ने आप से पूछा भतीजे क्या बात है ? तो आप ने उनको सारी बात बतायी तो वरक़ा ने कहा कि यह तो वही नामूस(जिब्रील ) है जो ईसा अलैहिस्सलाम पर अल्लाह ने नाजिल किया था ! फिर उन्हों ने कहा :  काश मैं उस वक्त ताक़तवर जवान और जीवित होता जब आप की क़ौम आप को निकाल देगी ! आप ने आश्चर्य हो कर पूछा : क्या यह लोग मुझे निकाल देंगे ? तो वरक़ा ने कहा कि हाँ जब कोई यह चीज़ जो आप लेकर आये हैं आया है उस से दुश्मनी की गई है ! अगर मैं उस वक़्त जीवित रहा तो आप की ज़बरदस्त सहायता करूँगा ! उस के कुछ ही दिनों के बाद वर्का का देहांत हो गया तथा कुछ दिनों के लिए वही का आना बंद हो गया  
खदीजा रज़िअल्लाहो अन्हा के पास रहने के बाद जब आप का डर जाता रहा तो फिर ग़ारे हेरा में जा कर अल्लाह की इबादत एवं पूजा में लग गये उस के बाद एक महीने तक वही (कुरान ) का आना बंद हो गया और   आप उन दिनों में चिंतामय हो कर वही (कुरान ) की पर्तीक्षा करते रहे यहाँ तक के एक मास पश्चात शव्वाल के महीने में 
जिब्रील अलैहिस्सलाम आयेहुआ यूँ कि एक रोज़ आप ने राह चलते किसी को आवाज़ लगाते सुना आगे पीछे दायें बाएं देखा तो कुछ नहीं दिखा फिर जब उपर सर उठाया तो उसी फ़रिश्ते को आसमान और धरती के बीच कुर्सी पर बैठे देखा जो पहले दिन ग़ारे हेरा में आया था आप डर के मारे ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ गए फिर अपने परिवार में आये और कहा कि मुझे कम्बल ओढाओ मुझे कम्बल ओढाओ उन लोगों ने आप को कम्बल ओढा दिया उसी समय अल्लाह तआला ने कुरान मजीद की यह आयतें उतारीं जिन का अर्थ है : ऐ चादर ओढने वाले उठिए तथा मनुष्य को उनके रब (इश्वर ) से डराइये एवं अपने रब की बड़ाई (महानता )बयान कीजिये एवं अपने वस्त्र पाक (स्वक्ष ) रखिये और बुतों तथा मूर्तियों से अलग रहिये  
   

नबूवत मिलती है


बचपन ही से आप अपनी कौम अथवा समुदाए में होने वाली समस्त बुराइयों से चिन्तामए थे तथा उन से दूर रहने का प्रयास करते रहते थे ! आयु बढ़ने के साथ साथ ही आप की यह चिंता गहराती गई तथा आप निवृत्ति एवं तन्हाई को पसंद करने लगे तथा लोगों से दूर रहने लगे और मक्का से लगभग दो मील की दूरी पर   हिरा नामी पहाड़ (जिसे आज कल जबले नूर कहा जाता है)के एक ग़ार में चले जाते और कई कई दिनों तक इब्राहीम अलैहिस्सलाम के धर्म के अनुसार  अल्लाह की ईबादतमें लीन रहते,और जब भोजन पानी समाप्त हो जाता तो फिर अपनी पत्नी खदीजा  के पास आते एवं खाना पानी ले कर दुबारा उसी ग़ार में चले जाते , नबूवत मिलने से चाँद वर्षों पश्चात तो आप  रमजान के महीने में मक्का को छोड़ ही देते एवं समस्त महीना उसी ग़ार में व्यतीत करते
फिर जब आप की आयु पुरे चालीस वर्ष की हो गई तो नबूवत की निशानियाँ ज़ाहिर होने लगीं , आप अच्छे सपने देखते और वैसा ही होता जैसा आप देखते , आप प्रकाश देखते एवं ध्वनि सुनते आप नबूवत मिलने के बाद कहते थे :मैं मक्का में उस  पत्थर को पहचानता हूँ जो मुझे नबूवत मिलने के पश्चात सलाम किया करता था .