मंगलवार, 3 अगस्त 2010

व्यावहारिक जीवन की शुरुआत

नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अनाथ पैदा हुए थे एवम् आप को अपने पिता से वरासत में केवल पाँच ऊँट , बकरियों का एक रेवड़ तथा एक हबशी लौंडी मिली थी जिस का नाम बर्का तथा उपनाम उम्मे अयमन था जिन्हों ने आप की परवरिश में अहम भूमिका अदा की थी ,फिर आप हलीमा सादिया के पास बानू साद पहुँच गये , जब चलने फिरने लगे तथा छोटे मोटे काम करने लगे तो अपने दूध शरीक भाई के साथ बकरियाँ चराने लगे और जब अपनी माता के पास मक्का वापस आए , और कुछ बड़े हुए तो आजीविका कमाने के लिए चन्द पैसों के बदले मक्का वालों की बकरियाँ चराने लगे , ताकि अपने चाचा अबू तालिब की मदद कर सकें , अबू हुरैरा रज़ियल्लाहो अनहो का बयान है कि आप ने फ़रमाया : आल्लाह तआला ने जब भी कोई नबी भेजा तो उसने बकरियाँ चराई . सहाबा कराम ने पूछा : और आप ? तो फ़रमाया : हाँ मैं भी चन्द सिक्कों के बदले मक्का वालों की बकरियाँ चराया करता था
फिर जब जवानी को पहुँच गाए तो व्यापार करना शुरू किया , आप अपना व्यापार अबू साएब के बेटे साएब के साथ करते जो बेहतरीन पार्टनर थे , आप लेन देन मे अमानत दारी , सत्यता एवम् पाकीज़गी का उदाहरण थे, आप समस्त सार्वजनिक जीवन में इन्हीं सिद्धांतों पर चलते रहे यहाँ तक कि आप को अमीन कहा जाने लगा

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