शनिवार, 9 फ़रवरी 2013

नजाशी के दरबार में

  फिर नजाशी नें उन सब को अपने दरबार में बुलाया ,जब जाफर बिन अबी तालिब और उनके साथी उसके दरबार में पहुंचे तो इनलोगों ने उनको सलाम किया सजदा नहीं किया ,नजाशी ने पूछा कि : तुमलोगों ने औरों की तरह सजदा करके सलाम क्यों नहीं किया ? जाफर ने कहा कि : सलाम के बारे हमारे रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने हमें बताया है कि  यह तहिय्या (सलाम) जन्नत  वालों का है ,और हमें इसी का हुक्म दिया गया है. इसलिए हम ने आप को वही सलाम  पेश किया है जो हम एक दुसरे को करते हैं
नजाशी ने पूछा :यह कौन सा धर्म है जिसकी वजह से तुम लोग अपनी क़ौम  से जुदा हो गए ? हमारे धर्म में भी दाखिल नहीं हुए और न ही किसी अन्य धर्म को अपनाया ?   मुसलमानों की तरफ से जाफर बिन अबू तालिब रज़ी अल्लाहो अंहो ने उसके सवालों का जवाब दिया और कहा : हे राजा हम लोग अज्ञानता और जाहिलियत के दौर से गुज़र रहे थे ,अपने हाथों से बनाई हुई मूर्तियों की पूजा करते थे ,मुर्दार  खाते थे ,अनैतिकता का शिकार थे, तथा अश्लील कार्य करते थे ,  रिश्तों को तोड़ते थे ,पड़ोसियों का ख़याल नहीं रखते थे,और हम में से जो ताक़तवर था वोह गरीबों से  छीन लेता था , हमारी हालत यही थी यहाँ तक कि  अल्लाह तआला  ने हम ही में से एक रसूल (दूत) भेजा ,जिसके वंश को और उसकी सच्चाई , अमानत तथा पाकदामनी को हम अच्छी तरह से जानते थे .
उन्होंने हमें एक अल्लाह की पूजा करने को कहा, और हमारे  और हमारे पुर्वज के अपने हाथों से बनाए हुए  पत्थरों की मूर्तियों की पूजा से मना किया ,उन्होंने हमें सच्चाई ,अमानत की अदाएगी ,रिश्तेदारी निभाने और पड़ोसियों का ख्याल रखने का हुक्म दिया  तथा हराम कामों और और किसी की ह्त्या करने तथा आतंक को छोड़ने  का हुक्म दिया।
इसी तरह उन्हों ने बदकारी ,झूट बोलने,अनाथ  का माल खाने ,तथा पवित्र महिलाओं पर झुटा इलज़ाम लगाने से मना किया।
और उन्होंने  हमें नमाज़,रोज़ा और ज़कात का हुक्म दिया - यहाँ पर इस्लाम के अरकान (स्तम्भ) को गिनाया- अतः हम आप पर ईमान लाये और  आप की आज्ञा का पालन किया तो हमारे लोग हमारे दुश्मन हो गए और हमें अपने पिछले धर्म में वापस लाने के लिए बहुत सताया और हमारे ऊपर ज़ुल्म और अन्याय की हद कर दी यहाँ तक की हम लोग अपना मुल्क और घर बार छोड़ कर आप के यहाँ आ गये और आपके देश में रहने लगे।
नजाशी ने जब यह बातें सुनी तो जाफर रज़ी अल्लाहो अन्हो  से कुरआन मजीद में से कुछ पढ़ने  के लिए कहा तो उन्होंने सुरह मरयम की आरंभिक आयातों की तिलावत शुरू की जिसे सुन कर नजाशी रोने लगा यहाँ तक कि  आंसुओं से उसकी दाढ़ी भीग गई ,यही हाल उसके  दरबारियों का भी हुआ ,फिर नजाशी ने कहा कि:अल्लाह की क़सम यह नूर (प्रकाश )तो उसी चिराग़  से निकला है जिस से मुसा अलैहिस्सलाम का नूर निकला था .  
फिर नजाशी ने कुरैशी दूतों को कहा कि  तुम लोग वापस चले जाओ यह लोग यही रहेंगे ,हम इन्हें तुम्हें नहीं सौपेंगे . यह लोग दरबार से निकल कर चले  गए।
फिर दुसरे दिन अम्र बिन आस ने एक और चाल चली और नजाशी से कहा कि:यह मुसलमान लोग ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में कुछ गलत कहते हैं ,नजाशी ने मुसलामानों को बुला कर इस बारे में पुछा तो जाफर रज़ी अल्लाहो अन्हो  ने कहा:हम ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में वही कहते हैं जो हमारे नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने हमें बताया है कि:वोह अल्लाह के बन्दे और उसके रसूल थे ,उसका कलमा थे जिसको मरयम   के अन्दर डाल  दिया था  और उसकी जानिब से एक रूह थे , अज़रा  बतुल के बेटे थे .
यह सुन कर नजाशी ने एक लकड़ी अपने हाथ में ली और कहा: अल्लाह की क़सम मरयम के बेटे इस लकड़ी के बराबर भी इस बात से ज्यादा नहीं थे जो तुम ने कही .फिर उसने मुसलमानों को कहा कि  तुम लोग हमारे देश में अमन चैन के साथ जहां चाहो रहो ,फिर उसने कुरैशियों का उपहार वापस करवाया और उनको अपने मुल्क से निकल जाने के लिए कहा , अतः वोह लोग शर्मसार हो कर वहाँ से वापस आ गये। 

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

कुरैश के लोग नजाशी को मोहाजिरों के खिलाफ उभारते हैं



जब कुरैश ने देखा कि  मुसलमान उन से बच कर चले गए और हबशा में जा कर अमन और इत्मीनान के साथ रह रहे हैं तो इन्होंने नजाशी को उनके खिलाफ भड़काने का प्रयास  किया और अपने दो आदमी अम्र बिन आस और अब्दुल्लाह बिन रबिआ को जो उस समय तक ईमान नहीं लाये थे बहुत सारा उपहार देकर हबशा भेजा और उनको नजाशी को रिझाने के सारे गुर बताये ,अतः यह लोग एक सोची समझी प्लानिंग के साथ हबशा गए और वहाँ पहुँच कर प्रथम एक एक दरबारी को उपहार दिया फिर उनके बाद नजाशी के दरबार में गए और उसको भी मूल्यवान उपहार दिया और कहा: माननीय राजा ! हमारे कुछ बेवकूफ और नादान नौजवान आप के देश में पनाह लिए हुए हैं जिन्होंने अपने पूर्वजों के धर्म को छोड़ कर एक नया धर्म ईजाद  कर लिया है ,और इनलोगों ने आप के धर्म को भी  नहीं अपनाया है। हमको इनके बाप,दादा और चाचाओं ने भेजा है ताकि आप इन्हें अपने मुल्क में न रहने दें और हमारे साथ इनको वापस भेज दें. इतना सुन कर नजाशी गुस्सा हो गया और कहा कि : अल्लाह की सौगंध मैं इन्हें हरगिज़ वापस नहीं करूंगा जब तक इनकी बातें न सुन लूँ क्योंकि इन्होंने हमारे यहाँ पनाह ली है और दूसरों के मुकाबले में हमारे यहाँ रहने को तरजीह दी है,अगर तुम्हारा कहना सच हुआ तो हम उनको तुम्हारे हवाले कर देंगे वरना उन्हें यहीं हिफाज़त के साथ रहने दूंगा .

हबशा की तरफ दूसरी बार हिजरत



कुरैश वालों से जो सुस्ती और नादानी हुई थी जिस की वजह से वोह मुसलमानों के साथ सजदे में चले गए थे  और मुसलमान उन से बच  कर हबशा चले गए थे और वहाँ पर वोह हंसी ख़ुशी तथा आज़ादी के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहे थेउस से उनका ग़ुस्सा  सातवें आसमान पर था, इसलिए इन लोगों ने मुसलमानों को और ज़्यादा सख्ती के साथ सताना और उन्हें तकलीफें देना आरंभ कर दिया  ,इन हालात को देखते हुए अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने मुसलमानों को दोबारा  हबशा की तरफ हिजरत  करने की इजाज़त देदी,अतः18 औरतें तथा 82 या 83 मर्द हिजरत के लिए निकले  ,और यह सब लोग काफिरों से बचते हुए हबशा पहुँच गए .