चूँकि मेरा यह ब्लॉग केवल अंतिम रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के जीवन के सत्य तथ्यों के बयान पर आधारित है अतः मैं किसी भी अतिरिक्त लेख से परहेज़ करता हूँ एवं कोशिश यह होती है कि आप के जीवन के उन्हीं तथ्वों को बयान करूँ जो सही रवायतों पर आधारित हैं लेकिन कुछ समय पूर्व मैंने हजरे अस्वद एवं काबा के बारे में कुछ नकारात्मक विचार वाले व्यतियों जिनका ज्ञान सरल तथा गलत विचारों एवं सोंच से भरपूर है के लेख तथा उनपर कमेंट्स पढ़ा इन आलेखों में ख़ास तौर से हजरे अस्वद के बारे में जो बकवास कि गई है वोह लेखक के मानसिक बिमारी का उदहारण है काबा तथा हजरे अस्वद का तअल्लुक़ किसी सनातन धर्म अथवा शिव या शिव लिंग से क्या हो सकता है ?दर असल लेखक ने झूटे इतिहास कारों की झूटी बातों पर भरोसा करके जिनका कोई अस्तित्व नहीं है एक अफसाना तराश कर लेख का रूप दे दिया है . ऐसे लोग जिन का ज्ञान सरल तथा कमज़ोर होता है जो सत्य असत्य में अंतर नहीं कर सकते और न ही करने की कोशिश करते हैं झूटी बातों को इतिहास का रूप देनें वाले इतिहासकारो की हर सच्ची झूटी बातों को सत्य समझ कर उसपर ईमान ले आते हैं, ठीक उस अबोध बच्चे की तरह जो दादी माँ की परियों तथा देवों की कथाओं को सच समझ बैठता है और दिनों रात उन्हीं के सपने देखा करता है
चूँकि हमारे इस्लाम धर्म में किसी भी धर्म का ठठा तथा उस से सम्बंधित किसी चीज़ का मजाक उड़ाना निषेध है इसलिए मैं सनातन अथवा शिव एवं शिवलिंग की सत्यता अथवा असत्यता के बारे में कुछ नहीं कहूंगा हाँ इतना ज़रूर है कि हमारे धर्म के बारे में जो असत्य तथा अन्याय पूर्ण बातें कही जाती हैं उनका उत्तर अवश्य दिया जाए! काबा कि हकीकत के बारे में मैं इस से पूर्व लिख चूका हूँ तथा मौक़ा मिला और अल्लाह ने चाहा तो मक्का फतह करने के बयान के समय लिखूंगा
अब निम्न में हजरे अस्वद के बारे में जो सत्यता है उसे बयान कर रहा हूँ इस यकीन के साथ कि जितना ब्यान कर रहा हूँ केवल उतना ही सत्य तथा कुरआन (इश्वर के बयान) एवं हदीस (नबी की बातों तथा कार्यों) से साबित है जिन्हें आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के प्यारे साथियों रज़ीअल्लाहोअन्हुम ने देखा , सुना ,समझा तथा ब्यान किया है बाक़ी सब बे सर पैर की बातें एवं अफ़साना है , अल्लाह हमें सही सोंच दे
हजरे अस्वद क्या है ? : हजरे अस्वद काबा के दक्षनी कोने में मौजूद लाली मिला हुआ एक काला पत्थर है जो ज़मीन से डेढ़ मीटर की उंचाई पर काबा की दिवार में लगा हुआ है. यहाँ यह बताते चलें कि शुरू में हजरे अस्वद का आकार तीस सेंटी मीटर के करीब था लेकिन अनेक घटनाओं की वजह से उस में परिवर्तन आता गया तथा अब अनेक साईज़ के केवल आठ छोटे छोटे टुकड़े बचे हैं जिन में सब से बड़ा छोहारे के आकार का है , यह तमाम टुकड़े करीब ढाई फिट के कुतर में जड़े हुए हैं जिनके किनारे चांदी के गोल चक्कर घेरे हुए है. इस की हिफाज़त के लिए सब से पहले जिसने उसे चांदी से गच दिया वो अब्दुल्लाह बिन जुबैर रज़ियल्लाहो अन्हो हैं फिर बाद के राजाओं महाराजाओं ने भी उस में सोने तथा चांदी मढ़वाये सब से अंत में सउदी अरब के राजा शाह सऊद ने इसे खालिस चांदी से मढ़वाया.
इस्लामी ईतिहास में हजरे अस्वद से एक नेहायत ही दुखद घटना जुडी हुई है, अबू ताहिर क़र्मोती (जिस का सम्बन्ध क्रामेता नामी शीई धर्म से था ) नाम के एक आक्रमणकारी ने सन ३१७ हिजरी में मक्का पर आक्रमण करके मक्का की पवित्रता को भंग कर दिया एवं काबा की बेहुरमती की एवं हाजियों को मार कर ज़मज़म के कुंवे में डाल दिया,तथा ज़मज़म के कुब्बे को गिरा दिया एवं काबा की दिवार को गिरा दिया तथा काबा की चादर को फाड़ कर अपने साथिओं में बाँट दिया एवं हजरे अस्वद को निकाल कर अपने साथ ले गया . बाईस वर्ष बाद सन 339 हिजरी में फिर दोबारा उसको उसके स्थान पर लौटा दिया गया
हजरे अस्वद कहाँ से आया ? : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फरमाया (१) " हजरे अस्वद अल्लाह तआला ने ज़मीन पर स्वर्ग से उतारा है यह दूध से अधिक सफ़ेद था बनू आदम (मनुष्य ) के पापों ने इसे काला कर दिया है " (तिरमिज़ी एवं सहिहुलजामे /क्रमांक : ६७५६) (२) " रुक्न (हजरे अस्वद ) तथा मक़ाम जन्नत के नीलमों में से एक नीलम है अल्लाह तआला ने इस के प्रकाश को समाप्त कर दिया है अगर इसके प्रकाश को ख़तम नहीं करता तो यह पूरब और पश्चिम को रौशन कर देते " (मुस्नद अहमद , तिरमिज़ी एवं सहिहुलजामे /क्रमांक : १६३३) (३) हजरे अस्वद जन्नत से उतरा है जो बर्फ से ज्यादा सफ़ेद था जिसे आदमी के पापों ने काला कर दिया है " (सिलसिला सहीहा)
हजरे अस्वद किस युग में लगा ? : हजरे अस्वद अल्लाह तआला ने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पास जिब्रील अलैहिसलाम के हाथो भेजा ताकि वोह तवाफ़ करने वालों (काबा का चक्कर लगाने वालों) के लिए काबा के दक्षिणी किनारे में लगा दें ,जो काबा का तवाफ़ करने वालों के लिए एक निशानी हो और वोह यहीं से अपना तवाफ़ आरम्भ करें तथा यहीं पर समाप्त करें
हुआ यूँ कि इब्राहीम अलैहिस्सलाम जब काबा का निर्माण कर रहे थे तथा पत्थर जोड़ते जोड़ते उस जगह तक पहुंचे जहां पत्थर लगाना था तो अपने पुत्र इस्माइल अलैहिस्सलाम जो निर्माण में उनकी सहायता कर रहे थे एवं पत्थर ढो कर ला रहे थे से कहा कि एक ऐसा पत्थर लाओ जिसे मैं इस स्थान पर लगा दूँ ताकि तवाफ़ करने वाले यहीं से अपने तवाफ़ का आरम्भ करें अतः इस्माइल अलैहिस्सलाम पत्थर लाने गए जब वापस आये तो देखा कि एक पत्थर मौजूद है , पूछा : पिताजी यह पत्थर कहाँ से आया ? तो उन्हों ने कहा कि जिब्रील अलैहिस्सलाम ने लाकर दिया है
हजरे अस्वद के फायदे तथा उसकी महत्ता : निम्न में हम हजरे अस्वद के कुछ फायदे एवं महत्ता के बारे में सहीह हदीसों की रोशनी में चंद बातें बयान करते हैं :(१) "यह स्वर्ग से उतरा हुआ पत्थर है"(सहीहुलजामे : क्रमांक /३१७५) (२) काबा में तवाफ़ जैसे महत्वपूर्ण अरकान को अदा करने के लिए अलामत और निशानी है (३) उसको चूमने से मोमिन के पाप झड़ जाते हैं (४) " अल्लाह तआला हजरे अस्वद को क़यामत के दिन लाएगा तो उसकी दो आँखें होंगी जिनसे देखेगा और ज़बान होगी जिससे बोलेगा और हर उस शख्स की गवाही देगा जिस ने उसका हक़ीक़ी इस्तेलाम किया (छुआ ) होगा " ( इब्नेमाजा एवं सहीहुलजामे क्रमांक /५३४६) (५) " अगर हजरे अस्वद को जाहिलियत की गंदगियाँ नहीं लगी होती तो उसे कोई भी बीमार छूता तो वोह ठीक हो जाता और धरती पर इसके अतिरिक्त स्वर्ग कि कोई चीज़ नहीं है" (सहीहुलजामे क्रमांक /5334) (6) उसके चूमने अथवा छूने में रसूलुल्लाह सल्लल्लहोअलैहेवसल्लम की सुन्नत का पालन है जो हर मुसलमान के लिए अनिवार्य है तथा इसके बगैर कोई मुसलमान मुसलमान नहीं रहता और इसके बगैर किसी भी मुसलमान की कोई इबादत एवं पूजा इश्वर के यहाँ अस्वीकार्य है
क्या मुसलमान हजरे अस्वद की पूजा करते हैं ? : हजरे अस्वद से सम्बंधित जो भी अमल मुसलमान करते हैं उनका सीधा सम्बन्ध अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से है कोई भी कार्य जो सुन्नत से साबित नहीं उनका करना मना है इसीलिए उमर रज़ियल्लाहो अन्हो ने जब हजरे अस्वद को चूमा तो कहा :" मैं जानता हूँ कि तू केवल एक पत्थर है न तू नफा पहुंचा सकता है और न ही हानि अगर मैं ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को तुझे चुमते हुए न देखा होता तो तुझे नहीं चूमता " इमाम तबरी फरमाते हैं कि : " उमर रज़ियल्लाहो अन्हों ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि लोगों ने कुछ ही दिनों पहले बुतों कि पूजा को छोड़ा था तथा आप को डर हुआ कि कहीं यह लोग ये न समझने लगें कि पत्थर को चूमना उसकी ताजीम करना है जैसा कि इस्लाम से पूर्व अरब के लोग किया करते थे अतः उन्हों ने लोगों को यह बताना चाहा कि हजरे अस्वद का चूमना केवल अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के कार्यों का अनुसरण है इसलिए नहीं कि उसके अन्दर कोई नफा तथा हानि की कोई शक्ति है " यहाँ पता चला कि हजरे अस्वद को चूमना कोई पूजा या शर्द्दा नहीं है बल्कि ऐसी मुहब्बत और प्यार है जो अल्लाह के रसूल की सुन्नत के मुताबिक है , उदहारण के तौर पर : कोई आदमी जब अपनी पत्नी या संतान को चूमता है तो इसका अर्थ यह नहीं होता कि वोह उनकी पूजा करता है अर्थात यह एक प्रेम है जो खून के रिश्ते के लिए उमड़ता है , इसी तरह हजरे अस्वद को चूमना या छूना एक प्रेम है जिसको करने का आदेश अल्लाह और उसके रसूल ने दिया है यह पद तथा यह स्थान दुनिया के किसी दुसरे पत्थर को बिलकुल प्राप्त नहीं चाहे उसका मूल्य कितना ही उंचा क्यों न हो , और लोग उसे कितना ही ऊँचा दर्जा क्यों न दे दें