शनिवार, 1 मई 2010

काबा का निर्माण और इब्राहीम की प्रार्थना

अगली बार जब इब्राहीम अलैहिस्सलाम मक्का आए तो अपने पुत्र इस्माईल अलैहिस्सलाम से कहा कि अल्लाह ने मुझे हुक्म दिया है कि इस जगह एक घर बनाऊँ , इस्माईल अलैहिस्सलाम ने कहा कि आप के रब ने जो हुक्म दिया है उसे कर डालिए फिर दोनों ने मिल कर अल्लाह के घर खाना काबा का निर्माण किया इस्माईल अलैहिस्सलाम पत्थर ढो कर लाते और इब्राहीम अलैहिस्सलाम उन्हें जोड़ते , जब इमारत उँची हो गई तो इस्माईल अलैहिस्सलाम ने एक पत्थर ला कर उन के पैरॉ के नीचे रख दिया और इब्राहीम अलैहिस्सलाम उस पर खड़े हो कर काबा का निर्माण करने लगे वो पत्थर जिस पर चढ़ कर इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने काबा का निर्माण किया था काबा की दीवार के नीचे रह गया ,उस पर इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पैरो के निशान भी रह गये जिसका नाम अल्लाह ने " मक़ामे इब्राहीम " रख दिया, काबा के निर्माण के बाद उन्होंने अल्लाह से निम्न प्रार्थना की
१- इस घर को उनकी तरफ से क़बूल कर ले
२- दोनों इस्लाम धर्म पर बाक़ी रहें
३- इस्लाम धर्म पर ही उनकी मौत हो
४- उनके बाद उनकी औलाद इस घर क़ी वारिस बने
५- इस दावते तौहीद (केवल एक अल्लाह क़ी पूजा) को सारे संसार में फैला दे
६- उन क़ी औलाद में एक नबी (दूत) भेजे
७- अपनी पूजा एवम् इबादत का सही तरीक़ा एवम् विधि सीखा दे
८- उन्हें क्षमा दे दे
९- काबा को सुरक्षा एवम् शांति वाला स्थान बनाए
१०- उनकी औलाद को बुतपरस्ती से बचाए
११- एवम् उन्हें विभिन्न प्रकार के फलों से आजीविका प्रदान करे
फिर इब्राहीम अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने हुक्म दिया कि लोगों में हज का एलान कर दें सो उन्होंने एलान कर दिया और लोग उनकी आवाज़ सुन कर पूरी दुनिया से लोग हज करने के लीए आने लगे जिस का सिलसिला आज तक जारी है और शायद क़यामत तक जारी रहे
इसके बाद इब्राहीम अलैहिस्सलाम शाम देश को लौट गए और सत्य धर्म के परचार में लग गये यहाँ तक कि एक सौ पचहत्तर वर्ष कि आयु में उनका देहांत हो गया
देहांत के समय उनके दो पुत्र इसहाक़ अलैहिस्सलाम और इस्माईल अलैहिस्सलाम थे इसहाक़ अलैहिस्सलाम शाम में ही रह गए और उन्होंने फ़लस्तीन में मस्जीदे अक़्सा का निर्माण किया बाद में मुहम्मद सललाल्लाहो अलैहै वसल्लम को छोड़ कर जीतने भी नबी और दूत आए उन्हीं कि नस्ल में आए और मुहम्मद सललाल्लाहो अलैहै वसल्लम उनके दूसरे एवम् बड़े पुत्र इस्माईल अलैहिस्सलाम कि नस्ल में आए.
इस्माईल अलैहिस्सलाम मक्का में काबा के पड़ोस ही में क़बीला जुरहूम कि एक लड़की से विवाह करके उनके साथ बस गए और फिर अल्लाह ने उनको , उनका और यमन वालों का नबी बना दिया. एक सौ सैंतीस वर्ष कि आयु में मक्का ही में उनका देहांत हो गया इस्माईल अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने बारह बेटे दिए जिन में नाबीत एवम् कैज़ार माशहूर हुए तथा कैज़ार की औलाद में अदनान हुए अदनान के दो बेटे हुए अक तथा मअद , अक यमन चला गया और मअद मक्का में ही रहा जिन की नस्ल से मुहम्मद सललाल्लाहो अलैहै वसल्लम हैं

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