मंगलवार, 10 अगस्त 2010

काबा का नवीकरण तथा मध्यस्थता की कहानी

जब आप की आयु पैंतीस वर्ष की थी उस समय एक बड़ा सैलाब आया था जिस से काबा की दीवार मे दरार पड़ गयी तथा इस से पश्चात आग लगने से भी उस की दीवारों को नुक़सान पहुँचा था जिस के उस की दीवारें कमज़ोर हो गयीं थी अतः कुरैश ने उस के नव निर्माण का निर्णय लिया अथवा यह तय किया की इस के निर्माण में शुद्ध , हलाल एवं पाक कमाई के धन का प्रयोग करेंगे एवं बदकारी , चोरी , ब्याज और लूट खसूट के धन का प्रयोग नहीं किया जाएगा
जब काबा की दीवारों को तोड़ने का समय आया तो सब अल्लाह की सजा से डरने लगे कोई भी उसकी दिवार को तोड़ने के लिए तैयार नही था , तो उन से मोगिरा के पुत्र वलीद ने कहा कि अल्लाह निर्माणकारों का विनाश नहीं करता ,फिर स्वयं आगे बढ़ा तथा दीवारों को तोड़ने लगा ,फिर सब ने हिम्मत जुटा कर तोड़ने में उस का साथ दिया, फिर जब यह लोग इब्राहीम अलैहिस्सलाम कि डाली हुई बुन्याद तक पहुंचे तो वहाँ से निर्माण कार्य आरंभ किया तथा निर्माण के लिए हर कबीला को एक भाग दे दिया गया. इस निर्माण कार्य में बड़े बड़े लोगों ने भाग लिया ,वोह लोग खुद अपने कन्धों पे पत्थर ढोते , अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम एवं आप के चाचा अब्बास भी उन लोगों के संग पत्थर ढोते . जिस कारीगर ने काबा का निर्माण किया उसका नाम बाकूम रूमी था
इस बीच ऐसा हुआ कि हलाल(वैध) धन कम पड़ जाने से वोह लोग इब्राहीम अलैहिस्सलाम की बुन्यादों के बराबर दिवार खड़ी न कर सके , अतः उत्तर सिम्त से छः गज निकाल दिया और उस पर एक छोटी दिवार बना दी ताकि पहचान लिया जाए कि दिवार के अन्दर का भाग काबा में दाखिल है इस खाली भाग को हिज्र तथा हतीम कहा जाता है . और दरवाज़ा ज़मीन से उंचा कर दिया ताकि काबा में वही आदमी दाखिल हो सके जिस को इस कि इजाज़त दी जाए
जब वोह लोग हजरे अस्वद (काला पत्थर) तक पहुंचे तो हर सरदार कि ख्वाहिश थी कि हजरे अस्वद को उस कि जगह रखने का महत्वपूर्ण कार्य उसके कर कमलों द्वारा संपन्न हो अतः इस बात को लेकर उनमें विवाद तथा झगडा पैदा हो गया और चार पांच दिनों तक काम ठप पड़ गया
करीब था कि खुनी जंग छिड जाए लेकिन खालिद बिन वलीद का चाचा मोगिरा के पुत्र अबू ओमैया मख्ज़ुमी ने जो कुरैश में सब से अधिक आयु का था नेहायत ही बुधीमानी से इस का समाधान निकाल लिया उस ने यह प्रस्ताव रखा कि इस समस्या के समाधान के लिए उस व्यक्ति को अपना न्यायाधीश स्वीकार करेंगे जो सब से पहले बनी शैबा नामी दरवाज़ा से मस्जिद में प्रवेश करेगा सब ने उस कि इस राय को स्वीकार कर लिया तथा इसी पर सहमत हो गए, अल्लाह का करना ऐसा हुआ कि सब से पहले नबी कारीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने उस दरवाज़ा से प्रवेश किया . जब लोगों ने आप को प्रवेश करते देखा तो कहने लगे यह तो "अमीन " आ गए हम इनके फैसले से संतुस्ट हैं यह मुहम्मद हैं . फिर आप ने एक चादर मंगाई तथा हजरे अस्वद को उसके बीच में रख दिया फिर सब को हुक्म दिया कि सब कपडे का एक एक किनारा पकड़ ले और उसे उठाये ,फिर सब ने मिल कर उसे उठाया और जब हजरे अस्वद के स्थान पर पहुंचे तो आप ने उसे अपने हाथ से उसकी पहली जगह पर रख दिया यह एक ऐसा उपयुक्त एवं न्यायपूर्ण समाधान था जिसे सब ने खुशदिली से आदर के साथ स्वीकार किया

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