बुधवार, 25 अप्रैल 2012

मुसलमानों को यातनाएं

इस्लाम के बढ़ते हुए क़दम को रोकने के लिए कुरैश वालों ने मुसलामानों को यातनाएं और तकलीफें देना शुरू किया और उन से जितना बन पड़ता उनको सताते और ऐसी ऐसी तकलीफें देते जिन्हें सुन  कर बदन काँप जाता है :
*  बिलाल बिन रबाह रज़ीअल्लाहो अंहो  ओमैय्या बिन खल्फ़ जोमही के गुलाम थे ,जब यह मुसलमान हुए तो ओमैय्या  इनकी गर्दन में रस्सी डाल कर बच्चों के हवाले कर देता जो इनसे  खेलते और गलियों में घुमाते,फिर भी इनकी जुबां पर अहद,अहद (अल्लाह एक है ,अल्लाह अकेला ही है) जारी रहताइसी तरह इनको दोपहर में तपती रेत या बालू  पर पीठ के बल लिटा देता फिर एक बड़ा पत्थर इनकी छाती पर रख देता ,और कहता : तुम्हारे साथ ऐसा ही करता रहूंगा यहाँ तक कि मोहम्मद का इनकार करके लात और उज्ज़ा की पूजा  करने लगो ,लेकिन इनकी जुबां पर अहद , अहद जारी रहता .
एक रोज़ इनको यातना दी जा रही थी उसी समय अबू बक्र रज़ीअल्लाहो अंहो का गुज़र हुआ तो  उन्हों ने इनको ख़रीद कर अल्लाह के लिए आज़ाद कर दिया .
* आमिर बिन फ़ोहैरा को इतनी यातनाएं दी जातीं कि वह अपना होशो हवास खो बैठते लेकिन फिर भी अपने धर्म पर क़ायेम रहे.
* अबू फ़ोकैहा जिनका नाम अफलह था वह बनू अब्दुद्दार के ग़ुलाम थे  यह लोग उन्हें दोपहर की  तपती धुप में नंगे करके लोहे की बेड़ियों में जकड़ कर तपती रेत पर पेट के बल लिटा देते और पीठ परभारी पत्थर रख देते जिस से वह हिल नहीं सकते थे यहाँ तक कि वह अपने होशो हवास खो बैठते , उनके साथ ऐसा ही चलता रहा यहाँ तक कि मुल्के हबशा (इथोपिया) हिजरत (प्रवास)कर गए.
एक बार उन लोगों ने उनको नंगा करके रस्सी से बाँध कर  घसीट ते हुए तपती रेत में डाल दिया और  उनका गला घोंटते रहे यहाँ तक कि उनको मुर्दा समझ लिया ,उसी वक़्त अबू बक्र  रजीअल्लाहो अंहो का गुज़र हुआ और उन्होंने उनको ख़रीद कर अल्लाह के लिए आज़ाद कर दिया. 
*  ख़ब्बाब बीन  अरत लोहार थे और उम्मे अन्मार बिन्ते सिबा खोज़ाईया के ग़ुलाम थे जब  यह इस्लाम लाए तो उसने इनको आग से दागा ,गरम लोहा से इनकी पीठ को दागती ताकि यह इस्लाम से फिर जाएं लेकिन इनके ईमान में इज़ाफा ही होता ,दुसरे मुशरेकीन भी इन्हें सताते  इनकी गर्दन मरोड़तेऔर बाल खींचते ,एक बार तो इनको दहकती आग पर डाल दिया और सीने पर एक भारी  पत्थर रख दिया ताकि हिल जुल  सकें.  
*   ज़िन्निरा एक रोमन लौंडी थीं जब यह इस्लाम लाईं तो इनको बहुत सताया गया यहाँ तक कि अंधी हो गईं ,लोग कहने लगे कि तुम्हारे ऊपर लातो उज्ज़ा का प्रकोप पड़ा है ,कहने लगीं अल्लाह की क़सम यह कोई प्रकोप नहीं ,यह तो अल्लाह की देन है अगर वह चाहे तो इसे ख़तम भी कर सकता है, फिर जब यह सुबह में उठीं तो अल्लाह तआला इनकी आँख लौटा चुका था ,इस पर वह लोग कहने लगे :यह तो मुहम्मद के जादू का असर है . 
* उम्मे ओबैस जो बनू ज़ोहरा की लौंडी थीं जब वह इस्लाम लाईं तो उनका मालिक अस्वद बिन अब्दे यगुस उनको सताने लगा जो की अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के सब से बड़े दुश्मनों में से था और आप का मज़ाक़ भी उड़ाया करता था .
* बनू अदि के अम्र बिन मोअम्मल की एक लौंडी मुसलमान हो गई इनको उमर बिन खत्ताब बहुत मारते थे,यह उस वक़्त तक मुसलमान नहीं हुए थे , जब मारते मारते थक जाते तो छोड़ देते और कहते :अल्लाह की क़सम थकावट की वजह से छोड़ा हूँ , तो वह कहतीं : तेरा रब तेरे साथ भी ऐसा ही करे .
* नहदिया और उनकी बेटी को भी बहुत सताया और मारा गया लेकिन दोनों इस्लाम पर जमी रहीं.
* अल्लाह के रास्ते में अज़ाब सहने वालों में से अम्मार बिन यासिर ,उनके भाई अब्दुल्लाह ,उनके पिता यासिर और उनकी माँ सोमैय्या थीं एक बार जब उन्हें यातनाएं दी जा रही थीं अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम उनके के पास से गुज़रे तो आप ने फ़रमाया:"ऐ आले यासिर! सब्र करो,तुम्हारा ठिकाना जन्नत है,ऐ अल्लाह !आले यासिर की मग्फेरत फ़रमा "
अम्मार के माता पिता सख्तीऔर यातना की ताब  ला सके और उनका देहांत हो गया , उनकी माता सोमैय्या इस्लाम में शहीद होने वाली पहली औरत थीं इनको अबुजहल ने नाभि के  नीचे तीर मर दिया जिस से इनका देहांत हो गया .

*  मुसअब बिन ओमैर : इनकी जिंदगी नेहायत ही ऐशो इशरत में गुज़रती थी ,लेकिन जब इस्लाम लाए तो इनकी माँ ने इनका खाना पीना सब बंद कर दिया और घर से निकाल दिया.
* सोहैब रूमी : जब यह इस्लाम लाए तो इनको इतनी तकलीफें दी जातीं कि होशो हवास खो बैठते और क्या बोल रहे हैं इनको कुछ पता नहीं चलता.
* अबू बक्र सिद्दीक़ और तलहा बीन ओबैदुल्लाह : इन दोनों को एक ही रस्सी में बाँध दिया जाता ताकि यह नमाज़ न पढ़ सकें और दीन से फिर जाएं.
* अबुजहल जब सुनता कि कोई इज्ज़तो मर्तबा वाला व्यक्ति मुसलमान हुआ है तो उसके पास जाता और उसकी बेइज्ज़ती करता,और डांट पिलाता और कहता कि तुम ने अपने बाप दादा के धर्म को कैसे छोड़ दिया है जब कि वह तुम से अछे हैं ,इसी तरह उसे बेईज्ज़त करने की धमकी देता ,और कोरैशी नौजवानों को उनके पीछे लगा देता.और अगर कोई व्यवसाई होता तो उसकी तेजारत को नाकाम बनाने की धमकी देता.
इस तरह कुरैश के काफिर और मुशरिक मुसलामानों को सताते और उनको यातनाएं देते रहे लेकिन उनका  ईमान कमज़ोर नहीं हुआ और न ही उनके क़दम डगमगाए .
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को मुसलामानों के ऊपर ढाए  गए ज़ुल्म से बहुत ज़्यादा  तकलीफ़ होती थी  लेकिन आप इन आजमाइशों को रोक नहीं सकते थे ,इसी लिए आप ने सहाबा कराम को हबशा की जानिब हिजरत करने की इजाज़त दे दी .जो कि सन पांच नबवी का वाक़ेया है.









  

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