गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

ग़म का साल

नबूवत मिलने का  दसवां  साल  आप सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम पर बहुत ही मुश्किलों भरा रहा, एक तरफ मुशरिकों की तरफ से आप को अज़ियतें और तकलीफें दी जाती रहीं, और आप को इस्लाम के प्रचार से रोकने की पूरी कोशिश की जाती, रही इसी दौरान आप को स्पोर्ट करने वाले और हर मुसीबत में साथ देने वाले चचा अबु तालिब और हद से ज़्यादाह प्यार करने वाली और हर मौक़ा से 
सन्तावना देने वाली पत्नी का देहांत हो गया।

चाचा अबुतालिब का देहांत


घाटी से निकलने के छह महीने बाद रमज़ान या शव्वाल या ज़िलक़ादा सन १० नबवी में  आप के चाचा अबुतालिब का देहांत हो गया, जब उनकी  मौत का समय आया तो आप उनके पास गए, उस वक़्त वहाँ पर अबु जहल और अब्दुल्लाह इब्ने अबी ओमैया मौजूद थे, आप ने अबु  तालिब से कहा :" ऐ चाचा जान आप "ला इलाहा इल्लल्लाह " कह दीजिए ,क्यूंकि यह एक ऐसा कलमा है जिसके ज़रिये अल्लाह से आप की बख्शीश के लिए सिफारिश कर सकूँ " तो अबूजहल और अब्दुल्लाह इब्ने अबी ओमैया ने कहा :ऐ अबुतालिब! क्या आप अनपे बाप दादा के धर्म से फिर जाएंगे ? दोनों अपनी बात कहते रहे यहाँ तक की अबु तालिब ने कलमा पढ़ने से इनकार कर दिया, और आखरी बात जो कही वो यह कि "मुझे अब्दुल मुत्तलिब के धर्म पर मरना है। " फिर आप ने कहा कि :" मैं उस वक़्त तक अल्लाह से आप के लिए बख्शीश तलब  करता रहूंगा जब तक उस से रोक न दिया जाऊं " उसी वक़्त अल्लाह तआला  ने आयते करीमा नाज़िल फ़रमाई , जिसका अर्थ है :( नबी के लिए और दूसरे मुसलमानों के लिए यह जाएज़ नहीं कि  मुशरेकीन के लिए  मग़फ़ेरत की दुआएं करें, यह उनके क़रीबी रिश्तेदार ही क्यों न हों, यह ज़ाहिर  हो जाने के बाद कि यह लोग जहन्नमी हैं )(सूरह तौबा :११३ )
और अबुतालिब के बारे में आप से फरमाया :( आप जिसे चाहें हिदायत नहीं दे सकते बल्कि अल्लाह तआला ही जिसे चाहे हिदायत देता है ) (सूरह क़सस :५६)

पत्नी खदीजा का देहांत


अभी आप के चाचा की मौत का ज़ख़्म ताज़ा ही था कि आप की हमदर्द और ग़मख़ार सब से प्यारी पत्नी और मुसलमानों की माँ  खदीजा रज़ीअल्लाहो अन्हा का देहांत हो गया , उनका देहांत अबुतालिब के देहांत के तीन दिनों बाद रमज़ान के महीने में हुआ। 
खदीजा रज़ीअल्लाहो अन्हा ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की हर मोड़ पर अपनी जान और माल से मदद की आपके हर ग़म और तकलीफ को बांटा , अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम फरमाया करते थे :" खदीजा मुझ पर उस वक़्त ईमान लाईं जब लोगों ने मेरा इंकार किया ,मुझे सच्चा जाना जब लोगों ने मुझे झुटला दिया , जब लोगों ने मुझे कुछ नहीं दिया तो उन्हों ने अपने धन दौलत में मुझे साझी किया ,और उनसे अल्लाह ने मुझे औलाद दी जब कि दूसरी पत्नियों से नहीं दिया।" 
एक दिन जिब्राईल अलैहिस्सलाम अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो  वसल्लम के पास आये और कहा : ऐ अलाह के रसूल ! यह खदीजा आ रही हैं इनके हाथ में कोई सालन अथवा खाने या पीने की कोई चीज़ है, जब यह नज़दीक आएं तो उनको मेरा और उनके रब (अल्लाह) का सलाम  दीजिये और उनको जन्नत में बांस के बने हुए एक घर की खुशखबरी सूना दीजिये जिसमें न कोई परेशानी होगी और न हल्ला गुला।

अल्लाह  के रसूल सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम हमेशा प्यार और मोहब्बत से इनको याद किया करते, और घर में कोई चीज़ आती या बकरी ज़बह करते तो नकी सहेलियों को भिजवाते।

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