मंगलवार, 22 जून 2010

हलीमा सादिया के घर में

उस समय अरब में रवाज था कि आस पास के देहात की रहने वाली औरतें शहरों में जाकर दूध पीते बच्चों को लाया करतीं तथा स्तनपान (दूध पिलाने) के बदले में उनको अच्छा ख़ासा मुआवज़ा मिल जाता, शहर वाले भी अपने बच्चों को गांव देहातों में भेज दिया करते ताकि उनको शहरी बीमारयो से बचाएँ ताकि उनका शरीर मज़बूत हो जाए एवम् बचपन में ही उनको शुद्ध अरबी भाषा का ज्ञान हो जाए
अतः क़बीला हवाज़ीन के बनूसाद की हलीमा सादिया नामी औरत अपने पति अबू कब्शा हारिस पुत्र अब्दुल उज़्ज़ा एवम् क़बीले की दूसरी औरतों के संग बच्चे की तलाश में मक्का आई , आप को गोद लेने की कहानी का वर्णन खुद हलीमा करती है , कहती है : मै अपनी एक गध्धी पर सवार होकर जिसका रंग लाली मिली हुई उजला था दूसरी औरतों तथा अपने पति हारिस पुत्र अब्दुल उज़्ज़ा के साथ निकली मेरी सवारी के टाँग ( कमज़ोरी तथा दुबला होने के कारण ) आपस में टकरा कर ज़ख़्मी हो गये थे . मेरे संग एक बूढ़ी उंटनी भी थी जो अल्लाह की सौगंध एक क़तरा भी दूध नहीं देती थी और वो सुखाड़ का साल था लोग भूक प्यास से परिशान थे और मेरे साथ मेरा एक बेटा था ,अल्लाह की सौगंध ! वो रात भर नहीं सोता था, और मेरे पास कोई ऐसी चीज़ नहीं थी जिस से मै उसे बहलाती , हम तो केवल बारिश की प्रतीक्षा कर रहे थे हमारे पास कुछ बकरियाँ थी जिन से दूध की आस लगाए हुए थे , जब हम मक्का पहुँचे तो हम में से सब ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलएहे वसल्लम को देखा लेकिन उन्हें लेना पसंद नहीं किया , हम सब कहते थे : ये तो अनाथ है , दूध पिलाने वाली औरत का ख्याल तो उसका पिता करता है उसकी माता या उसके चाचा या उसके दादा हमें क्या देंगे ? मेरी समस्त सहेलियों को दूध पीने वाले बच्चे मिल गये . मुझे रसुलुल्लाह ( सल्लल्लाहो अलएहे वसल्लम) के सवाए कोई अन्य नहीं मिला मै उनके पास वापस गयी और उन्हें ले लिया , अल्लाह की क़सम मैने उनको इस लिए लिया कि मुझ को उनके अलावा कोई दूसरा बच्चा न मिला , मैने अपने पति से कहा : अल्लाह कि क़सम मै बनू अब्दुल मुत्तलिब के इस अनाथ बालक को अवश्य लूँगी आशा है कि ईश्वर् हम सब को इस से लाभ पहुँचाएगा मै अपनी सहेलियों के साथ बिना बच्चा लिए वापस नहीं जाऊंगी , उन्होंने कहा तुम्हारी राय उपयुक्त है , हलीमा कहती है : मै उसे लेकर अपने खेमे (शिविर ) में आ गयी , अल्लाह कि क़सम जैसे ही मैने अपने तंबू में परवेश किया मेरे दोनों स्तन दूध से भर गये यहाँ तक कि मैने उनको  (अर्थात अल्लाह के रसूल) (सल्लल्लाहो अलएहे वसल्लम) और उनके दूध शरीक भाई को पेट भर कर दूध पिलाया , और उनके पिता उंटनी के समीप गये तो देखा कि उस का थन दूध से भरा हुआ है , उन्हों ने उसे दूहा , मुझे पेट भर कर पिलाया तथा खुद भी पिया उन्होंने कहा : ऐ हलीमा अल्लाह कि क़सम ! मुबारक जान मिली है . अल्लाह ने उसके कारण हमें वो सब कुछ दिया है जिसकी हम आशा नहीं करते थे . हलीमा कहती है : हम उस रात चैन कि नींद सोए . पहले तो हम अपने बच्चे के साथ रात को सो नहीं पाते थे. फिर हम लोग सुबह के समय अपने ईलाक़े कि तरफ वापस चल पड़े मै अपनी    सफेद गधि पर सवार हुई और आप को अपने साथ सवार कर लिया , उस अल्लाह कि क़सम जिस के हाथ में हलीमा कि प्राण है ! मै सारी औरतों से आगे बढ़ गयी वो कहने लगीं : हलीमा तनिक हमारा ख्याल करो , क्या यह वही गधि नहीं है जिस पर तुम सवार होकर अपने घर से चलीं थीं ? मैने कहा : हाँ , उन्होंने कहा : जब हम चले थे तो इस के घुटने ज़ख़्मी हो गए थे , अब ये बदलाव कहाँ से आ गया ? मै ने कहा : अल्लाह कि क़सम मैने इस पर एक मुबारक लड़के को अपने साथ बीठाया हुआ है हलीमा कहती है   : जब हम वहाँ से निकले तो अल्लाह हर दिन हमारे लिए खैर तथा भलाई में वृद्धि करने लगा , और जब हम अपने गांव वापस आए तो पूरा ईलाक़ा सूखा ग्रस्त था लोगों के चरवाहे बकरियाँ ले कर सुबह को जाते तथा संध्या को वापस आते किंतु उनकी बकरियाँ वैसी ही भूकि रहतीं , लेकिन मेरी बकरियाँ पेट भर कर दूध से भरी हुई वापस आतीं हम उन्हें दूहते और पीते,हलीमा कहती है : आप बड़ी तेज़ी से परवरिश पा रहे थे, जब आपने दो वर्ष पूरे कर लिए तो मै और मेरा पति उनको लेकर मक्का आए , हम आपस में कहते थे कि अल्लाह कि क़सम हम इस बच्चे को अपने आप से कभी अलग नहीं करेंगे , अतः जब हम आप की माता के पास आए तो उनसे कहा : अल्लाह की क़सम ! हम ने कभी इस से ज़्यादा बरकत वाला बच्चा नहीं देखा , हमें इस के प्रति मक्का की वबाओं तथा बीमारियों से डर लगता है इस लिए तुम आज्ञा दो कि हम इसे दोबारा अपने संग ले जाएँ , हम बराबर ज़ोर देते रहे यहाँ तक कि उन्होंने आज्ञा देदी और हम उनको लेकर वापस चले आए, फिर चार साल पूरा होने से पहले ही हम उनको उनकी माता के पास छोड़ आए " यहाँ यह बता दें कि हलीमा के चार बच्चे थे जिनके नाम है :अब्दुल्लाह ,हुज़ाफा ,अनिसा तथा शएमा , अतः ये चारों आप के रेज़ाई अर्थात दूध शरीक भाई हुए

2 टिप्‍पणियां: