इस्लामी विषय

         इस्लाम में नमाज़ का मक़ाम 

और उसका मस्नून तरीक़ा    

الحمد لله وحده والصلاة والسلام على من لا نبي بعده وبعد :
नमाज़ इस्लाम का दूसरा रुक्न  है ,जिसको अदा करना हर आक़िल बालिग़ मर्द और औरत पर फ़र्ज़ है।  क़ुरआन और हदीस में नमाज़ की अहमियत ,फ़ज़ीलत और उसके छोड़ने वाले के बुरे अंजाम के बारे में ढेर सारे मवाद मौजूद है, जिनको ओलमाए इस्लाम ने हर युग में अपनी किताबों में मुख़्तसर तथा तफ्सील के साथ ब्यान किया है,उन्हीं ओलमा में इस दौर के दो बड़े ओलमा :अल्लामा अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़ (पूर्व मुफ़्ती आज़म सऊदी अरबिया ) तथा शेख सईद बिन कहफ़ अलक़हतनी  नें अपनी मुख़्तसर किताबों में जमा किया है जिनसे करोड़ों लोगों ने फायदा उठाया है।
हम सब से पहले अल्लाह ताला का शुक्र अदा करते हैं जिसकी तौफ़ीक़ से यह सब मुमकिन हो सका , तथा इस किताब की तैयारी और प्रकाशन में किसी भी तरह की सहायता करने वाले का  धन्यवाद करते है । 
وصلى الله على خير خلقه وسلم
               
  
भाग: 
नमाज़ का अर्थ
(लेखक:शैख़ सईद बिन अली अल्क़ह्तानी)
        अरबी भाषा में सलात (नमाज़) को दुआ कहा गया है , अल्लाह तआला  फ़रमाता है:
{خذ من أموالهم صدقة تطهرهم وتزكيهم بهاوصل عليهم    إن صلاتك سكن لهم والله سميع عليم}(سورہ توبہ :103)
इस आयत में "व सल्ले अलैहिम" (و صلّ عليهم ) से मुराद "उनके लिए दूआ  करो" हैऔर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फरमाया :
إذادعي أحدكم فليجب فإن كان صائماً فليصل وإن كان مفطراًفليطعم"."
अर्थात:"जब कोई तुम्हे खाने पर बुलाये और तुम रोज़ा रखे हुए हो तो तुम उसके लिए दूआ करो,और अगर रोज़े से नहीं हो तो खा लो ". इस  हदीस में भी "फल्योसल्लेفليصل ) का मतलब है "उसके लिए  बरकत,  भलाई और मग्फेरत की दूआ करो) ( मुस्लिम :1431)
लफ्ज़े सलात अरबी में जब अल्लाह की तरफ मनसूब हो तो उसका अर्थ है अल्लाह तआला का अपने बन्दों की तारीफ़ करना,और अगर यह लफ्ज़ फ़रिश्ते की तरफ मनसूब हो तो इसका अर्थ है दूआ करना जैसाकि अल्लाह तआला फ़रमाता है :

} {إن الله وملائكته يصلون على النبي ياأيهاالذين آمنواصلواعليه وسلمواتسليماً 
(سورہ احزاب :56)
अर्थात:(अल्लाह तआला और उसके फ़रिश्ते इस नबी पर रहमत भेजते हैं,ऐ ईमान वालों! तुम भी उनपर दरूद भेजो और खूब सलाम भी भेजा करते रहो) अबुल आलिया एक मशहूर आलिमे दीन हैं वह कहते हैं कि:लफ्ज़े सलात जब अल्लाह तआला कि तरफ से इस्तेमाल हो उसका अर्थ है अल्लाह तआला का अपने बन्दों की फरिश्तों के सामने तारीफ़ करना". (बुखारी:४७९७).
शरीअत की भाषा में लफ्ज़े सलात का  अर्थ (मफ़हूम)
    सलात उस मशहूर ईबादत को कहते हैं जो अलाह तआला के लिए ख़ास है जिसको मखसूस कामों तथा शब्दों से अदा किया जाता है जिसकी शुरूआत तक्बीरे तहरीमा और अंत सलाम से होती है .
नमाज़ को अरबी में सलात(صلاة)  (जिसका अर्थ दूआ होता है) इस लिए कहा गया है कि नमाज़ में बेशुमार (बहुत ज़यादा) दुआएं हैं.
गोया लफ्ज़े सलात का इस्तेमाल हर दूआ के लिए होता था लेकिन बाद में ख़ास ईबादत नमाज़ के लिए होने लगा या लफ्ज़े सलात दूआ करने को कहा जाता था तो शरई सलात(नमाज़)के लिए इस्तेमाल होने लगा इसलिए कि नमाज़ और दूआ में बड़ा सम्बन्ध पाया जाता है,इसलिए जब भी लफ्ज़े सलात शरीअत में इस्तेमाल हो तो उस से आम मुराद नमाज़ ही होती है,इसलिए कि नमाज़ मुकम्मल दूआ है .
नमाज़ का हुक्म
   क़ुरआन एवं सुन्नत और इज्मा की रोशनी में नमाज़ माहवारी और  नफास वाली औरत को छोड़ कर हर बालिग़ आक़िल मुसलमान मर्द और  औरत  पर  फ़र्ज़ है , कुरआन  करीम में अल्लाह तआला का इरशाद है:
 {وماأمرواإلاليعبدواالله مخلصين له الدين حنفاءويقيموا الصلاةويؤتوا الزكاة وذلك دين  القيمة}         (سورہ    بینہ :5)  
अर्थात:(अल्लाह तआला ने अपने बन्दों को ख़ालिस अल्लाह तआला की ईबादत करने,नमाज़ क़ायेम करने और ज़कात अदा करने का हुक्म दिया है, और यही ठोस दीन है) दूसरी जगह फरमाता है :
(سورہ نساء :103)۔{ إن الصلاة كانت على المؤمنين كتاباًموقوتاً    }
अर्थात:(नमाज़ मोमिनों पर तय(मोक़र्रर) वक़्त पर फ़र्ज़ है) हदीस  में  मआज़ बिन जबल रज़ीअल्लाहो अंहो से मर्वी है किअल्लाह के रसूल ने जबउन्हें यमन भेजा तो फरमाया कि :" उन्हें यह तालीम दें कि अल्लाह तआला ने  उन पर रात और दिन में पांच वक़्त की नमाज़ें फ़र्ज़ की हैं"(सहीह बुख़ारी:१३९५)दूसरी हदीस में अब्दुल्लाह बिन ऊमर  रज़ीअल्लाहो  अन्होमा  से मर्वी है  कि अल्लाह  के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम  ने फ़रमाया :
 "بني الإسلام على خمس : شهادة أن لاإله إلا الله وأن محمداً رسول الله وإقام الصلاة وإيتاءالزكاة وصيام رمضان وحج البيت لمن استطاع إليه سبيلا".
अर्थात :" इस्लाम की बुनियाद पांच  चीज़ों  पर रखी गई हैइस  बात की  गवाही  देना कि सच्ची ईबादत के लायेक़ सिर्फ अल्लाह तआला ही है और  मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैंनमाज़  क़ायेम  करना , ज़कात  अदा  करना,रमज़ान का रोजा  रखना और  क़ुदरत  रखने वाले के लिए अल्लाह  के घर (खाना काबा )का हज्ज करना".(सहीह बुख़ारी:8)
इसी तरह ओबादा बिन सामित की रवायत है कि:उन्होंने फ़रमायाकि मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को फ़रमाते हुए सुना कि:" पांच वक़्त की नमाज़ को अल्लाह रब्बुल आलमीन ने अपने बन्दों के ऊपर फ़र्ज़ क़रार दिया है,अगर कोई पांच वक्तों की नमाज़ की अच्छी तरह हिफाज़त करे और उस में किसी तरह का ख़लल न हो तो  अल्लाह तआला का वादा है कि उसको  जन्नत में दाख़िल करेगा " (अबुदाऊद :१४२०) इसके अलावा भी बहुत सारी आयतें और हदीसें हैं जिनमें नमाज़ के फ़र्ज़ होने का बयान है .
इज्मा : रात और दिन में पांच वक़्त की नमाज़ के फ़र्ज़ होने के  बारे  में ओलमा का इज्मा है(अलमूग्नी/इब्ने क़ोदामा :३/६)माहवारी और  नफास की हालत में औरतों पर नमाज़ फ़र्ज़ नहीं है जैसा कि हदीस में है :
"أليست إذاحاضت لم تصل ولم تصم".
" अर्थात :"क्या औरतें जब हैज़(माहवारी) की हालत में होती हैं तो नमाज़ और रोज़ा छोड़ नहीं देती हैं? " (सहीह बुख़ारी:१/११४).

इस्लाम में नमाज़ का मक़ाम
    इस्लाम में नमाज़ का बहुत बड़ा मक़ाम है उसकीअहमियत का अंदाज़ा निम्न बातों से लगाया जा सकता है :
(१)  नमाज़ दीन का सोतून(स्तंभ) है जिसके बगैर दीन का क़ायेम  रहना ही मुश्किल हैजैसाकि मआज़ बिन जबल रज़ीअल्लाहो  अंहो से मर्वी है किअल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया :
"رأس الأمرالإسلام وعموده الصلاة وذروة سنامه الجهاد".
 अर्थात  " असल इस्लाम है,और उसका स्तंभ नमाज़ है,और इस्लाम की  बुलंदी जिहाद में है.(इसलिए अगर स्तंभ ही गिर जाए तो पूरी इमारत  ही गिर जायेगी) (तिरमिज़ी :२६१६).
(२) क़यामत के रोज़ सब से पहले नमाज़ के बारे में हिसाब होगा,अगर नमाज़ में नाकामयाब हो गए तो दुसरे आमाल भी फ़ेल हो जायेंगे,अनस बिन मालिक रज़ीअल्लाहो अंहो से रिवायत  है किअलाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया :
"أول ما يحاسب به العبد يوم القيامة الصلاة , فإن صلحت صلح سائر عمله وإن فسدت فسدسائرعمله".
 अर्थात :" बन्दा क़यामत के रोज़ सब से पहले नमाज़ के बारे में पूछा  जाएगा ,अगर नमाज़ सहीह होगी तो  उसका सारा अमल सहीह होगा और अगर नमाज़ सहीह नहीं होगी तो उसका सारा अमल खऱाब हो जाएगा " ( तबरानी :१/४०९).
(३) दीन में सब से अंतिम में ख़तम होने वाला अमल नमाज़ है तो जब नमाज़ ही ख़तम हो जायेगी तो कोई चीज़ बाक़ी नहीं  रह सकती,जैसाकि  अबू ओसामा रज़ीअल्लाहो अंहो की रिवायत है कि: आप सल्लल्लाहो  अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया :
"لتنقضن عرى الإسلام عروة عروة فكلماانقضت عروة تشبث الناس  بالتي تليهانقضاً فأولهن الحكم وآخرهن الصلاة".
अर्थात :" इस्लाम  पर   लोग धीरे धीरे अमल करना छोड़ देंगे तो सब से पहले लोग अल्लाह  तआला के फैसला को मानना छोड़ देंगे और अंत में नमाज़ भी छोड़ देंगे" (मुस्नद अहमद :५/२५१)  .
(४) अल्लाह के रसूल की आख़री वसीयत नमाज़ है उम्मे सलमा  रज़ी अल्लाहो अन्हा फरमाती हैं कि:आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की अंतिम वसीयत यह थी :
"الصلاة ,الصلاة , وماملكت أيمانكم".
अर्थात:"नमाज़ का और ग़ुलामों का ख़ास ख़याल रखना " (मुस्नद अहमद :6/290) 
(५) जो लोग खुद नमाज़ पढ़ते हैं और अपने बाल बच्चों को भी नमाज़ पढने का हुक्म देते हैं अल्लाह तआला ने कुरआन करीम में उनकी बड़ी तारीफ़ की है,फ़रमाता है :
{واذكر في الكتاب إسماعيل إنه كان صادق الوعد وكان رسولاًنبياًوكان يأمرأهله بالصلوة والزكوة وكان عند ربه   مرضياً  } (سورہ مریم :54 - 55) ۔
अर्थात: (और किताब (कुरआन) में इस्माईल अलैहिस्सलाम के वाक़ेआ (कहानी) को याद करो वह वादे के सच्चे थे रसूल और नबी थे,और अपनी आलो औलाद को नमाज़ और ज़कात का हुक्म देते थे और वह अल्लाह तआला के नज़दीक पसंदीदा लोगों में से थे).
(६) अल्लाह तआला ने नमाज़ छोड़ने और उसकी अदायेगी में सुस्ती करने वालों की सख्त निंदा की है फ़रमाता है :
} فخلف من بعدهم خلف أضاعواالصلوةواتبعواالشهوات فسوف يلقون غياً {
(سورہ مریم :59)
अर्थात :( उनके बाद ऐसे लोग आये जिन्होंने नमाज़ को ज़ाया(बर्बादकर दिया  और  नफ्स  की  ग़ुलामी(पैरवी) में लग गए ,तो वह लोग जहन्नम में डाले जायेंगे) 
(७) नमाज़ कलमए शहादत के बाद दीन के अरकान में सब से अहम् रुक्न हैअब्दुल्लाह बिन उम्र रज़ीअल्लाहो अन्होमा रिवायत करते हैं कि:अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:
"بني الإسلام على خمس : شهادة أن لاإله إلا الله وأن محمداً رسول الله وإقام الصلاة و إيتاء الزكاة وصيام رمضان وحج البيت ".
अर्थात:"दीन की बुनियाद पांच चीज़ों पर रखी गई है: (1) केवल अकेले  अल्लाह के सच्चे माबूद होने की गवाही देना और मुहम्मद रसूलुल्लाह के नबी होने की गवाही देना.(2) नमाज़ क़ायेम करना. (3) ज़कात अदा करना.(4) रमज़ान का रोज़ा रखनाऔर (5) हज्ज करना" (अबुदाऊद :४९५).
(८) नमाज़ की अहमियत का अंदाज़ा इस से भी लगा सकते हैं कि उस की फर्ज़ियत ज़मीन पर जिब्रील अलैहिस्सलाम के वास्ते से नहीं बल्कि सातवें आसमान पर मेराज की रात हुई .
(९) नमाज़ पहले पच्चास वक़्त की फ़र्ज़ थी जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अल्लाह तआला नमाज़ से कितनी  मुहब्बत करता है, फिर अल्लाह तआला ने बन्दों पर शफ़क़त करते हुए इस नमाज़ को पांच वक़्त में बदल दिया ,नमाज़ अमली ज़िन्दगी में पांच वक़्त की होते हुए भी मीज़ान(तराज़ू) में पच्चास वक़्त की है जो इसकी अज़मत की  वाज़ेह  दलील है .
(१०) अल्लाह तआला ने नेक और कामयाब लोगों के आमाल  की शुरुआत  नमाज़ से की है और ख़तम  भी नमाज़ पर किया है जो उसकी अहमियत की बहुत बड़ी दलील है अल्लाह तआला फरमाता है :
     {قدأفح المؤمنون الذين هم في صلاتهم خاشعون     والذين هم عن اللغو معرضون     والذين هم  للزكوة فاعلون     والذين هم لفروجهم  حافظون   إلا على أزواجهم أوماملكت أيمانهم فإنهم غيرملومين    فمن ابتغى وراءذلك فأولئك هم العادون والذين هم لأماناتهم وعهدهم راعون      والذين هم على صلوتهم يحافظون } (سورہ مؤمنون :1- 9) .
अर्थात: (वोह मोमिन कामयाब हो गए जो अपने नमाज़ में खूशु बरतते हैं, जो बेकार की और फ़ज़ूल  बातों से बचते हैं और जो अपने माल में ज़कात अदा करते हैं,और जो लोग अपनी शरमगाह की हिफाज़त करते हैं सिर्फ अपनी पत्नियों से और लौंडियों से अपनी ज़रुरत पूरी करते हैं क्योंकि उनके लिए दुसरा तरीक़ा सहीह नहीं है,अगर कोई दुसरा तरीका इख्तेयार करे तो यह लोग हद से बढ़ जाने वाले हैं,और जो लोग अपनी अमानत और वादे की पाबंदी करते हैं,और जो लोग अपनी नमाज़ की पाबंदी करते हैं ).
(११) अल्लाह तआला ने आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को और आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के हुक्म के पालन करने वालों को हुक्म दिया है कि यह लोग अपने बाल बच्चों को नमाज़ का हुक्म दें जिस से नमाज़ की अहमियत वाज़ेह हो जाती है,अल्लाह तआला फ़रमाता है :
{وأمرأهلك بالصلوةواصطبرعليهالانسألك رزقاً نحن نرزقك والعاقبة للتقوى}                                                                                                                           (سورہ طہ : 132)۔
अर्थात :(अपने अहल (बाल बच्चों) को नमाज़ का हुक्म दो और खुद भी उसी पर क़ायेम रहोहम आप से कोई रोज़ी नहीं मांग रहे हैं हम तो खुद तुम्हे रोज़ी देते हैं,और आखिर में नेकी और परहेज़गारी का ही बोल बाला होगा) और अब्दुल्लाह बिन  ऊमर रज़ीअल्लाहो अन्होमा  से रिवायत है कि: आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:
"مرواأولادكم بالصلاة وهم أبناءسبع سنين , واضربوهم عليها وهم أبناءعشروفرقوابينهم في المضاجع)  ۔
अर्थात:"जब तुम्हारे बच्चे सात साल के हो जाएँ तो उन्हें नमाज़ पढ़ने का हुक्म दो और जब दस साल के हो जाएँ तो नमाज़ के छोड़ने की वजह से उनकी पिटाई करो और उनके बिस्तर अलग कर दो " (अबुदाऊद:495)
(१२) सो जाने और भूल जाने वालों को नमाज़ की क़ज़ा का हुक्म दिया गया,है जिस से उसकी अहमियत का पता चलता हैअनस रज़ीअल्लाहो  अंहो की रिवायत है कि: अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया :
" من نسي الصلاة أونام عنها فكفارتها أن يصليها إذا ذكرها".
अर्थात: " अगर कोई नमाज़ पढ़ना भूल जाए या सो जाए तो उसका कफ्फारा  यह है कि जब याद आये उस वक़्त पढ़ ले"(बुख़ारी:597 )
इसी तरह तीन दिन तक  बेहोश आदमी भी सो जाने वाले के हुक्म में है, जिस की दलील अम्मार ,इमरान बिन हुषैन और समोरा बिन जुन्दुब  रज़ीअल्लाहो अन्हुम की रिवायत में है ( अश्शरह अलकबीर /इब्ने  क़ोदामा :३/८अल्मुग्नी :२/५०-५२)  लेकिन अगर बेहोशी का समय तीन दिन से ज़्यादा हो तो उस पर क़ज़ा नहीं हैइसलिए कि बेहोश आदमी तीन दिन के बाद मुकम्मल अक़ल ख़तम होने की वजह से पागल के हुक्म में है .( मजमु फतावा शैख़ इब्ने बाज़ :२/४५७)  
इस्लाम में नमाज़ की खोसुसीयत (विशेषता)
नमाज़ का इस्लाम में बहुत बड़ा मक़ाम है बल्कि सारे नेक आमाल से अलग मक़ाम रखती है,निम्न में नमाज़ की कुछ विशेस्ताएं लिखी जा रही हैं :
(१) अल्लाह तआला ने नमाज़ को ईमान का नाम दिया है इरशाद फ़रमाता है :
{وماكان الله ليضيع إيمانكم    إن الله بالناس لرؤوف رحيم} (سورہ بقرہ :143)  
अर्थात:(अल्लाह तुम्हारा ईमान ज़ाया(बर्बाद) नहीं करेगा  क्योंकि अलाह लोगों के साथ मेहरबान और रहीम है) यहाँ ईमान से मुराद नमाज़ है इसलिए कि नमाज़ ईमान के अमल और कौल की तस्दीक करती है . 
(२) नमाज़ नेक अमल में शामिल होने के बावजूद उसे कई जगहों पर अलग ज़िक्र किया गया हैइसलिए कि तमाम शरई मामलों में एक अलग विशेषता रखती है ,अल्लाह तआला फ़रमाता है :
{واتل ماأوحي إليك من الكتاب وأقم الصلاة} (سورہ عنکبوت :45)
अर्थात:(जो किताब आपकी तरफ वही की गई है उसे पढ़िए  और  नमाज़   क़ायेम कीजिये ) .
दूसरी जगह इरशाद फ़रमाता है :
وأوحيناإليهم فعل الخيرات وإقام الصلاة}  (سورہ انبیاء :73)
अर्थात:( और हम ने उनको नेक  अमल करने और नमाज़ पढ़ने के लिए  वही कियाइन दोनों आयतों में नमाज़ का अलग ज़िक्र हुआ है हालांकि नमाज़ भी अमले ख़ैर में  दाख़िल है . 
(३) कुरआन करीम में बहुत सारी ईबादतों के साथ नमाज़ को मिलाया गया है अल्लाह तआला फ़रमाता है :
{وأقيمواالصلوة وآتواالزكاة واركعوا مع الراكعين} (سورہ بقرہ :43)
अर्थात:(नमाज़ क़ायेम करो और ज़कात अदा करो और रुकू करने वालों(नमाज़ पढ़ने वालों)के साथ रुकू करो)दूसरी जगह इरशाद फ़रमाता है :
{فصل لربك وانحر} (سورہ کوثر:2)
अर्थात:( अपने रब के लिए नमाज़ पढ़िए और क़ुरबानी कीजिये) इसी  तरह   फ़रमाता है :
{قل إن صلاتي ونسكي ومحياي ومماتي لله رب العالمين(سورہ انعام :162)
अर्थात :( कह दीजिये मेरी नमाज़ और मेरी क़ुरबानी और मेरा जीना और मेरा मरना सब अल्लाह के लिए है) .
(४) अल्लाह तआला ने नमाज़ की अदाईगी और उस में होने वाली  मेहनत और परेशानी   पर अपने नबी को सब्र करने का हुक्म दिया है :
{وأمرأهلك بالصلوةواصطبرعليهالانسألك رزقاً نحن نرزقك (سورہ طہ :132) 
अर्थात :(अपने अहल को नमाज़ का हुक्म दीजिये और उस पर सब्र कीजिये,हम आप से रोज़ी नहीं तलब कर रहे हैं, हम खुद आप को रोज़ी देते हैं ).
(५) नमाज़  हर हालत में फ़र्ज़ है ,बीमार होभयभीत हो ,मुसाफिर हो चाहे किसी और हालत में हो.कभी कभी उसकी शर्तों,रेकअतों   की  तादाद    और नमाज़ के आमाल में फ़र्क़ है मगर पुरे तौर पर मआफ़ नहीं है ,यह उसकी अहमियत की दलील है .
(६) नमाज़ में चंद हालातों की शर्त है ,जैसे :पाकीज़गी( तहारत),ज़ेबो ज़ीनत (सज संवर कर),क़िबला की तरफ रुख़ करना  आदि जबकि दूसरी  ईबादतों में यह शर्त नहीं है .
(७) नमाज़ में जिस्म के तमाम भाग शामिल हैं ,जैसे दिल,ज़ुबान,हाथ  पाँव आदि .
(८) नमाज़ की हालत में दूसरी चीज़ों में मशगुल रहने से मना किया गया है जैसे ईशारा करना कुछ बोलना और सोचना आदि .
(९) नमाज़ दीन का ऐसा अमल है जिस पर ज़मीन और आसमान वाले  ईमान रखते हैं और यह तमाम नबियों की शरीअत की कुंजी है और हर नबी की  उम्मत को नमाज़ पढ़ने का हुक्म दिया गया .
(१०) नमाज़ को तस्दीक़ के साथ मिलाया गया है ,अल्लाह तआला फ़रमाता है :
{فلاصدق ولاصلى ولكن كذب وتولى} (سورہ قیامہ :31 – 32) 
अर्थात :( उसने तस्दीक़ की और  नमाज़ पढ़ी बल्कि झूट बोला  और पीठ  फेर कर भाग गया).
इस्लाम में बे नमाज़ी का हुक्म
फ़र्ज़ नमाज़ों का छोड़ देना कुफ्र है ,जो नमाज़ के वोजूब का इनकार करते हुए नमाज़ छोड़ दे तो तमाम अहले इल्म का इज्मा है कि वह काफिर और इस्लाम से ख़ारिज है ,उसके साथ वह नमाज़ ही क्यों न  पढ़ता रहेअगर कोई ज़माज़ के वोजूब का इक़रार करते हुए नमाज़ बिल्कुल छोड़ दे तो वह भी काफ़िर है और अहले इल्म का सहीह  मसअला यही है कि वह भी इस्लाम से ख़ारिज हो जाएगा ,  जिसकी  बहुत  सारी दलीलें हैं : 
(१) अल्लाह तआला  इरशाद है :
{يوم يكشف عن ساق ويدعون إلى السجود فلا يستطيعون خاشعة أبصارهم ترهقهم ذلة وقد كانوا يدعون إلى السجود وهم سالمون(سورہ قلم :42 – 43)
इस आयत के अंदर यह बताया गया है कि बेनमाज़ी का हश्र काफ़िरों और  मुनाफिक़ों के साथ होगा,जब मुसलमान अल्लाह के सामने सजदा करेंगे तो मुसलमान होने के बावजूद उन की पीठ नहीं झुकेगी बल्कि खड़ी की खड़ी रह जाएगी.
(२) दूसरी जगह इरशाद फ़रमाता है :
{كل نفس بماكسبت رهينة إلا أصحاب اليمين في جنات يتساءلون عن المجرمين ماسلككم في سقر قالوا لم نك من المصلين ولم نك نطعم المسكين وكنا نخوض مع الخائضين وكنا نكذب بيوم الدين(سورہ مدثر:38 – 46)
इस आयत से मालूम हुआ कि बेनमाज़ी मुजरिमों के साथ जहन्नम में जाने  वाला  होगा ,जैसाकि  मुजरिमों के बारे में अल्लाह तआला का इरशाद है :
{إن المجرمين في ضلال وسعر يوم يسحبون في النار على وجوههم ذوقوا مس سقر}                                                                                                           (سورہ قمر:47- 48)                                                                                          
(३) और एक जगह इरशाद है :
{فإن تابوا وأقاموا الصلاة وآتوا الزكاة فإخوانكم في الدين ونفصل الآيات لقوم يعلمون}(سورہ توبہ :11)
यहाँ इस आयत में अल्लाह तआला ने लोगों को मुसलामानों के भाई होने की शर्त नमाज़ लगाई है कि वह उस वक़्त मुसलमान के भाई हो  सकते  हैं जब नमाज़ पढ़ने लगें  .
(४) जाबिर रज़ीअल्लाहो अंहो से रिवायत है कि: अल्लाह के रसूल  सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया :
" بين الرجل وبين الشرك والكفرترك الصلاة "۔
 अर्थात :" आदमी  (मोमिन) और मुशरिक और काफ़िर के दरमयान (बीच )  फ़र्क़ करने वाली चीज़  नमाज़  छोड़ना है " ( मुस्लिम :76)
 (५) अब्दुल्लाह बिन बोरैदा अपने पिता से रिवायत करते हैं कि:अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया :
"العهد الذي بيننا وبينهم ترك الصلاة , فمن تركها فقد كفر"۔
अर्थात :" हमारे (मुसलमानों) और उनके (काफ़िरों -मुशरिकों ) के  बीच अह्दो पैमान नमाज़ का है तो ,जिसने नमाज़ छोड़ दी वह काफ़िर हो  गया "(तिरमिज़ी :२६२१ ,नेसई/किताबुस्सलात :१/२३१ ,इब्ने माजा / किताबुल  इक़ामा:१०७९ ) 
इस रिवायत में वाज़ेह  तौर पर बेनमाज़ी को काफ़िर से मिलाया गया है.
(६)  अब्दुल्लाह बिन शकीक़ रज़ीअल्लाहो अंहो रिवायत करते  है कि : सहाबा कराम रज़ीअल्लाहो अन्हुम नमाज़ के अलावा किसी भी  नेक अमल को छोड़ देने पर उसको काफ़िर नहीं  समझते थे , इस असर(रिवायत) से नमाज़ छोड़ने वाले के काफ़िर होने पर सहाबा कराम रज़ीअल्लाहोअन्हुम का  इज्मा नक़ल किया गया है. (तिरमिज़ी ,किताबुल ईमान /२६२२)
(७) बहुत सारे ओलमा ने सहाबा कराम रज़ीअल्लाहो अन्हुम से बेनमाज़ी के काफ़िर होने परब इज्मा नक़ल किया है (देखिये :महल्ला इब्ने  हज़म : २/२४२-२४३ , किताबुस्सलात /ईमाम इब्ने कैय्यिम :पे.सं.२६ , शरह  मोमत्ता /शैख़ इब्ने ओसैमीन:२/२८)
(८) शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिया रहेमहुल्लाह ने दस वजहों  से बेनमाज़ी  को काफ़िर कहा है (देखिये :शरहुल उम्दा  :२/८१-९४)
(९) इमाम इब्ने कैय्यिम ने बेनमाज़ी के काफ़िर होने पर २२ दलीलें दी हैं (देखिये :किताबुस्सलात /ईमाम इब्ने कैय्यिम :पे.सं.१७ -२६)
(१०) "इस में कोई शक नहीं कि बेनमाज़ी काफ़िर है " यह कौलशैख़ इब्ने बाज़ का है.(तोह्फ़तुल इख्वान :पे.सं.७२)
(११) इमाम इब्ने कैय्यिम फ़रमाते हैं कि बेनमाज़ी के काफ़िर होने पर क़ुरानो सुन्नत और इज्मा दलालत करती है .(किताबुस्सलात :पे.सं.१७)
नमाज़ की फ़ज़ीलत
(१) नमाज़ बे हयाई और बुरे कामों से रोकती है अल्लाह तआला का इरशाद है :
 {اتل ماأوحي إليك من الكتاب وأقم الصلاة إن الصلاة تنهى عن  الفحشاء   والمنكر   و لذكر الله أكبر والله يعلم  ماتصنعون }  (سورہ عنکبوت :45) ۔
अर्थात :( ऐ नबी आप पर जो वही की गई है उसकी तिलावत कीजिये और नमाज़ क़ायेम कीजिये ,क्योंकि नमाज़ बेहयाई  और बुरे कामों से रोकती हैऔर अलाह का ज़िक्र बुलंद है ,और तुम जो कुछ करते हो अल्लाह उसे जानता है)
(२) शहादतैन के बाद नमाज़ सब से अफज़ल अमल है ,अब्दुल्लाह बिन   मसऊद रज़ीअल्लाहो अंहो से रिवायत है कि: मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से  पूछा : सब से अच्छा अमल कौन सा है ? तो आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया :"वक़्त पर नमाज़  पढ़ना" फिर पूछा :उसके बाद कौन सा अमल ? तो आप सल्लल्लाहो  अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया:"माँ बाप के साथ हुस्ने सोलुक(अच्छा बर्ताव) और  भलाई करना " फिर पूछा :उसके बाद कौन सा तो आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया :" अल्लाह के रस्ते में जिहाद करना "(बुखारी :७५३४,मुस्लिम:५८)
(३) नमाज़ गुनाहों को धो डालती है,जाबिर रज़ीअल्लाहो अंहो से रिवायत है कि:अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया: "पांच वक्तों की नमाज़ पढ़ने की मिसाल तुम्हारे घर के सामने उस  भरे नहर की है जिस में इंसान दिनमें  पांच  बार स्नान करे " (मुस्लिम: ६६८)
(४) नमाज़ गुनाहों का कफ्फ़ारा है ,अबुहोरैरा रज़ीअल्लाहो अंहो की रिवायत है कि:अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया :"पांच वक्तों की नमाज़ पढ़ना ,एक जुमा से दुसरे जुमा की नमाज़ ,और एक रमजान से दुसरे रमजान का रोज़ा दोनों के दरमियान के गुनाहों का कफ्फ़ारा है ,अगर कबीरा (बड़े )गुनाहों से बचा जाए " (सहीह मुस्लिम:२३३)
(५) नमाज़ नमाज़ी के लिए दुनिया और आख़ेरत में नूर और रोशनी है ,अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ीअल्लाहो अन्हुमा फ़रमाते हैं कि:एक दिन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के पास नमाज़ का ज़िक्र किया गया  तो आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया :"जिस ने नमाज़ की पाबन्दी की तो क़यामत के दिन वह नमाज़ उसके लिए रोशनी ,रास्ता दिखाने वाली और नजात का ज़रिया बनेगी,और जीसने उसकी पाबन्दी नहीं की उसके लिए न नूर होगी और न दलील और नजात का ज़रिया बनेगी,और वह क़यामत के रोज़ क़ारुनफ़िरऔन,हामान और ओबै बिन खल्फ़ के साथ उठाया जाएगा" (मुस्नद अहमद :२/१६९ ,दारमी:२/३०१)
बोरैदा रज़ीअल्लाहो अंहो की हदीस है कि:अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया:"अँधेरी रातों में मस्जिद की तरफ जाने वाले को क़यामत के दिन कामिल नूर की बशारत दे दो "(अबू दाऊद: २२३)
(६) नमाज़ के ज़रिये अल्लाह तआला नमाज़ी का दर्जा बुलंद फ़रमाता है और गुनाहों को मिटाता है जैसा कि  सौबान रज़ीअल्लाहो अंहो की रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया :'ज़्यादा से ज़्यादा सजदे किया करो इसलिए कि तुम जो भी सजदा करते हो अल्लाह तआला उसके ज़रिये तुम्हारा एक दर्जा बुलंद फ़रमाता है और एक गुनाह मिटा देता है "(सहीह मुस्लिम:४८८)
(७) नमाज़ पढ़ना नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के साथ  जन्नत में दाख़िल होने का सब से बड़ा सबब है,जैसाकि रबीआ बिन काब असलमी रज़ीअल्लाहो अंहो  की हदीस में है कि:मैं नबी अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम  के साथ रात गुज़ारता था , आप के लिए वज़ू का पानी और दूसरी चीज़ें लेकर आया तो आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने कहा :" रबीआ!जो  मांगना है मांगो " तो मैंने कहा:जन्नत  में आप का साथ चाहिए , आप ने फ़रमाया :" इसके अलावा कोई और चीज़ मांगो " तो मैंने कहा जन्नत में सिर्फ आप की संगत चाहिए तो आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया:" ज़्यादा से ज़्यादा सजदों  (नमाज़) से उसको हासिल कर सकते हो ". 
(८) नमाज़ के लिए निकलने से नेकियाँ लिखी जाती हैं और दर्जात बुलंद होते हैं और गुनाह माफ़ होते हैं ,अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अंहो की रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:"कोई अपने घर में वज़ू करे फिर किसी मस्जिद में जाए ताकि कोई फ़र्ज़ नमाज़ पढ़े तो उसके दोनों क़दम से चलने की वजह से एक के बदले गुनाह मिटाया जाता है और दुसरे के बदले दर्जात को बुलंद किया जाता है "(सहीह मुस्लिम :६६६).
दूसरी हदीस में है:"जब तुम में से कोई वज़ू करे फिर मस्जिद के लिए निकल पड़े तो दाहने क़दम उठने पर अल्लाह तआला नेकियाँ लिख देता है और बाएं क़दम रखने से पहले  अल्लाह तआला गुनाहों को मिटा देता है "(अबुदाऊद :५६३).
(९) नमाज़ पढने के लिए आना जाना जन्नत में मेहमान बनने का सबब है,अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अंहो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से रिवायत करते हैं कि:आपने फ़रमाया:"जो भी मस्जिद में(नमाज़)के लिए जाए और आए तो अल्लाह तआला उसके लिए जब भी जाए और आए जन्नत में मेहमान नवाजी का इंतेज़ाम करता है"(बुख़ारी:६६२ ,मुस्लिम :६६९) .
(१०) अल्लाह तआला एक नमाज़ से दूसरी नमाज़ के दरमयान के गुनाहों को माफ़ कर देता है,उस्मान रज़ीअल्लाहो अंहो की रिवायत है कि: मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से फ़रमाते हुए सुना:"जब मोमिन मर्द अच्छी तरह वज़ू करके नमाज़ पढ़ता है तो अल्लाह तआला उस नमाज़ और दूसरी नमाज़ के बीच के गुनाह को माफ़ कर देता है"(सहीह मुस्लिम:२२७).
(११) नमाज़ पिछले गुनाहों को भी माफ़ करा देती है,उस्मान रज़ीअल्लाहो अंहो की रिवायत है कि : मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को फ़रमाते हुए सुना:"कोई मुसलमान  आदमी जब फ़र्ज़ नमाज़ के वक़्त अच्छी तरह से वज़ू करता हैऔर ख़ुशु के साथ नमाज़ पढ़ता है और रुकू भी अच्छी तरह से करता है, और कबीरा गुनाह से बचता है तो अल्लाह तआला  उसके पिछले गुनाह को माफ़ कर देता है और हमेशा उसे  अजरो  सवाब से नवाज़ता रहता है" (सहीह मुस्लिम:२२८).
(१२) नमाज़ी जब तक मस्जिद में बैठे हों फ़रिश्ते उनके लिए दुआ करते रहते हैं,और जब तक वह नमाज़ में मशगुल हो उसका भी सवाब लिखा जाता है,अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अंहो की रिवायत है कि: अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने बयान फ़रमाया:"जमाअत के साथ आदमी की नमाज़ घर में नमाज़ पढने से ज़्यादा सवाब रखती है ,और आदमी का जमाअत के साथ  नमाज़ पढ़ने का सवाब २७ गुणा ज़्यादा है वो इस तरह कि जब कोई नमाज़ी अच्छी तरह से वज़ू करे फिर मस्जिद आए वह घर से सिर्फ नमाज़ ही के लिए तैयार हो कर  चला हो, नमाज़ के अलावा  उसे  कुछ नहीं चाहिए , तो एक  क़दम  उठाता  नहीं कि उसके बदले अल्लाह  तआला उसके दर्जा को बुलंद करता है,और उसके एक गुनाह को माफ़ कर देता है,यहाँ तक कि वह मस्जिद में दाख़िल हो जाए,जब वह मस्जिद में दाख़िल हो जाता है तो वह नमाज़ की हालत में शुमार होता है जब तक वह नमाज़ के लिए रुका हुआ रहे (यानी :नमाज़ अदा करने तक जितना भी उसे मस्जिद में इंतज़ार करना पड़ा है वह सब नमाज़ के सवाब में लिखा जाएगा ) और फ़रिश्ते उस वक़्त तक नमाज़ी के लिए  दूआ करते रहते हैं जब तक वह नमाज़ की जगह बैठा रहे फ़रिश्ते कहते हैं :"ऐ अल्लाह उस पर रहम फ़रमाऐ अल्लाह उसे बख्शदे ,ऐ अल्लाह उसकी तौबा क़बूल फ़रमा ले " जब तक वह मस्जिद में किसी को तकलीफ़  दे और जब तक उसका वज़ू न टूट जाए " (बुख़ारी:२११९ , मुस्लिम :६४९). 
(१३) नमाज़ के लिए इंतज़ार करने का सवाब  जिहाद के रास्ते में दुश्मनों के घात  में  लगने के बराबर  है ,अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अंहो  की हदीस है कि:रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया :"क्या मैं तुम लोगों को ऐसी बात न बताऊँ जिस से अल्लाह तआला गुनाहों को मिटाता है और दर्जों को बुलंद करता है ? " लोगों ने कहा ज़रूर ऐ अल्लाह के रसूल तो आप ने फ़रमाया :"तकलीफ के बावजूद अच्छी तरह वज़ू करना और मस्जिद की तरफ ख़ूब चलना और एक नमाज़ के बाद दूसरी नमाज़ का इंतज़ार करना ,और यही तो दुश्मन के घात में लगे रहना है यही तो दुश्मन के घात में लगे रहना है "(सहीह मुस्लिम :२५१).
(१४)जो नमाज़ के लिए निकलता है उसको हज्ज में निकलने के बराबर सवाब मिलता है ,अबू ओमामा रज़ीअल्लाहो अंहो रिवायत करते हैं कि:अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:"जो अपने घर से फ़र्ज़ नमाज़ के लिए वज़ू करके निकलताहै तो उसका सवाब एहराम बांधे हुए हाजी की तरह है,और जो  चाश्त की नमाज़ के लिए निकलता है फिर उसमें उसको थकावट हो तो  उस का सवाब उमरा करने वाले की तरह है ,और एक नमाज़ के बाद दूसरी नमाज़ जिन दोनों के बीच कोई बेकार और फ़ालतू की बात न हो तो उसका ठिकाना  ईल्लीन में होगा  "(अबुदाऊद :५५८ अल्लामा अल्बानी ने इस हदीस को हसन कहा है ,सहीह सोनन अबुदाऊद : १/१११).
(१५)  अगर जमाअत और पहली सफ़ में नमाज़ पढने वाला कभी देर कर दे और लोग उसके पहुँचने से पहले ही नमाज़ पढ़ लें तो उसको उनके बराबर ही सवाब देगाअबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अंहो रिवायत करते हैं कि:नबी अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया: "अगर किसी ने वज़ू किया और फिर मस्जिद गया तो यह पाया कि लोगों ने नमाज़ पढ़ ली है तो अल्लाह तआला उसको उतना ही  बदला देगा जितना नमाज़ पढने वालों को देगा दोनों के सवाब में कोई कमी नहीं होगी "(अबुदाऊद :564 अल्लामा अल्बानी ने इस हदीस को सहीह कहा है ,सहीह सोनन अबुदाऊद :१/113).
(१६) जब कोई वज़ू करके नमाज़ के लिए निकले तो जब तक न लौटे नमाज़ में शुमार किया जाएगा ,यहाँ तक कि उसका रास्ते में नमाज़ के लिए आना जाना भी लिखा जाएगा,जैसा कि अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अंहो की रिवायत है कि : नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने  फ़रमाया:"जब तुम में से कोई घर से वज़ू करके मस्जिद आता है तो जब तक घर लौट नहीं आता  नमाज़ ही  में होता है ...."(इब्ने खोजैमा : १/२२९ ,अल्लामा अल्बानी ने इस हदीस को सहीह क़ारार दिया है ,  देखिये :सहिहुत्तर्गीब  वत्तर्हीब :१/१२१).
दूसरी हदीस में फ़रमाया:"तुम में से कोई जब से वह अपने घर से निकलता है,और और पैदल मेरी मस्जिद की तरफ आता है तो एक पाँव के बदले नेकी लिखी जाती है, और दुसरे पाँव के बदले गुनाह मिटा दिया जाता है, यहाँ तक कि लौट जाए "( इब्ने हिब्बान :६२० ,नेसई :२/४२ ,अल्लामा अल्बानी ने इसे भी सहीह क़ारार दिया है देखिये : सहिहुत्तर्गीब  वत्तर्हीब :१/१२१).
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भाग: 2
नमाज़ का मस्नून तरीक़ा
(लेखक : अल्लामा शैख़ अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़)
लोगों में नमाज़ पढ़ते हुए बहुत सारी ग़लतियों को देखते हुए सउदी अरब के पूर्व मुफतिए आज़म अब्दुल अज़ीज़  बिन बाज़ की तरफ से यह  पत्र  उन तमाम लोगों के लिए है जो अल्लाह के हबीब मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तरह नमाज़ पढ़ना चाहते हैं,जैसा कि ,आप,ने  इरशाद फ़रमाया : "  लोगो ! तुम इसी तरह नमाज़ पढ़ो जैसाकि मुझे पढ़ते हुए देखते हो "(सहीह बुख़ारी).
निम्न में सुन्नत के मुताबिक़ नमाज़ का मुख़्तसर तरीक़ा दर्ज किया जा  रहा है :
(१) अच्छी तरह से वज़ू करे यहाँ तक कि वज़ू के तमाम भागों तक पानी  पहुँच जाए , इसलिए कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने  फ़रमाया :" बगैर पाकीज़गी (स्नान और वज़ू) के नमाज़ क़बूल नहीं होती है......"
(२) नमाज़ी नमाज़ का इरादा करके क़िबला(काबा शरीफ़) की तरफ़ अपना रुख़ करले फ़र्ज़ नमाज़ हो चाहे नफ़िल ज़ुबान से नियत का कहना ज़रूरी नहीं है इसलिए कि यह सुन्नत से साबित नहीं है ,और न ही अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के किसी सहाबी से मर्वी है जिन्हों ने आप के पीछे न जाने कितनी नमाज़ों को अदा किया है. इसी तरह यह भी सुन्नत है कि इमाम या अकेले नमाज़ पढ़ने वाला अपने आगे सुतरा रख ले .
(३) तक्बीरे तहरीमा("अल्लाहु अकबर" कह कर ) अपनी नमाज़ शुरू करे इस तरह से कि सजदा की जगह देखे और अपने दोनों हाथों को मोंढे के बराबर उठाए कान की लौ को छूना सुन्नत से साबित नहीं है.
(४) अपने दोनों हाथों को (दाहिने हथेली को बांयें हथेली के ऊपर रख कर ) सीने (छाती )पर रखे इसलिए कि सहीह सुन्नत से यही साबित है ,जैसाकि वाएल बिन हुज्र और क़बीसा बिन हलब ताई की हदीस में मौजूद है .
(५) तक्बीरे तहरीमा के बाद यह दुआ पढ़ना ज़्यादा बेहतर और अफज़ल है " अल्लाहुम्म बाइद बैनी व बैन ख़तायाय कमा बाअदत बैनल मशरीक़े वल मग़रिबे , अल्लाहुम्म नक्क़ेनी मिन ख़तायाय कमा योनक्क़ास्सौबुल अब्यज़ो मेनद्दनसे ,  अल्लाहुम्मग्सिलनी  मिन ख़तायाय बिल्माए वस्सल्जे वल ब्रद" या यह दुआ भी पढ़ सकते हैं : "सुब्हानक अल्लाहुम्म  बे हम्देक  तबारकस्मोक  व तआला  जद्दोक  ला ईलाह ग़ैरोक" फिर सुरः फ़ातिहा(अल हम्दो लिल्लाहे रब्बिल आलमीन ......" इमाम और मुक्तदी जहरी और सिर्री तमाम नमाज़ों में पढ़े ,क्योंकि हदीस में है कि:" उस आदमी की नमाज़ ही नहीं होगी जिसने  सुरः फातिहा  नहीं पढ़ी " .
सुरःफातिहा :(अलहम्दो लिल्लाहे रब्बिल आलमीन*अर्रह्मानिर्रहीम* मालेके यौमिद्दीन* इय्याक्नाबोदो व इय्याकनस्तईन * एह्देनास्सेरातल मुस्तक़ीम * सेरातल्लज़ीनअनअम्तअलैहीम * गैरिल मग्जूबे अलैहिम   वलज्ज़ाल्लीन *      
 फिर जहरी नमाज़ों (मग़रीबइशा ,फज्र ,जूमा और ईदैन) में बुलंद  आवाज़ से "आमीन " कहेफिर क़ुरआन में से जितना हो सके  तिलावत  करे. 
(६) फिर अल्लाहु अकबर " कहते हुए रुकू करे और अपने हाथों को मोंढे या कान के बराबर उठाए और अपने सर को अपनी पीठ के बराबर करे फिर तीन बार या उस से ज़्यादा यह दुआ पढ़े "सुबहान रब्बिअल अज़ीम "  और यह दुआ पढ़ना भी सुन्नत है "सुबहानकल्लाहो  रब्बना व बे हम्देक अल्लाहुम्मग्फिर्ली" .
 (७) अपने सर को रुकू से उठाए ,अपने दोनों हाथों को फिर कान या मोंढे के बराबर ले जाए और इमाम और मुक्तदी " समेअल्लाहो लेमन हमेदः "कहे फिर उसके बाद यह दुआ पढ़े "रब्बना व लकल्हम्द हमदन कसीरन तय्येबन मोबारकन फीह " रुकू के बाद अपने दोनों हाथों को सीने पर रखना मुस्तहब है इसलिए कि वाएल बिन हुज्र और सहल बिन साद रज़ीअल्लाहो अन्होमा की रिवायत से इसका सबूत मिलता है .(रुकू इत्मीनान और सोकून से करना और रुकू के बाद ठहरना रुक्न में दाख़िल है अगर कोई रुकू के बाद बिना ठहरे सजदे में चला जाए तो यह हदीस के ख़िलाफ़ है और उसकी नमाज़ बातिल होने का ख़तरा है.)
(८) फिर "अल्लाहु अकबर " कहते हुए अपने दोनों घुटने को हाथ से पहले ज़मीन पर रखते हुए सजदा करे ,दोनों हाथ और पाँव की उंगलीयों को क़िबला की तरफ़ करे ,दोनों हाथ की उंगलीयों को मिला कर रखे और सज्दा जिस्म के सात भागों पर करे वह सात भाग यह हैं :( पेशानी के साथ नाक दोनों हाथ दोनों घुटनें और पाँव की उँगलियों का अगला भाग) फिर तीन बार "सुब्हान रब्बिअल आला "  पढ़े . सज्दे में जितनी दुआ चाहे करे इसलिये कि  हदीस शरीफ़ में आता है कि :" रुकू में अल्लाह तआला की ताज़ीम बयान करो और सज्दे में ख़ूब दुआ करो क्योंकि (सज्दे में ) तुम्हारी दुआ क़बूल होने का ज़्यादा चांस है" दूसरी हदीस में है कि सज्दे की हालत में बन्दा अपने रब से ज़्यादा क़रीब होता है "(सहीह मुस्लिम )
नोट : सज्दे की हालत में एक बात की तरफ़ ध्यान देना बहुत ज़रूरी है जिस से आज बहुत सारे नमाज़ी ग़फलत बरतते हैं ,वह यह कि अपने दोंन बाज़ू को पहलू से दूर रखे और पेट को रान से और रान को पिंडली से अलग रखे और कुहनी को ज़मीन से दूर रखे , इसलिए कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि :"सज्दे में एतेदाल से काम लो और तुम में से कोई भी अपनी कुहनी को कुत्तों की तरह न फैलाए "
(९) "अल्लाहू अकबर"कहते हुए अपने सर को सज्दे से उठाए,अपने बांये पाँव को फैला कर उस पर बैठ जाए और दाहिने को ज़मीन पर गाड़ दे और दोनों हाथों को दोनों रान और घुटनों पर रखे और यह दुआ पढ़े " अल्लाहुम्मग्फिर्ली वर्र्हम्नी वर्ज़ुक्नी  व आफ़ेनी वह्देनी व अजिर्नी " सज्दे से उठने के बाद इस तरह से बैठे कि जिस्म का हर भाग अपनी असल जगह पर लौट आये जैसा कि रुकू में एतेदाल किया था ,इसलिए कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम रुकू के बाद और दोनों सज्दों के बीच में एतेदाल किया था .
(१०) दुसरा सज्दा भी पहले सज्दे की तरह ख़ूब इत्मीनान और सोकून के साथ करे .
(११) "अल्लाहू अकबर" कहते हुए सज्दा से अपने सर को उठाए और हल्का सा बैठे जैसा कि दोनों सज्दों के बीच में बैठा था इस को जलसए इस्तेराहत  कहते हैं अगर कोई इस अमल को छोड़ देता है तो सुन्नत के ख़िलाफ़ है  मगर कोई हर्ज नहीं है, जलसए इस्तेराहत में कोई ज़िक्र और दुआ नहीं है . फिर दूसरी रेकअत के लिए अपने घुटने के सहारे खड़ा हो जाए अगर इस तरह खड़ा होने में परेशानी हो तो ज़मीन पर टेक लगा कर खड़ा हो ,फिर पहली रेकअत की तरह सुरह फातिहा और दूसरी आयतों की तिलावत करे और सारी  रेकअतें इसी तरह अदा करे नमाज़ की हालत में इमाम से पहले कोई काम न करे इसलिए कि हदीस में इसकी बड़ी मनाही आई है ,इसी तरह नमाज़ के आमाल की अदाइगी  इमाम के साथ साथ करना मकरूह है बल्कि इमाम की आवाज़ और हर काम के तुरंत बाद बिना किसी देरी के करे, इसलिए कि हदीस के मुताबीक़ इमाम की इत्तेबा वाजिब और ज़रूरी है . 
(१२) अगर फज्र ,जुमा ,ईदैन की तरह दो रेकअत वाली नमाज़ हो तो दूसरी रेकअत में इस तरह बैठ जाए कि दाएं पांव को ज़मीन में गाड़ दे और बाएँ पांव को ज़मीन में फैला दे और दोनों हाथ को दोनों रान और घुटने पर रखे सवाए शहादत की ऊँगली के तमाम उँगलियों को पकडे रहे और शहादत वाली ऊँगली से इशारा करे और अगर छोटी ऊँगली और उस से पहली वाली ऊँगली को पकड़े रहे और अंगूठे को बीच वाली ऊँगली से चौकोर हल्क़ा (दायेराबनाले और शहादत वाली ऊँगली से इशारा करे तो भी बेहतर है इसलिए कि दोनों तरीका हदीस से साबित है फिर तशह्हुद्द पढ़े.
तशह्हुद्द: " अत्तहीयातो लिल्लाहे वस्सलवातो वत्तैय्येबातो अस्सलामो अलैक अय्योहन्नबियो वरहमतुल्लाहे व बरकातोहू अस्सलामो अलैना व अला एबादिल्लाहिस्सालेहीन ,अशहदो अन्लाईलाह इल्लल्लाह  व अशहदो अन्न मोहम्मदन अब्दोहू व रसूलोहू " 
फिर दरूद शरीफ़ पढ़े.  
दरूद: "अल्लाहुम्म सल्ले अला मोहम्मदिन   व अला आले मोहम्मदिन कमा सल्लैत अला इब्राहीम. व अला आले इब्राहीम. इन्नक हमीदुम्मजीद  "और फिर यह दुआ पढ़े "अल्लाहुम्म इन्नी अऊज़ोबेक मिन  अज़ाबे जहन्नम व मिन  अज़ाबिल  क़बरे व मिन फितनतिल  क़बरे व मिन फितनतिल महया वल ममाते व मिन फितनतिल मसीहिद्दज्जाल " उसके बाद  जो चाहे अल्लाह से मांग सकता है,फिर दाहीने और बांयें जानिब सलाम फेरे "अस्सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाह ".
(१३) अगर तीन या चार रेकअत वाली नमाज़ हो जैसे मगरिब अस्र, ज़ोहर और इशा की नमाज़  तो तशह्हुद  पढ़ कर खड़ा हो जाए फिर अपने हाथ को पहले की तरह सीने पर रखे और सिर्फ़ सुरह फ़ातिहा पढ़े अगर तीसरी और चौथी रेकअत में भी कभी कभी सुरह फ़ातिहा के साथ किसी आयत की तिलावत करता है तो कोई हर्ज नहीं इसलिये कि इसका भी सबूत नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से मिलता है ,फिर मगरिब ज़ोहर ,अस्र और इशा में तश ह्हुद पढ़े फिर वही सब काम करे जिस तरह दो रेक अत वाली नमाज़ में किया था ,फिर सलाम फेरे . 
(१४) सलाम के बाद की दुआएं :(१) तीन बार "अस्तग्फेरुल्लाह" (२) "अल्लाहुम्म अन्त्स्सलामो व मिन्क्स्सलामो तबारक्त रब्बना या ज़ल्जलाले वल एकराम" (३) "अल्लाहुम्म ला मानेअ लेमा आतैत  व ला मोतीय लेमा मनअत ला यनफ़ओ ज़ल्जद्दे मिन्कल जद्दो " (४) ३३ बार "सुबहानअल्लाह" ३३ बार "अलहम्दो लिल्लाह " और ३३ बार "अल्लाहू  अकबर " आखरी बार "ला इलाह इल्लल्लाहो वह्दहू ला शरीक लहू ,लहुल्मुलको व लहुल्हम्दो व होव अला कुल्ले शैइन क़दीर " पढ़ कर सौ पुरी करे . 
(५) इसके बाद  आयतुल कुर्सी :" अल्लाहो ला इलाह इल्लाहोवल हैय्युल क़य्युम. ला ता खोज़ोहू सेनतुन्व व ला नौम. लहू मा फिस्समावाते व मा फ़िल अर्ज़ . मन ज़ल्लज़ी यश्फओ इन्दहू इल्ला बे इज़्नेही. यालमो मा बैन ऐदीहीम वमा खल्फहुम. व ला योहीतून बे शैइन्मिन इल्मेही  इल्ला बेमा शाअ . वसेअ  कुर्सिय्योहूस्समावाते वल अर्ज़ .व ला यऊदोहू  हिफ्ज़ोहोमा  व होवल अलिय्युल अज़ीम "
(६)  फिर सुरह इखलास पढ़े :( क़ुल होवल्लाहू अहद.अल्लाहुस्समद . लम यलिद व लम यूलद . व लम यकुंलहू कोफ़ोवन अहद ).
(७) फिर सुरह फ़लक पढ़े :( क़ुल अउज़बे  रब्बिल फ़लक़   मिन शर्रे मा ख़लक़.व मिन शर्रे ग़ासेकिन एज़ा वक़ब.व मिन शर्रिन्नफ्फासाते फ़िल ओक़द .व मिन शर्रे हासेदिन एज़ा हसद ) 
(८) फिर सुरह नास पढ़े:(क़ुल अउज़बे रब्बिन्नास.मलेकिन्नास.एलाहिन्नास .मिन शर्रिल वस्वासिल ख़न्नास .अल्लज़ी यो वस वेसो फ़ी सोदूरिन्नास . मेनल जिन्नते वन्नास)
नोट:तीनों क़ुल को मगरिब और फज्र में तीन तीन बार पढ़ना मुस्तहब है इसलिए कि यह अल्लाह के रसूल की सुन्नत से साबित है .   
(९)  इसी तरह फज्र और मगरिब की नमाज़ के बाद १० बार यह दुआ पढ़ना भी सुन्नत है : "ला इलाह इल्लल्लाहो वह्दहू ला शरीक लहू ,लहुल्मुलको व लहुल्हम्दो व होव अला कुल्ले शैइन क़दीर " इसलिए कि यह दुआ भी सहीह सुन्नत से साबित है .
अगर इमाम हो तो तीन बार अस्तग्फेरुल्लाह कहने के बाद मुक्तदियों की तरफ़ पलट जाए .
यहाँ यह बता दें कि यह सारी  दुआएं और अज़कार सुन्नत हैं वाजिब नहीं . जो लोग सलाम फेरने के बाद फ़ौरन सुन्नतों के लिए खड़े हो जाते हैं वह लोग जिक्रो अज़कार छोड़ कर खिलाफे सुन्नत काम करते हैं ,अगर इंसान के पास समय हो तो २४ घंटों में सेअल्लाह के लिए थोड़ा सा समय निकाल कर सवाब का भागीदार बनना चाहिए .
तमाम मुसलमान मर्द और औरतों का कर्तव्य है कि जब घर में हों तो १२ रेकअत सुन्नते मोवक्केदा की हिफाज़त करे:दो रेकअत फज्र से पहले,४ ज़ोहर से पहले २ ज़ोहर के बाद दो मगरिब के बाद ,और दो इशा के बाद .
उम्मे हबीबा रज़ीअल्लाहो अन्हा से सहीह मुस्लिम में मर्वी है कि: अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:"जो दिन और रात में फ़र्ज़ नमाज़ के अलावा १२ रेकअत (सुन्नते मोवक्केदा) पढ़ता है तो उसके लिए अल्लाह तआला  जन्नत में घर बनाएगा .
हालते सफ़र में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम फज्र की सुन्नत और वित्र के अलावा तमाम सुन्नतों को छोड़ देते थे और हमारे लिए आपकी ज़िन्दगी में उसवा और नमूना है कुर आन में अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है :
{لقد كان لكم في رسول الله أسوة حسنة} 
अर्थात :( रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के जीवन में तुम्हारे लिए उसवा और नमूना है) और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का फ़रमान है :" जैसे मुझे नमाज़ पढ़ते हुए देखा है वैसे ही नमाज़ पढ़ो" .
नमाज़ की शर्तें
नमाज़ की शर्तें नौ हैं : (१) मुसलमान होना .(२) अक़लमंद होना . (३) तमीज़ करने वाला हो .(४) बा वज़ू होना .(५) गन्दगी को दूर करना .(६) जिस्म को ढांपना .(७) वक़्त का दाख़िल होना. (८) क़िबला की तरफ रूख़ होना .(९) और नमाज़ की नियत करना.
नमाज़ के अरकान
नमाज़ के अरकान चौदह हैं (नोट :रुक्न  का मतलब यह है कि जिसको जान बुझ कर  या गलती से भी छोड़ देने से नमाज़ बातिल हो जायेगी ) 
(१) खड़े होने की ताक़त हो तो नमाज़ में क़याम करना .(२) तक्बीरे तहरीमा कहना.(३) सुरह फातिहा पढ़ना. (४) रूकू करना.(५) रूकू से उठना. (६) जिस्म के सात भागों पर सजदा करना .(७) एतेदाल करना.(८) दोनों सज्दे के बीच ठहरना .(९) हर रुक्न को इत्मीनान से अदा करना .(१०) नमाज़ तरतीब से पढ़ना .(११) आखरी तश ह्हुद पढ़ना .(१२) तश ह्हूद  के लिए बैठना .(१३) अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर दरूद भेजना .(१४) दोनों सलाम. 
नमाज़ के वाजिबात
नमाज़ के वाजिबात आठ हैं :(यानी जिसको जान बूझ कर छोड़ देने से नमाज़ बातिल हो जायेगी और ग़लति से छोड़ने पर सज्दा सहौ वाजिब होगा :(१) तक्बीरे तहरीमा के अलावा सारी तक्बीरें . (२) रुकू में "सुबहान रब्बीयल अज़ीम " कहना .(३) इमाम और मुक्तदी दोनों के लिए "समे अल्लाहु लेमन हमेदह" कहना .(४) तमाम नमाज़ी का "रब्बना व लकल हमद "कहना.(५) सज्दे में "सुबहान रब्बीयल आला " कहना .(६) दोनों सजदों के बीच में "रब्बिग फ़िरली " कहना .(७) तशह्हुद  अव्वल  पढ़ना .(८) पहले तशह्हुद   के लिए बैठना .  

कुछ फ़र्ज़ नमाज़ों को जमाअत के साथ अदा करने की फ़ज़ीलत 
इशा और फज्र  की नमाज़ को जमाअत के साथ अदा करने की फ़ज़ीलत :
उस्मान बिन अफ्फ़ान रज़ीअल्लाहो अंहो की रिवायत है कि:मैं ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को फ़रमाते हुए सुना की:" जिस ने इशा की नमाज़ जमा अत के साथ अदा की उसने गोया आधी रात  तक क़ेयाम किया और जिस ने सुबह (फज्र) की नमाज़ जमा अत के साथ अदा की उसने गोया पूरी  रात   क़ेयाम किया"(मुस्लिम,अबूदाऊद :५५५).   
फ़ज्र और अस्र की नमाज़ की मुहाफज़त का सवाब:
(१) अबू मूसा अशअरी रज़ीअल्लाहो अंहो की रिवायत है कि  अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया :" जिस शख्स ने दो ठंडी नमाज़ें (फ़ज्र और अस्र ) अदा कर लीं वह जन्नत में दाखिल होगा "(सहीह बुख़ारी:५७४).
(२) ओमारा बिन रोवैबा रज़ीअल्लाहो अंहो रिवायत करते हैं कि:मैं ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को फ़रमाते हुए सुना : "वह शख्स जहन्नम में कभी दाख़िल नहीं होगा जिस ने सूरज के निकलने से पहले  की नमाज़(फ़ज्र) और सूरज के डूबने से पहले की नमाज़(अस्र) पढ़ी "(सहीह मुस्लिम:६३४).
बारह रेकअत सुन्नत की फ़ज़ीलत :
उम्मे हबीबा रज़ीअल्लाहो अन्हा की रिवायत है कि:अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया:"जिसने दिन और रात में(फ़र्ज़ के अलावा ) बारह रेकअतों की हिफाज़त की अल्लाह तआला उसके लिए जन्नत में घर बनाएगा "(सहीह मुस्लिम :७२८).
बारह रेकअत से मुराद : ज़ोहर से पहले चार रेकअतज़ोहर के बाद दो रेकअतमगरिब के बाद दो रेकअतइशा के बाद दो रेकअत,और फ़ज्र की फ़र्ज़ से पहले दो रेकअत .
फ़ज्र की फ़र्ज़ नमाज़ से पहले दो रेकअत सुन्नत की फ़ज़ीलत :
आयेशा रज़ीअल्लाहो अन्हा ब्यान फ़रमाती हैं कि:अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया :" फ़ज्र की दो रेकअत सुन्नत दुनिया और जो भी दुनिया में मौजूद है उस से बेहतर है "(सहीह मुस्लिम:७२५).
ज़ोहर से पहले और बाद की सुन्नत की फ़ज़ीलत :
उम्मे हबीबा रज़ीअल्लाहो अन्हा से रिवायत है कि: मैं ने  अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को फ़रमाते हुए सुना कि:"जो आदमी ज़ोहर से पहले चार और ज़ोहर के बाद चार रेकअत हमेशा पढ़ेगा उस पर अल्लाह तआला जहन्नम की आग हराम कर देगा " (सहीह तरगीब:५८१).
अस्र से पहले  की सुन्नत की फ़ज़ीलत :
अब्दुल्लाह बिन ऊमर रज़ीअल्लाहो अन्होमा ब्यान फ़रमाते हैं कि: अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया :"अल्लाह की रहमत हो उस बन्दे पर जो अस्र से पहले चार रेकअतें पढ़े " (सहीह तरगीब:५८४).
क़ेयामुल्ल्लैल की फ़ज़ीलत
(१) अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अंहो की रिवायत है कि:अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया :" रमजान के बाद सब से अफ़ज़ल रोज़ा मुहर्रम का है और फ़र्ज़ नमाज़ों के बाद सब से अफ़ज़ल नमाज़ रात की नमाज़ें हैं " तिरमिज़ी सहीह तरगीब:६१०)
(२) अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ीअल्लाहो अंहो रिवायत करते हैं कि: अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया :"ऐ लोगो! सलाम फैलाओ खाना  खिलाओ ,सिला रहमी करो (अर्थात:रिश्ते दारों के साथ रिश्ता दारी निभाओ और उनके साथ अच्छा बर्ताव करो) और रात में जब लोग सो जाएं तो नमाज़ पढ़ो,अल्लाह की जन्नत में सलामती के साथ दाख़िल हो जाओगे". 

चाश्त (इशराक़) की नमाज़ की फ़ज़ीलत
(१) अबू ज़र गेफ़ारी रज़ीअल्लाहो अंहो की रिवायत है कि:अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया:"तुम में से हर शख्स के हर जोड़ पर सुबह एक सदक़ा लाजिम हो जाता है,हर समय "सुबहान  अल्लाह " कहना सदक़ा है ,नेकी का हुक्म देना सदक़ा है , और बुराई से मना करना भी सदक़ा है और वह दो रेकअतें उन तमाम कामों के लिए काफ़ी हैं जिन्हें आदमी चाश्त के वक़्त अदा करता है "(सहीह मुस्लिम :७२०)
(२) उक़बा बिन आमिर रज़ीअल्लाहो अंहो की रिवायत हैं कि: अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया :" अल्लाह तआला फ़रमाता है : (ऐ इब्ने आदम ! तो दिन के शुरू हिस्से में चार रेक अत मेरे लिए पढ़ा कर मैं दिन के आखरी हिस्से तक तेरे लिए काफ़ी हूंगा) " (सहीह तरगीब :६६६) 
अल्लाह तआला तमाम मुसलमानों की  तकलीफों और परेशानियों को दूर फ़रमाए,सुन्नत के मुताबिक़ तमाम नमाज़ें अदा करने और नमाज़ की पाबन्दी करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए .(आमीन )


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